शनिवार, 16 जुलाई 2016

अंतिम फैसला

कहानी

                                             अंतिम फैसला
                                                                       
                                                                                      पवित्रा अग्रवाल
             
          बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक अपनी माँ को आया देख कर मैं चौंक गई।...वह दो घंटे का बस का सफर तय करके अकेली आई थीं, इसलिए थकी-थकी और परेशान लग रही थीं।
         "माँ वहाँ सब ठीक तो हैं...आप अचानक कैसे आ गर्इं ? ...आने की आपने कोई सूचना नहीं दी।'
    "अचानक नहीं आई हूँ, तेरी अत्तम्मा (सास) का फोन आया था। उन्हीं के बुलाने पर आई हूँ। आश्चर्य है कि उन्होंने तुझे नहीं बताया ?...मेरे बहुत पूछने पर भी उन्होंने बुलाने का कोई कारण नहीं बताया। मैं तो तेरी राजी-खुशी का समाचार जानने को परेशान थी।स्वाति, तू ठीक तो है ? यहाँ तुझे कोई कष्ट तो नहीं है ?...तेरी अत्तम्मा कहाँ है ?...उन्होंने मुझे क्यों बुलाया है ?'
     "माँ आप सफर में थक गई होंगी, आप आराम करें। मैं अभी पानी लेकर आती हूँ, फिर चाय पीएँगे तब इत्मिनान से बैठ कर बात करेंगे।'
 "तेरी अत्तम्मा घर में नहीं है क्या ? नन्हीं भी दिखाई नहीं दे रही।'
    " अत्तम्मा इस समय घर पर नहीं है, किसी महिला मंडली की मीटिंग में गई हैं। तीन- चार घंटे में लौट आएँगी, नन्हीं सो रही है।'
   चाय पीते समय मुझे उदास देखकर माँ ने फिर पूछा था -" स्वाति बता न बेटी, तू यहाँ खुश तो है ?...तेरी अत्तम्मा ने मुझे क्यों बुलाया है ?'
     "क्या बताऊँ माँ, जब से मेरे पुन: गर्भवती होने की बात उन्हें पता चली है, तभी से वह मेरे पीछे पड़ी हैं कि मैं वह टेस्ट करवा लूँ, जिससे यह ज्ञात हो जाता है कि आने वाली संतान लड़का है या लड़की। यदि गर्भ में लड़की है तो वह गर्भपात करा देना चाहती हैं।'
 "क्यों ?'
     "क्योंकि वह बेटा चाहती हैं। माँ तुम्हें तो मालूम है कि नन्हीं का जन्म ऑपरेशन से हुआ था। डॉक्टर के अनुसार दूसरे बच्चे का जन्म भी ऑपरेशन से ही होगा। डॉक्टर ने यह सलाह दी थी कि तीसरे बच्चे के बारे में हमें नहीं सोचना चाहिए वर्ना मेरी जान को खतरा हो सकता है। अब ये दूसरी संतान भी यदि बेटी ही हुई तो वह गर्भपात कराने की जिद्द किए बैठी हैं।'
        "इस गर्भपात के बाद पुन: गर्भ धारण करने पर परीक्षण से फिर बेटी होने की बात पता चली तो वे क्या करेंगी ?'
 "करना क्या है, वह उसे भी जन्म नहीं लेने देंगी, यह मैं जानती हूँ।'
 "वेंकट क्या चाहते हैं ?'
    "व्यक्तिगत रूप से वह क्या चाहते हैं, यह तो मैं नहीं जानती लेकिन अभी तो वह भी मुझे यही सलाह दे रहे हैं कि माँ की बात मान कर मैं घर में आए इस तनाव को समाप्त कर दूँ।'
 "तेरी अत्तम्मा ने मुझे क्यों बुलाया है ...मुझसे वह क्या चाहती है ?'
      "माँ मुझे तो यह तक नहीं बताया गया कि उन्होंने आपको बुलाया है। मैं समझती हूँ कि आपको इसीलिए बुलाया होगा ताकि आप मुझे समझाएँ व दबाव डालें कि मैं उनकी बात मान कर भ्रूण परीक्षण करा लूँ और जरूरत पड़े तो गर्भपात भी।'
 "तू क्या चाहती है ?'
       "मैंने तो साफ इन्कार कर दिया। गर्भपात की बात तो बाद में उठेगी, मैं तो ये परीक्षण भी नहीं कराऊँगी। नन्हीं के जन्म पर वेंकट तो बहुत खुश थे, लेकिन अत्तम्मा थोड़ी निराश थीं। उन्होंने तभी एलान कर दिया था कि दूसरी संतान तो बेटा ही होना चाहिए और अब उन्हें बेटा ही चाहिए, चाहे उन्हें इस अजन्मे शिशु की बलि लेनी पड़े।'
