शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

शुभचिन्तक

कहानी 
  

                     शुभचिन्तक

                                                            पवित्रा अग्रवाल 
       
   आफिस से लौट कर पूरे घर मे चक्कर लगा आयी किन्तु रीना- टीना कहीं नजर नही आयीं तो मम्मी जी से पूछा --" मम्मी जी रीना- टीना कहाँ है?''
   "अपने ताऊ जी के साथ बाजार गयी हैं। घर मे दोनो गुमसुम सी बैठी थीं...थोड़ा घूम फिर आयेंगी तो मन बहल जायेगा।'
 "राकेश भाई साहब आये हैं?...कब आये?'
" दोपहर को आया था।'
 "कुछ काम था ?'
 "काम तो कुछ नहीं है, कह रहा था रवि के न रहने से यहाँ की चिन्ता लगी रहती है।'
         तभी जेठ जी के साथ रीना टीना ने खिलखिलाते हुये घर मे प्रवेश किया। बहुत दिनों के  बाद उन्हें इतना खुश देखा था। रवि के जाने के बाद शायद पहली बार वह खुल कर हँस रही थीं। मन को कुछ अच्छा भी लगा।
     "मम्मी आज तो बहुत मजा आया। ताऊ जी ने खूब घुमाया...मेरी पसंद की बटर स्काच आइसक्रीम भी खिलायी'- रीना ने चहकते हुये कहा
 "मम्मी मैं ने कोल्ड काफी पी और रवा दोसा भी खाया'- टीना ने गले मे बाँह डालते हुये कहा
 "ठीक है अब जाकर अपना होम वर्क पूरा करो वरना कल क्लास मे सजा मिलेगी।'
 "भाई साहब आप अचानक कैसे आ गये?...सोनू मोनू कैसे हैं?'
  "ठीक हैं बस ,माँ की कमी तो मैं पूरी कर नही सकता।...रवि के जाने के बाद से अब यहाँ की चिन्ता भी लगी रहती है। समय बड़ा खराब है, घर मे दो बड़ी होती लड़कियाँ हैं, बूढ़ी माँ हैं ...तुम हो पर मेल मेम्बर कोई नही है।...बड़ा सम्हल कर रहने की जरूरत है। तुम कहो तो मैं अपना ट्रान्सवर करा कर सोनू, मोनू के साथ इस शहर मे आ जाऊँ?'
  "अरे नहीं भाई साहब आप हमारे लिये परेशान न हों। एक जगह से उखड़ कर कहीं नई जगह जमना आसान नही होता।...सोनू मोनू को आप की हम से ज्यादा जरूरत है...उन्हे वहाँ बार बार अकेला छोड़ कर आप यहाँ मत आया करिये।...समय बड़ा बलवान होता है, हमने भी अब रवि के बिना जीना सीख लिया है।'
     रात को खाने पर जेठ जी ने पूछा -"रवि के बीमे के एक लाख रुपये मिल गये होंगे ,क्या किया उनका ?'
 "पचास-पचास हजार रीना, टीना के नाम बैंक में फिक्स करा दिये हैं...घर का खर्चा अपनी तन्खा से चलाने का प्रयास करूँगी।'
   "अरे बैंक मे कुछ  नही मिलता...अब तो इन्टरेस्ट और भी कम कर दिया है। यदि उस पैसे को कहीं सही जगह ब्याज पर चढ़ा दिया जाये तो तीन प्रतिशत ब्याज तो आराम से मिल जायेगा। तुम चाहो तो मुझे दे दो, मेरा एक दोस्त व्यापार बढ़ाने के लिये बाजार से ब्याज पर पैसा लेने की सोच रहा है। विश्वास का आदमी है, पैसा मारे जाने का डर भी नहीं है। वह हर महिने जो तीन प्रतिशत ब्याज देगा वह मैं तुम्हे भेज दिया करूँगा।'
    "अब तो मै फिक्स करा चुकी हूँ।'
   "तो मैं एक दिन और रुक जाता हूँ, केंसिल करा कर मुझे दे दो ...बच्चियों के काम आयेगा।  वैसे भी रीना पन्द्रह वर्ष की तो हो ही गयी है, इस वर्ष टेंन्थ पास कर लेगी, दो-तीन वर्ष मे अच्छा लड़का देख कर इसकी शादी कर देंगे...तो एक बोझ कम होगा फिर बस टीना रह जायेगी।'
    "भाई साहब मैं रीना टीना को बोझ नही समझती और न जल्दी शादी करने के पक्ष मे हूँ ।दोनो ही पढ़ने मे बहुत अच्छी हैं। रीना को टीचिंग मे बहुत रुचि है, उसे कम से कम एम.ए.तो कराना ही है।आज के समय मे लड़कियों में भी आत्मनिर्भर होने की क्षमता होना बहुत जरूरी है।'
    "तुम्हारी बात बिलकुल सही है फिर भी समय पर सही मैच मिल जाये तो पढ़ायी पूरी करने के चक्कर में
शादी को टालना नही चाहिये। पढ़ाई तो शादी के बाद भी हो सकती है।'
