मंगलवार, 2 जून 2015

कितना करूँ इंतजार

मेरे दूसरे कहानी संग्रह "उजाले दूर नहीं " से एक कहानी प्रस्तुत है     
      

     
 कितना करूँ इंतजार 

                                                     पवित्रा अग्रवाल

        मुझे गुमसुम उदास देख कर माँ ने कहा --"क्या बात है रति तू इस तरह मुँह लटकाए  क्यों बैठी है ?.. कई दिन से मनोज का भी कोई फोन नहीं आया,दोनो ने आपस में झगड़ा कर लिया क्या ?'
 "नहीं माँ रोज रोज क्या बात करें।'
     "कितने दिनों से शादी की तैयारी कर रहे थे,सब व्यर्थ हो गई। यदि मनोज के दादा जी की मौत न हुई होती तो आज तेरी शादी को पन्द्रह दिन हो चुके होते। वे काफी वृद्ध थे, तेरहवीं के बाद शादी हो सकती थी लेकिन तेरे ससुराल वाले बड़े दकियानूसी हैं,कहते हैं साये नहीं हैं अब तो पाँच-छह महीने बाद ही शादी होगी। हमारी तो सब तैयारी व्यर्थ हो गई।शादी के कार्ड बट चुके थे...फंक्शन हाल को,कैटर्स को, सजावट  करने वालों को और भी कई लोगों को एडवांस पेमेन्ट कर बुक कर चुके थे।तारीख पन्द्रह- बीस दिन सरक जाती तो कुछ एडजस्टमेंन्ट करा लेते पर छह महीने सरकाने से अच्छा खासा नुकसान हो गया है।'
 "इसी बात से मनोज बहुत डिस्र्टब है माँ पर कुछ कह नही पाता ।'
       "बेटा हम भी कभी तुम्हारी उम्र के थे. तुम दोनो की भावनाए समझ सकते हैं,पर हम चाह कर भी कुछ नही कर सकते।मैं ने तो तेरी सास से कहा था कि साये नहीं  हैं  तो क्या हुआ ,अच्छे काम के लिए सब दिन शुभ होते हैं,अब हमे शादी कर देनी चाहिये किन्तु वह तो भड़क गई।कहने लगीं --"आप के लिये सब दिन शुभ होते होंगे पर हम तो सायों में विश्वास करते हैं ,हमारा इकलौता बेटा है हम अपनी तरफ से पुरानी मान्यताओं को अनदेखा कर मन में कोई बहम पैदा नही करना चाहते।'
    मम्मी इस से ज्यादा क्या कर सकती थीं और मैं भी क्या करूँ।मम्मी को कैसे बताऊँ कि मनोज क्या चाहता है।नर्सरी से इंटर मीडिएट तक हम दोनो साथ साथ पढ़े थे। किन्तु दोस्ती इंटर में आने के बाद ही हुई थी।इंटर के बाद मनोज इंजीनियरिंग करने चला गया और मैं ने बी.एससी. में प्रवेश ले लिया था ।कालेज अलग होने पर भी हम छुट्टियों के दिन कुछ समय साथ बिताते थे। बीच में फोन पर बातचीत कर लेते थे।कमप्यूटर पर चैट हो जाती थी।
    एम.एससी.में आते ही मम्मी -पापा ने शादी के लिए लड़का तलाशने की शुरुआत कर दी।मैं ने कहा  भी मम्मी एम.एससी.के बाद शादी करना।पर मम्मी का कहना था कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो, शादी कौन सी अभी हुई जा रही है, अच्छा लड़का मिलने में भी समय लगता है।
     शादी का नाम आते ही मनोज की छवि आँखों में तैर गई थी।यों हम दोनो एक अच्छे मित्र थे पर तब तक शादी करने के वादे हम दोनो ने एक दूसरे से नही किए थे।साथ मिल के भविष्य के सपने भी नहीं देखे थे।पर मम्मी द्वारा शादी की चर्चा करने पर मनोज का ख्याल आना ,क्या इसे प्यार समझूँ ।...क्या मनोज भी यही चाहता है,कैसे जानू उसके दिल की बात।
    मुलाकात में मनोज से मम्मी द्वारा शादी की पेशकश के बारे में बताया तो वह बोला-"इतनी जल्दी शादी कर लोगी,अभी तो तुम्हे दो वर्ष एम.एससी.करने में ही लगेंगे।' फिर कुछ सोचते हुए बोला था..."सीधे सीधे बताओ क्या मुझ से शादी करोगी..पर अभी मुझे सैटिल होने में कम से कम दो - तीन वर्ष लगेंगे ...'
