मंगलवार, 16 अगस्त 2016

मैं भगोड़ी नहीं

                               



कहानी
                                         मैं भगौड़ी नहीं

                                                                                     पवित्रा अग्रवाल

       चम्पा बेसब्री  से अपने पति चरण सिंह का इंतजार कर रही थी। चरण सिंह के आते ही चम्पा ने  पत्र उसके हाथ में दे दिया।
 अनजानी लिखावट देखकर उसने पूछा, "यह किस का पत्र है ?'
 चम्पा राज भरे अंदाज में मुस्कुराई, "बूझो तो जानें ?'
 "नहीं, मैं इस लिखावट को नहीं पहचानता।'
 "यह खत मेरी सासू-माँ का है।'
 "क्यों मजाक करती हो ? मेरी ताई यानी तुम्हारी सासूजी को मरे तो पॉच साल बीत गए फिर उन्हें तो लिखना-पढ़ना भी नहीं आता था।'
   "अरे, यह पत्र तो मेरी सगी सासूमाँ यानी तुम्हारी अम्मा का है। तुम्हें तो शायद उनकी शक्ल भी याद नहीं होगी। उन्हें देखने व उनसे मिलने का मेरा बहुत मन है। अभी तक तो हमारे पास उनका पता नहीं था पर अब हम उनके पास जाएँगे।'
      "उनके पास जाने का नाम मत लेना। कोई जन्म देने से माँ नहीं बन जाती। उन्होने माँ का कौन सा फर्ज निभाया है ? तीन साल की उम्र में मुझे ताऊ-ताई के सहारे छोड़ कर किसी के साथ भागते वक्त उन्होंने मेरे बारे में एक पल के लिए भी नहीं सोचा था। उनको गए तीस साल हो गए, तब से एक बार भी पलट कर नहीं देखा कि मैं जिंदा भी हूँ या मर गया। अब इतने सालों बाद उन्हें मेरी याद आई है, जरूर कोई मतलब होगा।'
    "उस जमाने में विधवा विवाह का चलन नहीं था इसीलिए उनके चले जाने को गलत माना गया होगा।'
    "चम्पा, उन्होंने विवाह किया हो या न किया हो पर मेरा बचपन तो यही ताने सुनते बीता है कि इसकी माँ, इसकी ताई के भाई के साथ भाग गई थी। तब से ताई का वह भाई कभी अपनी बहन से भी मिलने नहीं आया।'
     "पता नहीं तुम्हारी अम्माँ की क्या मजबूरी रही होगी वर्ना ऐसे ही कोई औरत अपने इकलौते बेटे को छोड़ कर नहीं जाती। तुम्हें तो इकतरफा बात ही मालुम है...खैर पहले यह पत्र पढ़ लो।'
 उसने पत्र पढ़ना शुरू किया...
    "चरण सिंह को अपनी माँ रामदेवी का आशीर्वाद पहुँचे।
 बेटा,तीस साल अपनी छाती पर पत्थर रख कर तुझे भुलाए रखने की कोशिश करती रही लेकिन एक पल को भी नहीं भुला पाई। अभी कुछ दिन पहले अपने गाँव की एक बेटी इस गाँव में ब्याह कर आई है। बात करने पर उसी से पता चला कि पूरा गाँव ही नहीं बल्कि तू भी मुझ से नफरत करता है। मुझे वहाँ "भगोड़ी' के नाम से जाना जाता रहा है...
     उसी लड़की से पता चला कि तेरा ब्याह हो चुका है..तेरे दो बच्चे भी हैं। तू शहर में नौकरी करता है और तेरे ताऊ व ताई की मौत हो चुकी है। तू ने गाँव की जमीन व मकान बेच कर शहर में घर बना लिया है।
 उसी लड़की से मैंने तेरे शहर का पता मँगवाया है। तुझे एक बार देखने को मन तरस रहा है...बहू और बच्चों को लेकर आ जा। कोई माँ अपने बच्चे को नहीं छोड़ सकती। मजबूरियों की दलदल में फँस कर मुझे गाँव,घर व अपना बेटा छोड़ना पड़ा था। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे तू या कोई दूसरा मुझ से नफरत करे।
     तेरे यहाँ आने पर अपनी दुख भरी कथा तुझे सुनाऊँगी फिर भी तुझे लगे कि मैंने कोई

पाप' किया है तो कभी मेरी शक्ल मत देखना...एक बार मुझे सफाई देने का मौका दे। मुझे तेरा इंतजार रहेगा।
                      तेरी दुखियारी माँ, राम देवी।'