     "स्वाति, तेरी अत्तम्मा तुझे समझाने के लिए मुझ पर दबाव डालेंगी।...मैं तो बड़ी दुविधा में पड़ गई हूँ।...बता मुझे क्या करना चाहिए ?'
     "माँ वह आपसे मुझे समझाने के लिए कहेंगी, आप क्यों बुरी बनती हैं ? आप उनके सामने ही मुझे समझा देना, मानना न मानना तो मेरे हाथ में है।...यह तय है कि चाहे मुझे घर छोड़ना पड़े, मैं यह परीक्षण नहीं कराऊँगी।...बस एक बात आप भी बता दो माँ, यदि मजबूरी में मुझे यह घर छोड़ना पड़ा, तो बच्चे के जन्म लेने के कुछ महीने बाद तक क्या आप मुझे अपने घर में आसरा देंगी ? बाद में मैं कोई काम प्रारंभ करके सब सँभाल लूँगी।'
     "स्वाति, तेरी माँ का घर तेरे लिए हमेशा खुला है फिर भी बात को सँभालने की कोशिश करना। घर छोड़ने की नौबत न  आए तो अच्छा है। मेरी इस बात को गलत मत समझना।...वैसे तू मेरे पास आ भी गई तो तेरे पिता इतना छोड़ कर गए हैं कि तुझे कोई अभाव नहीं होने दूँगी।'
     "माँ तुम्हारी बातों से मुझे बहुत बल मिला है। मैं कोशिश यही करूँगी कि समस्या सुलझ ज़ाए और मुझे घर न छोड़ना पड़े।'
 माँ को आया देखकर अत्तम्मा खुश हो गर्इं थी ।
       मैं जानबूझ कर उनके बीच से हट गई थी किंतु उनकी बातें मैं अपने कमरे में बैठ कर भी सुन पा रही थी। अत्तम्मा की पूरी बातें सुनकर माँ ने कहा था      -"कान्तम्मा, आजकल की लड़कियाँ किसी भी तरह से लड़कों से पीछे नहीं हैं। दोनों में अब कोई खास अंतर भी नहीं रह गया है। लड़कियाँ शादी हो कर ससुराल चली जाती हैं तो लड़के भी नौकरी या व्यवसाय के चक्कर में फँस कर साथ कहाँ रह पाते हैं  ? मेरे अन्ना-वदीने (भाई-भाभी) बुढ़ापे में अकेले रह रहे हैं, उनका लड़का विदेश में काम करता है। वह भारत आने को तैयार नहीं है और ये विदेश जाकर नहीं रहना चाहते। आपके घर में भगवान की कृपा से एक पोती है, दूसरी संतान भी आने वाली है, हो सकता है कि वह पोता ही हो।..मेरे बेटे की शादी को दस वर्ष हो गए. कोई संतान नहीं है। हम तो बस एक संतान के लिए तरस रहे हैं, भले ही वह बेटी हो। स्वाति के यदि बेटी हुई तो उसे आप हमें दे देना।'
     "शान्तम्मा, आप हमारी समस्या समझ नहीं रही हैं। बात बेटी को रखने या पालने की नहीं है,...हम भी एक क्या दो बेटी पाल सकते हैं किंतु आपकी बेटी संतान के लिए तीसरा चांस नहीं ले सकती, उसकी जान को खतरा हो सकता है। अत: बेटे की चाह को पूरा करने के लिए ही मैं परीक्षण कराना चाहती हूँ, उसके बाद जरूरत पड़ी तो गर्भपात भी।'
          माँ को चुप देख कर अत्तम्मा ने चिढ़ कर पुन: कहा- "शादी सगों में ही हो तो ठीक रहती है। मैं तो वेंकट की शादी अपने अन्ना की बच्ची से करना चाहती थी, इसी बीच उगादी के दिन किसी मित्र के यहाँ स्वाति को देखकर वह स्वाति को चाहने लगा और उसी से शादी करने की जिद्द कर बैठा। मेरे अन्ना तो इस बात को लेकर आज भी मुझसे नाराज हैं।उनकी बेटी बहुत सुंदर थी और पढ़ी-लिखी भी थी। अब तो वह दो बेटों की माँ हैं। रिश्तों में शादी हो तो एक-दूसरे पर दबाव बना रहता है, वे एक-दूसरे की समस्या समझने व सुलझाने की कोशिश करते है।आप उसे समझाने के बदले मुझे ही शिक्षा दे रही हैं कि बेटे-बेटी में कोई अंतर नहीं रहा।'
      "कान्तम्मा, आपके आने से पहले मैं उसे बहुत समझा चुकी हूँ लेकिन वह उस सबके लिए तैयार नहीं है तो मैं क्या कर सकती हूँ ? यह बच्चों का व्यक्तिगत मामला है, मैं उसमें टाँग अड़ाना पसंद नहीं करती। मैं तो अपने बेटे-बहू के व्यक्तिगत मामलों में भी दखल नहीं देती। मैं समझती हूँ अब मुझे चलना चाहिए।'