   "शादी के बाद कोई नही पढ़ाता। बी.ए.सेकिन्डियर के बाद मेरी भी शादी कर दी गई थी। सब ने कहा था शादी के बाद थर्ड इयर कर लेना लेकिन किसी ने नही करने दिया। यदि आज मै ग्रेजुएट होती तो इन के आफिस मे मुझे यह छोटी सी नौकरी नही करनी पड़ती फिर भी इस नौकरी से बड़ा सहारा मिला है। रहने को अपना यह छोटा सा फ्लैट भी है  वरना मैं क्या करती?'
    "तभी तो मैं कह रहा हूँ कि आजकल बैंक मे रुपये जमा कराना बेवकूफी है।मुझे दे दो,मैं ब्याज पर उठवा दूँगा।'
  "अधिक ब्याज के लालच मे पड़ कर कहीं मूल भी न डूब जाये, मैं कोई भी खतरा मोल लेना नहीं चाहती ।बैंक मे भले ही ब्याज कम मिलेगा किन्तु धन तो सुरक्षित रहेगा।'
     "बैंकों में भी धन कहाँ सुरक्षित है?...समाचार पत्रो में बैंक घोटालों के समाचार नही पढ़े क्या ?'
  "पढ़े हैं तभी तो ब्याज दर अच्छी होने के उपरान्त भी मैं ने इन कोपरेटिव बैंको में धन नही डाला.... राष्ट्रीय कृत बैंकों मे धन डाला है।'
     "जहाँ धन देने को कह रहा हूँ, वहाँ भी सुरक्षित रहेगे, मैं गारन्टी लेता हूँ...तुम्हे मुझ पर तो विश्वास  है न ?'    
    पूछने को दिल करता है कि आप की गारन्टी कौन लेगा ? आप पर ही तो विश्वास नही है किन्तु  यह कह नही पाई... "आप पर तो विश्वास  है भाई साहब पर अपनी किस्मत पर विश्वास  नही है...मुझे माफ करें भाई साहब, मै अभी एफ.डी. केन्सिल नही कराना चाहती।'
  "माँ,किरन को आप क्यों नही समझातीं,मैं इस परिवार का शुभचिंतक हूँ, इन के भले की बात ही कह रहा हूँ।'
   "देख बेटा यह इसका व्यक्तिगत मामला और अपना भला बुरा वह समझती है। मैं इस चक्कर मे नही पड़ना चाहती।'
     मैं भी अब और बहस के मूड मे नही थी इस लिये वहाँ से उठ आई किन्तु मन खिन्न हो गया था। बच्चों की वजह से मन की पीड़ा छिपा कर मुस्काने का अथक प्रयास करती रहती हूँ किन्तु लोगों को यह भी मंजूर नही है। अनाहूत से ये भाई साहब शुभचिन्तक होंने का ढोंग करते, सुझावों का टोकरा उठाये न जाने क्यों बार-बार आकर यादो की झील मे कंकड़ी फेंक जाते हैं। उनकी असलियत मुझ से छिपी नही है। उन्हें न जाने कब रेस कोर्स मे पैसे लगाने का चस्का लग गया था और इसी शौक ने उन्हे बरबाद कर डाला...उन्होने जगह जगह से दस प्रतिशत ब्याज का लालच दे कर हजारों रुपये का कर्जा ले रखा था। जिसे न लौटाने पर लोग उनकी जान के पीछे पड़ गये थे...नौकरी भी जाते जाते बची थी। उसी समय में अपना दुखड़ा रो कर दस हजार रुपये रवि से भी उधार ले गये थे जो आज तक वापस नही किये।
     कर्जदाताओं से परेशान हो कर वह अपनी पत्नी को पीहर से एक लाख रुपये लाने के लिये यातनाएं देने लगे थे पर उन्हो ने साफ मना कर दिया था कि मै रिटायर्ड पिता से उनके जीने का सहारा नही छीन सकती। पति द्वारा प्रदत्त परेशानियों के जंगल मे फँसी जिठानी जी ने आत्महत्या के रूप मे मुक्ति का मार्ग तलाश लिया था।... बच्चों का मोह भी उन्हें नही रोक पाया था।
      इन भूली बिसरी बातों के याद आने से मेरे मन मे नफरतों के कैक्टस फिर उगने लगे हैं। मै समझ गयी हूँ कि उनका यों बार- बार आना भाई के परिवार से मोह नही है। इस संकट के समय में भी विश्वासों की आड़ ले कर वह छलने ही आये हैं। मुझे किसी साजिश की बू आने लगी है। किसी तरह उनके आने पर रोक लगानी होगी। ...पर कैसे ?
       मैं मम्मी जी के पास जाने को अपने कमरे से बाहर निकली थी कि भाई साहब की आवाज सुन कर वहीं ठिठक कर खड़ी हो गयी। वह धीमी आवाज मे कह रहे थे -"माँ मैं देख रहा हूँ कि इधर किरन में बहुत बदलाव आया है...बहुत चालाक हो गई है...काम पर तो जाती ही है, कभी कोई भा गया तो हो सकता है आगे पीछे शादी भी करले फिर तुम्हारा क्या होगा। रवि के रुपयों पर कुछ हक तो तुम्हारा भी है माँ, कुछ रुपये तुम्हे अपने नाम भी करा लेने चाहिये थे।'
 