 प्रसन्नता की एक लहर तन मन को छू गई थी--"सच कहूँ मनोज जब मम्मी ने शादी की बात की तो एक दम से मुझे तुम याद आगए थे।..क्या यही प्यार है ?'
          "मैं समझता हूँ यही प्यार है,देखो जो बात अब तक नहीं कह सका था , तुम्हारी शादी की बात उठते ही मेरे मुँह पर आ गई और मैं ने तुम्हें प्रपोज कर डाला ।'
 "अब जब हम दोनो एक दूसरे से चाहत का इजहार कर ही चुके हैं तो फिर तो इस विषय में गम्भीरता से सोचना होगा ।'
 "सोचना ही नहीं होगा रति तुम्हें अपने मम्मी-पापा के वर तलाश अभियान को रोकना होगा और उन्हें इस शादी के लिए मनाना भी होगा ।'
 "क्या तुम्हारे घर वाले मान जायेंगे ?'
     "देखो अभी तो मेरे इंजीनियरिंग का अंतिम साल है. मेरी कैट की कोचिंग भी चल रही हैं..उसका एग्जाम भी लिखना है।वैसे इस साल ही हो सकता है किसी अच्छी कम्पनी में प्लेसमेंन्ट हो जाये क्यों कि कालेज में बहुत सी कम्पनी आती हैं,स्टूडेन्ट्स के इंटरव्यू लिये जाते हैं और फिर वह जॉब आफर करती हैं। अच्छा आफर मिला तो मैं स्वीकार कर लूँगा और घर में जैसे ही शादी की चर्चा शुरू होगी मैं तुम्हारे बारे में बता दूँगा।'
       प्यार का अंकुर तो हमारे बीच पनप ही चुका था और हमारा यह प्यार अब जीवनसाथी बनने के सपने भी देखने लगा था। अब इसका जिक्र अपने अपने घर में करना जरुरी हो गया था ।
       मैं ने मम्मी को मनोज के बारे में बताया तो वह बोलीं--" वह अपनी जाति का नहीं है यह कैसे हो सकता है, तेरे पापा तो बिल्कुल नहीं मानेंगे।..क्या मनोज के माता पिता तैयार हैं ?'
       "अभी तो इस विषय में उस के घर वाले कुछ नहीं जानते,फाइनल परीक्षा होने तक मनोज को किसी अच्छी कम्पनी में जॉब का आफर मिल जाएगा और रिजल्ट आते ही वह कम्पनी जोइन कर लेगा । .. उस के बाद ही वह अपने मम्मी पापा से बात करेगा।'
 "क्या जरूरी हैं कि वह मान ही जायेंगे ?'
 "मुझे पहले आप की परमीशन चाहिए।'
 "यह निर्णय मैं अकेली कैसे ले सकती हूँ,तुम्हारे पापा से बात करनी होगी,उनसे बात करने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी होगी।...यदि पापा तैयार नहीं हुए तो तुम क्या करोगी ?'