      तीस घंटे का ट्रेन और बस का सफर कर के चरण सिंह पत्नी व बच्चों समेत गाँव पहुँचा था। वहाँ रामदेवी नाम से उन्हें कोई नहीं जानता था। जग्गा की पत्नी रामदेवी बताने पर बुजुर्ग लोगों ने उनके दरवाजे तक पहुँचा दिया था। वहाँ वह "बुआ' के नाम से जानी जाती थीं। नई पीढ़ी के लोग तो उन्हें जग्गा की पत्नी के नाम से भी नहीं जानते थे।
     जब वे लोग उनके घर पहुँचे तो वह सिलाई- मशीन पर कुछ काम कर रही थीं। गाँव की तीन-चार औरतें उनके पास बैठी थीं। शक्ल से तो नहीं, उम्र के हिसाब से चरण सिंह ने अपनी माँ को पहचान लिया। वह अकेला जाता तो माँ भी उसको न पहचान पातीं। साथ में पत्नी व दो बच्चों को देख कर वह फौरन पहचान गर्इं।
       "चरण सिंह, मेरा बेटा', कह कर माँ ने उसे गले से लगा लिया। उनके आँसू बह रहे थे किंतु वह कुछ भी महसूस नहीं कर पा रहा था। माँ को एक बार देखने के मोह में वह आ तो गया किंतु मन में उनके प्रति गुस्से में कमी नहीं आई थी। माँ ने चम्पा व दोनों बच्चों को भी सीने से लगा लिया था।
     जल्दी ही पड़ोस के घर से उनके लिए खाना बन कर आ गया था। खा पी कर चरण सिंह बराबर की कोठरी में जाकर लेट गया। बच्चे भी उसके पास जाकर सो गए। चम्पा माँ के पास ही बैठी थी। उनके बीच हो रही बातचीत वह कोठरी में लेटा सुन रहा था।
   "अम्माँ, आप किन हालात में चुपचाप गाँव, अपना घर व इकलौता बेटा छोड़ आई थीं..यह तो मैं नहीं जानती लेकिन गाँव में आपके बारे में जो कुछ कहा जाता रहा है उस पर मुझे कभी विश्वास नहीं हुआ।'
 "बेटा,मैं चुपचाप घर से भाग कर नहीं आई थी। मेरी जेठानी को सब पता था। मेरे भागने की योजना उन्होंने ही बनाई थी। हाँ जेठजी को इस बारे में कुछ पता नहीं था।'
 "अम्माँ, आपकी आप-बीती सुनना चाहती हूँ।'
 "चरण सिंह का बापू बहुत अच्छा था, मुझे बहुत चाहता था। जेठ-जेठानी को कोई औलाद नहीं थी। वे चरण सिंह के बापू को अपने बेटे की तरह प्यार करते थे। मैं उन्हें अपने सास-ससुर जैसी ही इज्जत देती थी।....
 ब्याह कर गाँव आते ही मेरी खूबसूरती मेरी दुश्मन बन गई। घर का पानी मुझे मुहल्ले के कुँए से भर कर लाना पड़ता था। गाँव के सभी लड़के मुझे "भौजी' कह कर पुकारते थे और इसी नाते हँसी-ठट्ठा भी करते रहते थे। कई बार तो मुझे कुँए से पानी भी नहीं खींचने देते थे, खुद ही खींच देते थे। उनमें एक गाँव के चौधरी का बेटा किशन था। पहले तो वह ऐसे ही मजाक करता रहता था, बाद में छेड़छाड़ भी करने लगा। मुझे गलत रास्ते पर खींचने लगा। एक बार गलत हरकत करने पर मैंने उसको धक्का दे दिया था। तभी कहीं से मेरे पति आ गए। उन्होंने किशन को दो हाथ मार दिए और धमका कर चले आए। तभी से वह हमारा दुश्मन बन गया था। वह गुंडा था, पुलिस में भी उसका उठना-बैठना था।...
       गाँव में हमारी अनाज पीसने की चक्की थी। एक दिन चक्की से लौटते समय चरण सिंह के बापू ट्रैक्टर के नीचे आ गए। पुलिस उसको एक्सीडेंट मानती थी किंतु पूरा गाँव जानता था कि वह हत्या थी, पर गुंडों के डर से किसी ने गवाही नहीं दी। जेठजी ने भी बात को दबा देना ही सही समझा। वह कहने लगे, "जल में रह कर मगर से बैर करना अच्छा नहीं है। हमारे कोई औलाद नहीं है...छोटा भाई रहा नहीं। दो भाइयों के बीच अब यही एक ही औलाद है। अगर चरण सिंह को भी कुछ हो गया तो हम बरबाद हो जाएँगे। किशन का क्या है, वह तो गुंडा है, पैसे के बूते पर सजा से बचता रहेगा।'
     "जेठजी ने मेरा कुँए पर जाना भी बंद करवा दिया। पानी भरने के लिए एक नौकर रख लिया था। एक दिन वह नहीं आया तो जेठानी के साथ मैं पानी लाने चली गई। किशन भी वहाँ पहुँच गया। उसने मेरी जेठानी की भी शर्म नहीं की और बोला, "मर्द तो तेरा मर गया, मेरे घर बैठ जा, रानी बना कर रखूँगा।'