     "क्यों, क्या मेरे प्रति सारा फर्ज रवि का ही था, तेरा कुछ भी नही है ? क्या मैं तेरी माँ नही हूँ ? यदि उसने दूसरी शादी कर भी ली तो मैं तेरे पास आ कर रह लूँगी...मुझे रखेगा न ?'    
    "यह भी काई पूछने की बात है ?...पर मैं तो कुछ और कहना चाह रहा था लेकिन आप समझ नही पा रहीं। माँ, मैं सोच रहा था कि आगे पीछे दूसरी शादी तो मुझ को भी करनी ही है यदि किरन तैयार हो जाए तो उस से भी तो हो सकती है। मेरे  बच्चों  को माँ मिल जायेगी, रीना-टीना को बाप मिल जायेगा और घर की इज्जत घर मे रहेगी और आप तो जैसे रह रही हैं वैसे ही रहती रहेंगी।'
    "आज तो तूने अपने मन की बात मुझ से कह ली पर आगे से मत कहना। किरन के बारे मे कभी ऐसा सोचना भी नही। ऐसा कभी नही होगा।...अपनी पत्नी को तो चैन से जीने नही दिया....मैं किरन की जिन्दगी बरबाद नही होने दूँगी।'
      "तुम मेरी माँ हो कि दुश्मन...तुम्हे मेरी जरा भी चिन्ता नही है, पराये घर से आई बहू की इतनी चिन्ता है।मेरी पत्नी को मरे तीन साल हो गये लेकिन तुम ने कभी एक बार भी मेरी शादी के बारे मे नही सोचा। क्या मैं तुम्हारा सौतेला बेटा हूँ ? '
     "तेरी शादी कर के मैं किसी की जिन्दगी खराब नही करना चाहती। भले ही तू कोर्ट से छूट गया पर मैं अब भी तुझे बहू का हत्यारा मानती हूँ। भले ही तूने हत्या नही की किन्तु तेरे जुल्मो ने उसे आत्महत्या की राह पर खड़ा अवश्य कर दिया था।'
      "माँ बस चुप करो,किरन सुनेगी तो मेरे बारे मे क्या सोचेगी।...मुझे नहीं मालुम था कि तुम्हारे मन में मेरे लिये इतना जहर भरा है। मैं ही पागल हूँ जो अपना काम धन्धा और बच्चों को छोड़ कर बार बार तुम सब के हाल चाल जानने के लिए भाग कर आता हूँ।'
     "आगे से मत आना ...हालचाल जानने की इच्छा हो तो फोन कर लेना।'

         भाई साहब की बातें सुन कर मैं अवाक रह गई थी। उनके मन मे पक रही इस खिचड़ी का अंदाजा तो मुझे सपने मे भी नही था।  मैं  तो बस यही अंदाजा लगा पाई थी कि उनकी नीयत धन हड़पने की है पर वह तो बहुत दूर की सोच रहे हैं...अच्छा है उनकी असलियत मैं जान गयी हूँ। मम्मी जी के प्रति दिल श्रद्धा से भर उठा। कभी वह भी एक जिम्मेदारी लगती  थीं पर अब उनकी उपस्थिति जेठ की तपती दोपहर में बरगद की छाँव सी है। भगवान उन्हे लम्बी उमर दे।
     भाई साहब को उनकी औकात तो मम्मी जी बता ही चुकी थीं। मैं ने भाई साहब या मम्मी जी को इसका आभास भी नही होने दिया कि मैं उनकी बातें सुन चुकी हूँ। मैं चुपचाप उल्टे पाँव अपने कमरे मे लौट आई।      
 
                               ( मेरे दूसरे कहानी संग्रह -- 'उजाले दूर नहीं '   में से )     
       
       
       -पवित्रा अग्रवाल

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