 "करना क्या है मम्मी शादी होगी तो आपके आशीर्वाद से ही होगी वरना नहीं होगी ।'
  "बेटा तुम हमारी इकलौती बेटी हो,तुम्हारी खुशी के लिए मैं पूरा प्रयास करूँगी ।'
  इधर मेरा एम.एससी. फाइनल शुरू हुआ उधर इंजीनियरिंग पूरी होते ही मनोज को "सत्यम' कम्पनी में अच्छा स्टार्ट मिल गया था और यह भी करीब करीब तय था कि भविष्य में कभी भी कम्पनी उसे यू.एस.भेज सकती है । मनोज के घर में भी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी।
      मैं ने मम्मी को जैसे तैसे मना लिया था और मम्मी ने पापा को किन्तु मनोज की मम्मी इस  विवाह के लिये बिल्कुल तैयार नही थे।इस निर्णय से मनोज के घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था।उसके घर में पापा से ज्यादा उसकी  मम्मी की चलती है,ऐसा एक बार मनोज ने ही बताया था।...मनोज ने भी अपने घर में एलान कर दिया था कि शादी करूँगा तो रति से वरना किसी से नहीं।
     मनोज बहुत डिस्टर्ब रहने लगा था आखिर मनोज के बहन बहनोई ने अपनी तरह से  मम्मी को समझाया था --"मम्मी आप की यह जिद्द मनोज को आप से दूर कर देगी, आज कल बच्चों की मानसिक स्थिति का कुछ पता नहीं चलता कि वह कब क्या कर बैठें। आज के ही अखबार में समाचार है कि माता पिता की स्वीकृति न मिलने पर प्रेमी - प्रेमिका ने आत्महत्या कर ली।..वह दोनो बालिग हैं,मनोज अच्छा कमा रहा है ।वह चाहे तो कोर्ट में शादी कर सकता था पर उसने ऐसा नहीं किया और आप की स्वीकृति का इंतजार कर रहा है ,अब फैसला आपको करना हैं।'
     मनोज के पिता ने कहा था --"बेटा मुझे तो मनोज की इस शादी से कोई एतराज नहीं हैं...लड़की पढ़ी लिखी है, सुन्दर है,अच्छे परिवार की हैं और सब से बड़ी बात मनोज को पसंद है ।बस हमारी जाति की नहीं है तो
क्या हुआ पर हमारी श्रीमती जी को कौन समझाए ।' 
    "जब सब तैयार हैं तो मैं ही उसकी दुश्मन हूँ क्या ...मैं ही बुरी क्यों बनूँ ?..मैं भी तैयार हूँ ।'           
   अब उनका इरादा फिर बदले इस से पूर्व ही मंगनी की रस्म कर दी गई थी। तय हुआ था कि मेरी एम. एससी.पूरी होते ही शादी हो जाएगी ।
     मंगनी हुए  एक साल हो चुका था।शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी। मनोज के बाबा की मौत न हुई होती तो हम दोनो अब तक हनीमून मना कर कुल्लू-मनाली,शिमला से लौट चुके होते और तीन महीने बाद मैं भी मनोज के साथ अमेरिका चली जाती।
    पर अब छह सात महीने तक साये नही है अत: शादी अब तभी होगी ऐसा मनोज के मम्मी पापा ने कहा है।पर मनोज शादी के टलने से खुश नहीं है ।पर इस के लिए अपने घर में उसे खुद ही बात करनी होगी. हाँ यदि मेरे घर से कोई रुकावट होती तो मैं उसे दूर करने का प्रयास करती।
 पर मैं क्या करूँ । माना कि उसके भी कुछ जजबात हैं।चार-पाँच वर्षो से हम दोस्तो की तरह मिलते रहे हैं ,प्रेमियों की तरह साथ साथ भविष्य के सपने भी बुनते रहे किन्तु मनोज को कभी इस तरह कमजोर होते नहीं देखा।यद्यपि उसका बस चलता तो मंगनी के दूसरे दिन ही वह शादी को तैयार था परन्तु मेरा फाइनल ईयर था     इस लिए वह मन मसोस कर रह गया। प्रतीक्षा की लम्बी घड़ियाँ हम कभी मिल कर, कभी फोन पर बात कर के काटते रहे।हम दोनो बेताबी से शादी के दिनों का इंतजार करते रहे।दूरी बर्दाश्त नहीं होती थी,साथ रहने व एक होजाने की इच्छा बलवती होती जाती थी।जैसे जैसे समय बीत रहा था ,सपनो के रंगीन समुन्दर में गोते लगाते  दिन मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे।शादी के दस दिन पहले हमने मिलना भी बन्द कर दिया था कि अब एक दूसरे को दूल्हा- दुल्हन के रूप मे ही देखेंगे परन्तु विवाह के सात दिन पूर्व बाबा जी की मौत हमारे सपनो के महल को धराशायी कर गई।