    तब  इच्छा तो हुई थी कि उसे झापड़ मार दूँ लेकिन जेठ जी की चेतावनी याद आ गई और मैंने खुद को रोक लिया।
   बस ऐसे ही दिन बीत रहे थे। जेठजी भी शराब पीने लगे थे। एक दिन नशे में मेरे कमरे में घुस आए और बोले- "चरणा की माँ, तुझे सफेद धोती में देखकर मेरा कलेजा मुँह को आता है। देख, तेरे लिए कितने सुंदर रंग की रेशमी साड़ी लाया हूँ। तू आज से सफेद कपड़े मत पहनना।'
 "वह बहक रहे थे। मैंने हाथ पकड़ कर उन्हें कोठरी से बाहर कर दिया और दरवाजा बंद कर के रात भर रोती रही। अभी तक तो घर के बाहर खतरा था पर अब मैं अपने घर में भी सुरक्षित नहीं थी।...पीहर जा नहीं सकती थी, वहाँ भाभी माँ को ही चैन नहीं लेने देती थी, मेरे जाने से तो वह भी बेघर हो जातीं। बस मरने को जी चाहता था। उन्हीं दिनों जेठानी का भाई जग्गा अपनी बहन के पास आने लगा था जो देखने- सुनने में तो अच्छा ही था। जेठानी का कहना था कि दूर गाँव में रह कर अच्छा कमाता है।
    "जग्गा के ऐबों के बारे में या तो जेठानी जी को पता नहीं था या उन्होंने मुझे बताया नहीं...लेकिन जेठानी को जेठजी के लक्षणों के बारे में पता लग गया था। वह मुझे जग्गा से शादी कर के गाँव छोड़ देने की सलाह बार-बार देने लगी थीं। उनका कहना था - "तू जग्गा से शादी करके दूसरा घर बसा ले। घर- बाहर से तेरी हिफाजत करना अब मेरे बस की बात नहीं है। चरण सिंह की तू चिंता मत कर। तुझे तो और बच्चे जो जाएँगे। चरणा को मैं अपनी औलाद की तरह पाल-पोस कर बड़ा कर लूँगी।'
 "मेरे जाने का सब इंतजाम जेठानी जी ने ही किया था। रातों रात उन्होंने पोटली में मेरे गहने, कपड़े, नकदी बाँध कर मुझे दे दिए और गाँव से चले जाने को कहा फिर भी मैं पुलिस के लिए एक चिट्ठी लिख कर डाक के डब्बे में डाल आई थी कि मैं अपनी इच्छा से शादी कर के जग्गा के साथ जा रही हूँ।'
 "जेठानी जी ने यह भेद जेठ जी को भी नहीं बताया कि मैं उनकी रजामंदी से जा रही हूँ। पर उन्हें मेरी असलियत चरण सिंह को बड़े हो जाने के बाद बता देनी चाहिए थी। मुझे मालूम है, गाँव में मुझे "भगोड़ी', "छिनाल' और न जाने कितने नामों से जाना जाता रहा है। यहाँ तक कि मेरा बेटा भी मुझ से नफरत करता है। मैं नहीं जानती कि तब मैंने गलत किया था या सही, बस इतना जानती हूँ कि मेरे भागने का कारण मेरी जवानी या देह सुख नहीं था।...
  "यहाँ  आकर भी लगा कि छली गई हूँ। एक खाई से बचाने के लिए मुझे दूसरी खाई में धकेल दिया गया था।'
 "यहाँ ऐसा क्या हुआ ?...क्या जग्गा भी आपको सताते थे ?'
 "मुझे यहाँ  आकर भी कभी कोई सुख नहीं मिला। जग्गा का एक दोस्त लाखन था जो डाकू था। उसने गाँव से मुझे यहाँ लाने में जग्गा की मदद की थी। मंदिर में हमारी शादी भी उसी ने कराई थी।भौजी -भौजी' कह कर मेरे आगे-पीछे घूमता था। उसकी भी नीयत मुझ पर खराब थी। मेरे सामने कई बार जग्गा से कह चुका था, "इतनी सुंदर जोरू को भगा कर लाने में मैंने भी तेरी मदद की थी, मुझे भी मेरा हिस्सा दे।'
    "एक दिन लाखन मेरे कमरे में घुस आया। मैं खटपट की आवाज सुन कर अचानक जाग गई। सामने उसे खड़ा देख कर मैंने अपनी दोनों टाँगें उठा कर उसे दे मारी तो उसका सिर दीवार से टकराया और खून बहने लगा। उस दिन तो मैं चंडी बन गई थी। लाखन की साजिश में मेरा पति भी शामिल था। मैंने हँसिया हाथ में उठा लिया था और दोनों को धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया। शोर गुल सुनकर गाँव वाले भी जमा हो गए थे। उसके बाद से मैंने कभी जग्गा को अपने घर में नहीं घुसने दिया।'
 "अम्मा, अब वह कहाí हैं ?'
 "जेल में।...किसी डकैती व हत्या के सिलसिले में दोनों को उम्र क़ैद हो चुकी है। इन गाँव वालों ने मुझे अपना लिया है। मैं यहाँ पूरे गाँव की बुआ हूँ, सभी मेरी बहुत इज्जत करते हैं। इनके छोटे-मोटे झगड़े तो मैं यों ही सुलझा देती हूँ।.....
 