        आज ठहर जाने के मेरे आग्रह को ठुकरा कर माँ तभी लौट गई थीं। मेरे लिए भी अब यह तनाव झेलना मुश्किल होता जा रहा था। मैंने वेंकट से स्पष्ट बात कर लेना उचित समझा 
 --"वेंकट तुम्हारा निर्णय भी वही है, जो अत्तम्मा का है  ? क्या तुम्हें भी बेटा ही चाहिए ? मुझे यह परीक्षण कराना ही पड़ेगा ?'
     "मैंने इस विषय पर विस्तार से नहीं सोचा है, मैं तो बस इतना जानता हूँ कि एक अजन्मे शिशु के मोह में फँस कर तुम जीती-जागती माँ को कष्ट पहुँचा रही हो। तुम्हारे बेटा हो, इसमें उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं है, वह तो हमारे भविष्य की चिंता करके ही यह चाहती हैं।'
 "हमारे भविष्य की चिंता करके वह हमारा वर्तमान क्यों बिगाड़ रही हैं ? हमारी व्यक्तिगत जिंदगी, व्यक्तिगत फैसलों में क्यों दखल दे रही हैं ? उनकी सेवा करने को तो बेटे के रूप में तुम हो ही, इसी से संतुष्ट क्यों नहीं हो जातीं ?'
 "असली बात तो यह है स्वाति कि मैं भी बेटा चाहता हूँ। आज के इस जटिल समय में बेटियों को पढ़ा-लिखा कर समर्थ बनाना, फिर उनके लिए ढेर सारा दहेज जुटाना मुझ जैसे सर्विस क्लास के लिए मामूली बात नहीं है।'
 "वेंकट मैं भी पढ़ी-लिखी हूँ, बच्चों के कुछ बड़े हो जाने पर मैं भी कुछ काम करूँगी। हम दोनों मिल कर अपनी इन जिम्मेदारियों को पूरा करेंगे...तुम परेशान मत हो।'
 "बड़ा घमंड है अपनी पढ़ाई का ? पढ़े-लिखे सैकड़ों लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं पर नौकरी नहीं मिलती।..रोज-रोज के इस तनाव से मैं परेशान हो गया हूं, मेरा पीछा छोड़ो, चाहो तो कुछ दिन अपनी माँ के पास रह आओ।'
 "मुझसे इतना तंग हो गए हो,...हमेशा के लिए पीछा छुड़ाने का इरादा तो नहीं ?'
 "मैं कुछ नहीं जानता, तुम्हें जो मतलब निकालना है, निकालो।'
   माँ के घर जाने की बात सुन कर अत्तम्मा ने कहा था- "कितने दिन रह पाओगी वहाँ ? तुम्हारा अंतिम फैसला है कि तुम परीक्षण नहीं कराओगी ?"
 "अत्तम्मा बेटे की चाह मुझे भी है लेकिन इतनी नहीं कि उसकी चाह में बेटी की बलि दे दूँ। मुझे माफ करना, मैं यह फैसला बदल नहीं पाऊँगी।.. आप जब चाहेंगी मैं अपने घर में वापस लौट आऊँगी।'
 मुझे देखते ही अन्ना-वदीने (भैया-भाभी) खुश हो गए। नन्हीं को गोद में उठा कर ऊपर उछालते हुए बोले- "अब तो हमारे घर में खूब रौनक हो जाएगी...इसके साथ खूब खेलेंगे।'
   माँ से पूरी बात सुन कर अन्ना बोले थे-"स्वाति तू परेशान मत हो, हम सब तुम्हारे साथ हैं, सब ठीक हो जाएगा। बेटा हो तो तुम रख लेना, बेटी हो तो वेंकट से सलाह करके हमें दे देना। हमारे घर में भी बहार आ जाएगी।'
     मेरे आने के एक सप्ताह बाद तक वेंकट या अत्तम्मा का कोई फोन नहीं आया। मैं दुखी तो थी, मन हो रहा था मैं भी फोन न करूँ किंतु अपने-अपने अहम् में फँस कर ही परिवार टूट जाते हैं। मैंने ही वेंकट को फोन कर लिया। फोन पर वह उखड़े मूड में ही मिले। नन्हीं का हालचाल भी नहीं पूछा। शुरू में तो अपने पापा व दादी को याद करके नन्हीं बहुत रोती थीं फिर उसकी दोस्ती अपनी अमम्मा (नानी) व मामा-मामी से हो गई, अब वह खुश रहती है।
 आज उगादी है। इसी दिन वेंकट से मेरी मुलाकात अपनी मित्र के यहाँ हुई थी। मुझे वेंकट की बहुत याद आ रही थी, क्या उनको भी मेरी याद आई होगी ? याद आती तो वे एक फोन तो कर ही सकते थे। उनका फोन नहीं आया तो न सही, मैं ही कर लेती हूँ। मैं वेंकट को फोन करने के लिए उठी ही थी कि तभी फोन की घंटी घनघना उठी। फोन मैंने ही उठाया था -  "कौन स्वाति ?...हैप्पी उगादी स्वाति, कैसी हो, नन्हीं कैसी है ?..अच्छा लो पहले माँ तुमसे बात करना चाहती हैं।"
 "स्वाति अपने घर लौट आ, नन्हीं और तुम्हारे बिना यह घर अच्छा नहीं लगता। वेंकट भी न ढ़ंग से खाता है न पीता है, हर दम उदास रहता है। बहुत दुबला हो गया है। अक्सर घर से बाहर ही रहता है। कहीं पोते की जिद्द में मैं अपना बेटा ही न खो दूँ...भगवान ने मुझे तो बेटा दिया है। अपनी संतान के लिए फैसला करने का हक सिर्फ तुम्हें है,...तुम्हारा निर्णय ही अंतिम होगा।...बस अब तुम लौट  आओ। लो वेंकट से बात करो।'
   "स्वाति, मैं तुम्हें लेने अभी आ रहा हूँ । पुरानी बातों को भूल कर उगादी के इस नववर्ष में हम पुन: नई आशा और नए विश्वास के साथ जीवन जिएँगे और एक साथ मिल कर उस नए पुष्प का इंतजार करेंगे, जो हमारे घर आने वाला है।'
 खुशी से मेरे नयन भर आए थे और वाणी अवरुद्ध थी। मैं इतना ही कह पाई- "आ जाओ, मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा।'
 भाभी के हाथ से रंगोली के रंग लेते हुए मैंने कहा- "आप पूरनपोली और पच्चड़ी बना लो, दरवाजे पर रंगोली मैं बना देती हूँ।'
    "स्वाति आप को खुश देख कर हम बहुत खुश हैं।  रंगोली के रंग तो आपके चेहरे पर बिखरे हैं।...भगवान करे आप सदा ऐसे ही हँसती रहें ।'

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                                 (मेरे दूसरे कहानी संग्रह "उजाले दूर नहीं " में से ) 


  ईमेल --  agarwalpavitra78@gmail.com

-पवित्रा अग्रवाल
 

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