      बाबा जी की मौत का समाचार मुझे मनोज ने ही दिया था और कहा था--"बाबा जी को भी अभी ही जाना था ,हमारे बीच फिर अन्तहीन मरुस्थल का विस्तार है ,लगता है अब अकेले ही अमेरिका जाना पड़ेगा । तुमसे मिलन तो मृगतृष्णा बन गया है।'
     तेरहवीं के बाद हम दोनो गार्डन मे मिले थे।वह बहुत भावुक हो रहा था"रति तुम से दूरी अब बर्दाश्त नहीं होती।मन करता है तुम्हें ले कर अनजान जगह पर उड़ जाऊँ. जहाँ हमारे बीच न समाज हो, न परम्पराएं हों,न ये रीति रिवाज हों।दो प्रेमियों के मिलन में समाज ने कायदे कानून की इतनी ऊँची बाड़ खड़ी कर रखी हैं कि उनकी सब्र की सीमा ही समाप्त हो जाये।चलो रति हम कहीं भाग चलें ।...मैं तुम्हारा निकट सानिध्य चाहता हूँ।इतना बड़ा शहर है चलो किसी होटल में कुछ घन्टे साथ बिताते हैं।'
     जो हाल मनोज का था वही मेरा भी था,एक मन कहता था कि अपनी खींची लक्ष्मण रेखाओं को अब मिटा दें किन्तु दूसरा मन संस्कारों की पिन चुभो देता कि बिना ब्याह यह सब ठीक नहीं।वैसे भी एक बार मनोज की इच्छा पूरी कर दी तो यह चाह फिर बार बार सिर उठायेगी,नहीं यह ठीक नहीं।'
    "क्या ठीक नहीं रति क्या तुम को मुझ पर विश्वास नहीं है ? पति पत्नी तो हमें बनना ही है।मेरा मन आज जिद्द पर आया है,मैं भटक सकता हूँ रति मुझे सम्हाल लो।गार्डन के एकान्त झुट पुटे में उसने बाहों में भर कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया था।मै ने भी आज उसे यह छूट दे दी थी ताकि उसका आवेग कुछ शान्त हो किन्तु मनोज की गहरी गहरी साँसे  और अधिक समा जाने की चाह मुझे  भी बहाकाए उस से पूर्व ही मैं उठ खड़ी हुई.
      "अपने को सम्हालो मनोज,यह भी कोई जगह है बहकने की ?..मैं भी कोई पत्थर नहीं इंसान हूँ..कुछ दिन अपने को और सम्हालो।'
 "इतने दिन से अपने को सम्हाल ही तो रहा हूँ।'
      "जो तुम चाह रहे हो वह हमारी समस्या का समाधान तो नहीं है,स्थाई समाधान के लिये अब हाथ पैर मारने होंगे।चलो बहुत जोर से भूख लगी है,एक गरमागरम काफी के साथ कुछ खिला दो,फिर इस विषय में 
मिल कर कुछ सोचते हैं।'
     रेस्टोरेन्ट में बैरे को आर्डर देने के बाद मैं ने ही बात शुरू की--"मनोज तुम्हे अब एक ही काम करना है किसी  तरह अपने माता पिता को जल्दी शादी के लिए तैयार करना है, जो बहुत मुश्किल नहीं है। आखिर वह हमारे शुभ चिन्तक हैं,तुमने उनसे एक बार भी कहा कि शादी इतने दिन के लिये न टाल कर अभी कर दें ।'
 "नहीं यह तो नहीं कहा ।'
     "तो अब कह दो,कुछ पुराना छोड़ने और नए को अपनाने मे हरेक को कुछ हिचक होती ही है।अपनी इन्टरकास्ट मैरिज के लिये आखिर वह तैयार हो गये न..तुम देखना बिना सायों  के शादी करने को भी वह जरूर मान जायेंगे ।'
     मनोज के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी-"यू आर राइट रति यह बात मेरे ध्यान मे क्यों नहीं आई ? खाने के बाद तुम्हे घर छोड़ देता हूँ।कोर्ट मै रेज की डेट भी तो पास आगई है,उसे भी आगे नहीं बढ़ाने दूँगा।'
 "ठीक है अब मैरेज वाले दिन कोर्ट में ही मिलेंगे ।'
 "मेरे आज के व्यवहार से डर गई क्या ?इस बीच फोन करने की इजाजत तो है या वो भी नहीं है ?
 "चलो फोन करने की इजाजत दे देते हैं ।'
     रजिस्ट्रार के आफिस में मैरेज की ओपचारिकताएं पूरी होने के बाद हम दोनो अपने परिवार के साथ बाहर आये तो मनोज के जीजा जी ने कहा -"मनोज अब  तुम दोनो की शादी पर कानून की मोहर लग गई है, रति अब तुम्हारी हुई।'
    "ऐ जम्हाई बाबू यह इंडिया है,वह तो वीसा के लिये यह सब करना पड़ा है वरना इसे हम शादी नही मानते। हमारे घर की बहू तो रति विवाह संस्कार के बाद ही बनेगी।'
    "वह तो मजाक की बात थी मम्मी,अब आप लोग चलें मैं तो इन दोनो से पार्टी ले कर ही आऊँगा।'
    होटल में खाने का आर्डर देने ,के बाद मनोज ने अपने जीजा जी से पूछा "जीजा जी मम्मी तक हमारी फरियाद अभी पहुँची या नहीं ?'
     "साले साहब क्यो चिन्ता करते हो ..हम दोनो हैं न तुम्हारे साथ।...अमेरिका आप दोनो साथ ही जाओगे,मैं ने अभी बात नहीं की है,मैं आप की इस कोर्ट मैरिज हो जाने का इंतजार कर रहा था।आगे मम्मी को मनाने की जिम्मेदारी आपकी बहन ने ली है।..इस से भी बात नहीं बनी तो फिर मैं कमान संभालूँगा ।'
 "हाँ भैया मैं मम्मी को समझाने की पूरी कोशिश करूँगी।'
 "हाँ तू कोशिश कर ले,न माने तो मेरा नाम ले कर  कह देना "आप अब शादी करो या न करो भैया भाभी को साथ ले कर ही जायेंगे ।'
      "वाह भैया,आज तुम सचमुच बड़े हो गये हो '
 "आफटर आल अब मैं एक पत्नी का पति हो गया हूँ।'
 "ओ.के. भैया अब हम लोग चलेंगे,आप लोगों का क्या प्रोग्राम है ?'
 " कुछ देर घूम घाम कर पहले रति को उसके घर छोड़ूँगा फिर अपने घर जाऊँगा।'
 रति के गले में बाहें डालते हुये मनोज ने शरारत से उसे देखा "हाँ रति अब क्या कहती हो,तुम्हारे संस्कार अब मुझे पति मानने को तैयार हैं या नहीं ?'
 मैं ने शरारती नजरों से उसे देखा और कहा --"अब तुम नाइन्टी परसेन्ट मेरे पति हो।'
 "यानि टैन परसेन्ट की अब भी कमी रह गई है... अभी और इंतजार करना पड़ेगा ?'
 "उस दिन का मुझे अफसोस है मनोज,... पर अब मैं तुम्हारी  हूँ।'

     
         पवित्रा अग्रवाल
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