    अब मुझे ये लोग सरपंच बनाना चाहते हैं लेकिन मैंने मना कर दिया। अभी मैं इज्जत की जिंदगी जी रही हूँ, सरपंच बनते ही लोग मुझे कठपुतली की तरह नचाना चाहेंगे...मेरी सुख-शांति सब खत्म हो जाएगी... बिना किसी पद के ऐसे ही मुझ से जितना बन पड़ता है, दूसरों की मदद करने की कोशिश करती हूँ। मेरी सलाह मान कर ये लोग लड़कों को ही नहीं लड़कियों को भी पढ़ाने लगे हैं।'
 "अम्मा अब तो आपको हमारे साथ चलना होगा। हम आपको साथ लेकर ही जाएँगे।'
     "नहीं चम्पा, अब तो मुझे यहीं जीना है, यहीं मरना है...बस एक बार तुम सबको देखने को मन भटक रहा था। अपनी सफाई भी देना चाहती थी...मैं नहीं जानती कि मेरी आप बीती सुन कर चरण सिंह के मन में मेरे प्रति जमी नफरत कम होगी या नहीं या वह अब भी मुझे ही दोषी समझता रहेगा...किंतु मन का दुख कह कर सालों से जमा बोझ जरूर हलका हो गया है... जा, अब सो जा...बहुत देर हो गई है।'
      चरण सिंह ने यह सब कुछ सुना था किंतु चाहते हुए भी तब वह माँ के पास नहीं जा पाया।
 दूसरे दिन सुबह-सुबह चरण सिंह माँ के पास जाकर बोला, "अम्मा कितना दिन चढ़ गया, कब तक सोती रहोगी ? अब उठो भी...'
 चरण सिंह द्वारा "अम्मा' कहे जाने पर रामदेवी निहाल हो गई। बेटे से "अम्माँ' शब्द सुनने के लिए उसके कान तरस रहे थे। खुशी से एक बार फिर उसकी आँखों से आँसू झरने लगे।
 "यह क्या अम्मा, तुम रो रही हो ? अब तुम्हारे रोने के दिन गए...अब मैं इन आँखों में आँसू नहीं आने दूँगा। अब मैं आपको हमेशा के लिए अपने साथ ले जाऊँगा।'
 "दादी, आप नहीं चलेंगी तो हम यहीं भूख हड़ताल कर देंगे,' पोते ने कहा।
 "अम्मा, अब तो आपको चलना ही होगा," चम्पा ने भी कहा।
    "बेटा, मैं इस गाँव की मिट्टी में, यहाँ की जिंदगी में ऐसी रच बस गई हूँ कि अब यहाँ से उखड़ कर नई जगह, नए माहौल में अपने को ढाल नहीं पाऊँगी। यहाँ करने को मेरे पास बहुत कुछ है। यहाँ जिंदगी बेकार व बेमकसद नजर नहीं आती। शहर में मेरे पास करने को कुछ नहीं होगा...पर इतना वादा करती हूँ कि साल में एक बार कुछ दिनों के लिए तुम्हारे पास जरूर आया करूँगी। हर साल गर्मी की छुटिटयों में कुछ दिनों के लिए बच्चों को साथ ले कर तुम यहाँ आया करना मुझे अच्छा लगेगा। इस तरह मिलना-जुलना होता रहेगा।'
     "जैसी आपकी मर्जी...हम आपकी इच्छा के खिलाफ कुछ नहीं करना चाहते। कुछ दिनों के लिए ही सही, अभी तो मेरे साथ चल रही हो न ? देखो अब मेरी इस विनती को मत ठुकराना।'
 "ठीक है बेटा, मैं कुछ दिन को  तेरे साथ जरूर चलूँगी।' अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा।
 

ईमेल --  agarwalpavitra78@gmail.com



--

1 टिप्पणी:

  1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं