सोमवार, 1 दिसंबर 2014

एक और अदालत

कहानी      
                                                  
                                          एक और अदालत   

                                                                             पवित्रा अग्रवाल
  
          र के सामने आटो से उतर कर मैं उसे रुपये दे ही रही थी कि मेरे सामने से एक लड़की गुजर गई ,उसने तो मुझे  नहीं देखा पर मैं उसको देखते ही पहचान गई कि अरे यह तो अपनी वृन्दा है। मैं तेजी से चलते हुए या कहूँ कि लगभग दौड़ते हुए उसके पास पहुँची और पीछे से उस के कंधे पर हाथ रख दिया। पलट कर उसने पीछे देखा और मुझे देखते ही वह खुश हो गई --"अरे भाभी आप ...कैसी हैं ?'
        "मैं तो ठीक हूँ वृन्दा पर तुम तो भाभी को बिल्कुल भूल ही गई। शादी के बाद तुम्हें पहली बार देख रही हूँ।..देखो वो सामने ही तो मेरा घर है,चलो घर चलते हैं।'
       "अरे नहीं भाभी मैं आप को कैसे भूल सकती हूँ ,आप से तो मेरे जीवन की कई यादें जुड़ी हुई हैं पर आज मैं आपके  साथ नहीं चल सकूँगी ।मोनू को मम्मी के पास छोड़ कर आई हूँ,वह उन्हे परेशान कर रहा होगा।मैं ने आपका घर देख लिया है,एक-दो दिन में आपके पास आती हूँ ।'
       घर आने का वादा करके वृन्दा तो चली गई ,पर मैं कुछ वर्ष पीछे पहुँच गई।वृन्दा मेरी हम उम्र तो नहीं थी ,मुझ से तीन चार वर्ष छोटी ही रही होगी पर हम दोनो में दोस्ती का एक रिश्ता बन गया था।शादी के बाद रजत के साथ इस सुदूर प्रान्त में आने पर हम  वृन्दा के मकान में ही किराये पर रहने लगे थे ।रजत के आफिस चले जाने के बाद मैं पूरे दिन घर में अकेली रह जाती थी । रजत लंच ले कर जाते थे तो करीब करीब सब काम उनके सामने ही निबट जाता था।भरे पूरे परिवार से आई थी इस लिए यहाँ अकेलापन कुछ ज्यादा ही परेशान करता था और मैं बहुत उदास हो जाती थी।पास पड़ौस मे सभी तेलगू भाषी थे ।उन्हे हिन्दी नहीं आती थी और मुझे तेलगू नहीं आती थी।बस ऐसे ही क्षणों में मकान मालिक की बेटी वृन्दा कभी कभी मेरे पास आजाती थी।  उसे बहुत अच्छी हिन्दी आती थी और वह खूब वाचाल थी।उस से मिल कर मेरी उदासी ना जाने कहाँ गायब हो जाती थी।उसके परिवार में भी उसका कोई हम उम्र न था।पास में कोई सखी सहेली भी नहीं थी ।इस के साथ ही जवानी में कदम रखते ही घर वालों ने उस पर कुछ अघिक ही पाबन्दियाँ लगा रखी थीं।उसे भाई कालेज छोड़ने जाता था वही कालेज से ले कर आता था।
         कभी मुझे अपनी गृहस्थी के लिये कुछ सामान लेने बाजार जाना होता था तो वृन्दा की मम्मी से अनुमति ले कर मैं उसे अपने साथ ले जाती थी।वृन्दा ने बताया था कि भाभी मेरे घर वाले तो मुझे किसी सहेली के साथ भी बाहर नहीं जाने देते, पता नहीं आपके साथ बाहर जाने की परमीशन कैसे मिल जाती है।
         एक दिन हम दोनो बाजार जा रहे थे तब हमें बाजार में एक लड़का मिला और उसे देखते ही वृन्दा ऐसे चहकी जैसे उसकी लाटरी का नंबर निकल आया हो।उसने परिचय कराया था-" भाभी यह मेरी बुआ का बेटा नागेश है..और नागेश यह हैं मेरी सखी- सहेली, भाभी कुछ भी कहलो,वैसे मैं इन्हें भाभी कहती हूँ।'
         नागेश खुश होता हुआ बोला-"फिर तो यह मेरी भी भाभी हुर्इं,मैं भी आपको भाभी कह सकता हूँ न ?'
        "हाँ ,क्यों नहीं।'
       "चलिए फिर इसी बात पर पास के रेस्ट्राँ में कुछ ठण्डा गरम हो जाये ।'
 मुझे दुविधा में देख कर वृन्दा मेरा हाथ पकड़ कर लगभग घसीटते हुए बोली -"चलिये न भाभी देखिये बाहर कितनी गरमी है, बैठ कर कुछ ठंडा पीते हैं।'
         वह लोग आपस में तेलगू भाषा में बात करते रहे जो मुझे समझ में नहीं आती थी ।बीच बीच में हिन्दी में बात करके मुझ से भी कुछ इस तरह जुड़ने का प्रयास करते जैसे बेसब्र बच्चे को टाफी देकर बहलाते हैं।'
       लौटते समय वृन्दा बोली - "भाभी एक रिक्वेस्ट हैं घर में किसी से भी यह मत कहना कि हमें मार्केट में नागेश मिला था।'
        उसके इस आग्रह पर मैं कुछ चौंकी और मुझे कुछ दाल में काला भी नजर आया पर नागेश रिश्ते में उसका भाई लगता था और भाई बहनों में कुछ गलत होगा ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती थी फिर क्या वजह है कि वह इस मुलाकात को अपने घर वालों से छुपाना चाहती है अत: मैं ने उस से पूछ ही लिया था -"वृन्दा, नागेश  तुम्हारा रिश्तेदार है फिर तुम इस मुलाकात को घर वालों से छिपाना क्यों चाहती हो ?'
       "इसकी एक वजह हैं भाभी ,हम दोनों के परिवारों की आपस में नहीं पटती या यों समझिए कि आपस में दुश्मनी है।..हमारे मिलने की बात पर घर में तूफान खड़ा हो जायेगा,बस इसी लिये उन्हें नही बताना चाहती।'
         "हाँ रिश्तों में ऐसा होता है, कभी कभी इतनी कड़वाहट आजाती हैं कि वह एक दूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं ।'
         पर अब नागेश अक्सर बाजार में मिलने लगा था शुरू में तो मुझे लगता था कि यह एक महज इत्तेफाक है किन्तु वह इत्तेफाक नहीं था। शायद फोन आदि पर पहले दोनों का प्रोग्राम तय हो जाता था । वृन्दा की मम्मी मुझ से बहुत स्नेह करती थीं कभी कभी वह अपने काम के लिए भी मुझे वृन्दा के साथ बाहर जाने के लिए कह देती थीं या वृन्दा ही उनसे कोई फरमाइश कर के मेरे साथ बाजार जाने का रास्ता निकाल लेती थी।
          उन में कहीं कुछ ऐसा था जो मुझे सही नहीं लग रहा था । वे मात्र भाई बहन नहीं हैं , उन में जरूर   कुछ अलग तरह का लगाव है ,पर वह क्या है यह मैं नही जान पाती थी।यद्यपि मै ने उनके बीच कभी कोई अशोभनीय हरकत नहीं देखी थी । उनके लगाव के बीच कहीं  कोई उलझन,कोई गुत्थी भी अवश्य थी।
         एक दिन वृन्दा चिड़िया की तरह फुदकती और चहकती हुई मेरे पास आई और कोई गीत गुनगुनाते हुए मेरे गले में बाहें डाल कर ऐसे खड़ी हो गई जैसे कुछ कहना चाहती हो।मैं ने उसे छेड़ते हुये कहा-"क्या बात है आज तो बड़ी रोमान्टिक मूड में लग रही हो ,कोई मिल गया है क्या ?'
       "हाँ भाभी आप तो मेरी दोस्त की तरह हो,मैं आपको अपनी राजदार बनाना चाहती हूँ।...बस यही डर लगता हैं कि आप यह बात कहीं मेरे घर वालों से न कह दें।...क्या मैं आप पर विश्वास कर सकती हूँ ?'
       "हाँ वृन्दा क्यों नहीं,यदि तुम मेरे साथ कुछ शेयर करना चाहती हो तो कर सकती हो।'
 उसने एक सहेली की तरह मेरे गले में फिर बाहें डाल दीं और कान में फुसफुसाई-"भाभी  आइ एम इन लव'
        "क्या ...आर यू सीरियस ?'
        "हन्ड्रेड परसेन्ट सीरियस भाभी,आइ एम इन लव ।'
 "अच्छा ,बड़ी बहादुर हो गई हो ,कौन है वो...क्या साथ पढ़ता है ?'
 "नहीं भाभी मेरे दकियानूसी माँ बाप ने मुझे को.एड.में पढ़ने नहीं भेजा, मैं तो गर्ल्स  कालेज में पढ़ती हूँ लेकिन वह जो भी है आप उसे जानती हैं।'
         "मैं कैसे जानती हूँ..क्या वह कभी तुम्हारे या मेरे घर आया हैं ?'
 "वह हमारे घर तो नहीं आता पर आप उस से कई बार मिल चुकी हैं।'
       "पहेली मत बुझाओ वृन्दा ,मैं तो तुम्हारे साथ बस एक ही शख्स से मिली हूँ और वह है नागेश।'
    "बिल्कुल सही पहचाना आपने,मैं नागेश से ही तो प्यार करती हूँ।'
     "लेकिन वह तो तुम्हारी बुआ का बेटा है,रिश्ते मैं तुम्हारा भाई हुआ।उस से शादी कैसे हो सकती है ?'
     "भाभी, हम लोगों में बुआ के बेटे से शादी करने का रिवाज है यानि कि हम बुआ के बेटे से इश्क लड़ा सकते है... कुछ लोगों में मामा से भी हो जाती है ।'
      यह मेरे लिए नई जानकारी थी।अब तक नागेश के बारे में मैं इतना ही जानती थी कि वह वृन्दा की बुआ का बेटा है किन्तु दोनों परिवारों में पटती नहीं है।इस से ज्यादा न तो कभी उसने बताया और न मैंने जानने की कोशिश की।पर वृन्दा की बात सुन कर अब मेरे मस्तिष्क में अनेकानेक प्रश्न व जिज्ञासायें थीं जैसे वह क्या करता है... कहाँ तक पढ़ा है...इन दोनो परिवारों में झगड़े की क्या वजह है...क्या यह दूरी पाटी जा सकती है....क्या दोनो परिवार इस रिश्ते को स्वीकृति देंगे..?
 पूछने पर वृन्दा ने बताया था कि मेरी एक अक्का (बड़ी बहन ) थीं। उन की शादी नागेश के अन्ना (बड़े भाई ) से तय थी ,वह पढ़ाई पूरी करने अमेरिका गया हुआ था।जब वह लौट कर आया तो उसकी मार्केट वैल्यू बढ़ चुकी थी । उसने एक मिनिस्टर की लड़की से शादी कर ली।लड़की एम.सी.ए. थी...अब तो वे अमेरिका में सैटिल हो चुके हैं।...रिश्ता टूटने का अक्का को इतना सदमा लगा कि उन्होंने आत्म हत्या करली।बस तभी से दोनो परिवारों के बीच दुश्मनी हो गई ।'
         "नागेश क्या करता है ..कहाँ तक पढ़ा है ?'
 "पढ़ने मे उसका भाई जितना तेज था यह उतना ही फिसड्डी निकला।पढ़ने में उसका मन कभी नहीं लगा।जैसे तैसे इंटर पास किया था और अब अपने पापा का बिजनस संभालता है।'
        "क्या तुम दोनो के घर वाले इस शादी के लिए तैयार हो जायेंगे ?'
 "नहीं भाभी यह बहुत मुश्किल है बल्कि असंभव कहिये ।..अक्का की आत्महत्या के बाद पुलिस केस बन गया था । नागेश के भाई और पिता को पुलिस ने अरेस्ट भी कर लिया था पर मंत्री जी के प्रभाव से वह लोग बच गये । ..इन हालात में दोनो परिवारों में से कोई भी तैयार नहीं होगा।'
     "जब तुम यह सब जानती थीं फिर भी प्यार करने के लिए तुम्हें उसी परिवार का लड़का मिला ?'
     "लेकिन प्यार सीमाओं में कहाँ बंधता है...वह सोच विचार कर या प्लान बना कर तो किया नहीं जाता बस हो जाता है। सच भाभी मैं ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा पर हो गया ।'
 "तुम बी.एससी. कर रही हो वह इंटर पास है यदि पिता ने उसे अपने व्यापार से अलग कर दिया तो उस के पास तो ऐसी कोई क्वालीफिकेशन भी नहीं कि वह अपने पैरो पर खड़ा हो सके ।'
     "बस यही तो अड़चन है,तभी तो हम शादी के निर्णय को टाल रहे हैं।'
 "क्या तुम्हारे घर वालों को इस विषय में कुछ मालुम है ?'
      "दो साल पहले एक बार मुझे पापा ने उस के साथ देख लिया था बस तभी से मुझ पर इतनी पाबंदियाँ लग गई थीं ..पर अब मैं प्यार में उस से आगे निकल गई हूँ या उस से मिलती हूँ यह बात अभी उन्हें नहीं पता है...वरना मेरी पढ़ाई छुड़वा कर घर बैठा लेते ।'
     "प्यार में तुम कितना आगे बढ़ गई हो वृन्दा यह तो मैं नहीं जानती,मैं यह भी नहीं जानती कि तुम्हारे प्यार का क्या हश्र होगा..बस मैं इतना ही कहूँगी कि प्यार को अभी प्यार ही रहने देना, देह की सीमायें मत लाँघना और थोड़ी समझदारी से काम लेना । हमारे समाज में अब भी कदम कदम पर छोटी सी भूल के लिए भी  लड़की को ही बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है ।'
        "नहीं भाभी मेरा आप से वादा है मैं ऐसा कोई गलत काम नहीं करूँगी ।'
 इस के दो तीन दिन बाद ही वह बदहवास सी मेरे पास आई थी-"भाभी अभी तो मेरी बी.एससी. भी पूरी नहीं हुई और घर में मेरी शादी की चर्चा जोर शोर से होने लगी है,कोई अच्छा लड़का मिल गया तो यह तो महीने दो महीने में मेरी शादी कर देंगे।...आप मम्मी को समझायें न कि ग्रेजुएशन पूरा हो जाने दे।'
       "देखो वृन्दा यदि तुम्हारी मम्मी ने मुझ से तुम्हारी शादी के बारे में कोई बात की तो मैं उन्हें समझा सकती हूँ , वरना मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ।'
        एक दिन रजत के आफिस जाते ही वह फिर मेरे पास आई,कुछ परेशान दिख रही थी-"भाभी मुझे आप से एक फेवर चाहिए।आप किसी काम का बहाना बना कर मुझे बाजार लेजाने की मम्मी से परमीशन ले लीजिए।..मुझे बहुत जरूरी काम है।'
       "ऐसा क्या काम है जो मैं तुम्हारी मम्मी से झूठ बोलूँ ?'
 "आप से झूठ नहीं बोलूँगी आज हम कोर्ट में अपनी शादी के लिए एप्लीकेशन देने जा रहे हैं ,इसके एक महीने बाद हम कोर्ट में शादी कर सकेंगे।आपके काम के बहाने निकल कर मैं यह काम कर पाऊँगी ।'
      "सॉरी वृन्दा,  मैं आंटी से झूठ बोल कर तुम्हारे इन उल्टे-सीधे कामों में तुम्हारी कोई मदद नहीं  कर सकती ।'
       "जो मैं कर रही हूँ वह गलत हैं ?'
 "हाँ बिल्कुल गलत हैं,तुम्हारी यह क्षणिक भावुकता,एक गलत निर्णय तुम्हारे जीवन भर का पछतावा बन कर रह जायेगा ।'
      "नही भाभी ऐसा कुछ नहीं होगा मैंने बहुत सोच विचार कर यह निर्णय लिया है....प्लीज भाभी मेरी अंतिम बार यह मदद कर दीजिये फिर आप से कभी कुछ नहीं माँगूगी।'
        "सॉरी वृन्दा,मैं ऐसा नहीं कर सकूँगी ।'
 फिर उन्ही दिनों हम मकान बदल कर दूसरी जगह चले गये थे।अचानक एक दिन वृन्दा की मम्मी उस की शादी का कार्ड देने आई।कार्ड खोल कर मैंने वर का नाम पढ़ा तो मन को बड़ी राहत   मिली।इसका मतलब वृन्दा ने नागेश का ख्याल दिल से निकाल दिया।चलो अच्छा हुआ।आन्टी ने बताया  था लड़का दिल्ली में इंजीनियर है,शादी भी वहीं जा कर करनी है।'
          कभी कभी आंटी से मुलाकात होती थी तो वृन्दा की राजी खुशी के समाचार भी मिल जाते थे,एक बार आन्टी ने  कथा कराई थी तो समाचार दिया कि वृन्दा के बेटा हुआ है।


         क दिन अचानक उसे अपने घर आया देख कर मुझे बहुत खुशी हुई।मैंने उसे टोका--"वृन्दा मोनू को क्यों नहीं लाई।'
       "भाभी वो सो रहा  था तो मैं अकेली ही चली आई ।'
  वह उदास थी फिर भी खुश दिखने का प्रयास  कर रही थी पर उसकी उदासी मेरी नजरों से बच नहीं सकी।मैं ने उसे छेड़ते हुऐ कहा--"लगता है अकेली आई हो,मल्लेश साथ नहीं आये ?'
          'नहीं भाभी, मल्लेश तो कुछ महीनो के लिये अमेरिका गये हुये हैं.... अब आने वाले हैं।'
 "ओ तो पति वियोग की वजह से चेहरा कुम्हालाया हुआ है।'
 "नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है'
         मुझे ऐसा लगा जैसे वह किसी उलझन में है और कुछ कहना चाहती है।मैंने पूछ ही लिया-" फिर क्या बात है,इस तरह  अनमनी सी क्यों हो ?...कोई परेशानी है तो मुझे बताओ,कह कर मन हल्का हो जाऐगा।'
         अचानक उसकी आँखों में घटाए छा गई और वह सुबकने लगी फिर उसने अपने को संभला और बोली  --"भाभी एक आप ही तो थीं जिसे कभी मैं ने  अपना हमराज बनाया था और आपने भी हमेशा सही सलाह दे कर  मेरे गलत कदमों को रोकने की ईमानदार कोशिश की थी ।...आप ने ठीक ही कहा था कि कभी कभी एक गलत निर्णय जीवन भर का पछतावा बन जाता है।..मेरी खुशियों को भी ग्रहण लग चुका है।'
        " मैं कुछ समझी नहीं तुम किस गलत निर्णय की बात कर रही हो...मल्लेश से शादी करना एक गलत निर्णय था या नागेश से शादी न करना ?'
       "लगता है आपको कुछ नहीं मालुम .. आपके समझाने के बावजूद मैं ने नागेश से शादी करली थी और यह मेरी जिन्दगी की एक बड़ी भूल थी।..उसकी चाहत ने मेरी जिन्दगी में धुंआ ही धुंआ भर दिया है ।'
       "यह तुम क्या कह रही हो,तुम्हारी शादी का कार्ड पा कर मैं ने तो यही सोचा था कि तुम ने नागेश को अपने जीवन से निकाल दिया है...फिर तुमने मल्लेश से शादी क्यो व कैसे करली ?'
     "नागेश से शादी के समय हम दोनो ने यह फैसला किया था कि कोर्ट में शादी करने की बात हम किसी को बताये बिना अपने अपने घर में रहेंगे...किन्तु शादी के बाद वह मुझे इधर उधर  बुला कर रिश्ता कायम करना चाहता था ।मेरी यह शर्त थी कि पहले अपने घर में मेरे लिए जगह बनाओ या फिर आत्म निर्भर हो जाओ तभी हम मिलेंगे तो वह मुझे ब्लैक मेल करने लगा कि "मेरी बात नहीं मानोगी तो मैं तुम्हारे घर में सब को बता दूँगा कि हमने शादी करली है फिर वह तुम्हें घर से निकाल देंगे और मजबूरी में तुम्हें मेरे पास आना होगा।'...आखिर उस से तंग आकर मैं ने यह बात घर में खुद ही बता दी, यह सुन कर तो घर में तूफान आ गया।'
 "फिर क्या हुआ ?'
        "पापा का बी.पी. तो एक दम से हाई हो गया था ,फिर भी वह यह सदमा झेल गए ।मम्मी-पापा ने पूछा अब तू क्या चाहती है...मैंने कहा गल्ती तो मुझ से हुई है पर अब मैं उस के साथ नहीं रहना
चाहती।..नागेश के घर वाले भी यही चाहते थे ..उस के घर वालों ने  नागेश से कहा या तो घर छोड़ दे या फिर तलाक नामें पर साइन कर दे..क्यों कि वह भी तेरे साथ नहीं रहना चाहती है...जबर्दस्ती करेगा तो फिर पुलिस व कोर्ट कचहरी के चक्कर में फँसेगा और हम इस में तेरा कोई साथ नहीं देंगे।...इस तरह उसे घेर घार कर ,दबाव बना का उसके घर वालों के सहयोग से उस से तलाक हो गया और आपस में यह फैसला भी किया कि शादी की बात लोग नही जानते तो तलाक की बात भी अपने तक ही सीमित रखेंगे ।'
          "इसका मतलब मल्लेश को भी इस विषय में कुछ नहीं पता ?'
 "नहीं मल्लेश इस विषय में कुछ नही जानते।'
        "शायद इसी लिये शादी भी दिल्ली जाकर की थी ?'
 "नहीं, हम दिल्ली ही जा कर शादी करे यह तो मल्लेश के घर वालों की इच्छा थी क्यों कि वह इतनी दूर बरात ले कर नहीं आना चाहते थे..मम्मी.पापा को भी यही ठीक लगा था ।'
       "पर अब क्या प्रोबलम है,क्या मल्लेश को यह बात पता चल गई है ?'
 "मल्लेश तो बाहर गये हुये हैं,मैं अपने ससुराल में थी तभी एक गुमनाम पत्र ने यह भेद खोल दिया और सास ससुर अब यह ताना देने लगे हैं कि तुम्हारा यह बेटा भी कहीं उसी की औलाद तो नहीं क्यों कि वह आठ महीने में ही पैदा हो गया था। मल्लेश के आने पर देखिये क्या होता है।'
        "क्या नागेश से कभी तुम्हारे पति पत्नी वाले संबन्ध बने थे ?'
 "नहीं कभी नहीं'
       "फिर तो यह बच्चा मल्लेश का ही है।'
 "हाँ भाभी, पर मल्लेश इस सच पर विश्वास क्यों करेंगे ?'
       "मल्लेश पढ़ा लिखा इस जमाने का लड़का है, हो सकता हे कुछ समझदारी से काम ले वरना डी.एन.ए.टैस्ट से यह सिद्ध हो जायेगा कि वह उस का पिता है या नहीं।'
     "हाँ भाभी ऐसे टैस्ट के विषय में तो मैं ने भी सुना है,चलो इस से उनको यह तो विश्वास हो जायेगा कि मोनू उन्ही का बेटा हैं।रहा सवाल मेरी पहली शादी और तलाक का,जो उनसे छिपाया गया था,तो जब गल्तियाँ की हैं तो उनके परिणाम भुगतने को तैयार तो रहना ही होगा । मैं कल दिल्ली वापिस जा रही हूँ ,दो दिन बाद मल्लेश की अदालत में हाजिर जो होना है।'



                                           ( मेरे दूसरे कहानी संग्रह -उजाले दूर नहीं 'से  )


पवित्रा अग्रवाल

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शनिवार, 8 नवंबर 2014

पुराना प्रेमी

कहानी                          पुराना प्रेमी                                                              
                                                                      
                                                                                  पवित्रा अग्रवाल 
 
       निर्मला के सभी पत्र हमेशा मेरे ऑफिस के पते पर आते रहे किंतु कभी भी मेरी इच्छा उसके किसी पत्र को खोल कर पढ़ने की नहीं हुई। परंतु उस दिन की डाक से रिडायरेक्ट होकर आया वह गुलाबी लिफाफा पता नहीं क्यों मुझे बार-बार अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था। जेब में रख कर मैंने उसकी तरफ से ध्यान हटाने की बहुत कोशिश की किंतु उत्सुकता बढ़ती ही गई। आखिर मैं स्वयं को रोक न पाया। बड़ी सावधानी से लिफाफा खोला ताकि पत्र को पढ़ कर फिर से उसे बंद कर सकूँ और उसके खोले जाने का निर्मला को शक भी न हो। पत्र में लिखा था- 

 प्रिय निर्मला,
         तुम तो मेरे दिल की धड़कन हो। बहुत दिनों से बीमार चल रहा हूँ, पर डाक्टर मेरी बीमारी नहीं पकड़ पाते। बीमारी तो मेरे मन की है, डाक्टर भला कैसे जानेंगे ?तुम्हारी बेरुखी ही मेरी लाचारी है। अपने सात-आठ पत्रों का तुम से कोई जवाब न पाकर मैं बहुत निराश हो चुका था। इसलिए तुम्हें भूलने की कोशिश में लगा रहा। इसी प्रयास में दो वर्ष गुजार दिए। इस बीच मैंने तुम्हें एक भी पत्र नहीं लिखा। मुझे विश्वास  हो चला था कि तुम्हें भूल गया हूँ किंतु वह मेरा भ्रम था। कल किसी काम से अलमारी खोली तो अचानक तुम्हारे पत्रों का पुलिंदा नीचे गिर गया और तुम्हारी याद फिर से ताजा हो गई।
            तुम्हारी बेरुखी को देख कर नहीं लगता कि वे पत्र कभी तुमने लिखे थे। तुम तो बहुत संवेदनशील लेखिका हो...तुम इतनी पत्थर दिल कैसे बन गई ? काश, मैं भी तुम्हारी तरह कठोर बन पाता। माना कि मुझ से गलती हुई थी, पर उसके लिए तुमसे कितनी बार क्षमायाचना कर चुका हूँ। आज आवेश में आकर तुम्हारे सभी पत्र जला डाले। अब पछता रहा हूँ कि वही तो मेरे जीवन का सहारा थे।
            लगभग दो वर्ष से तुम्हारा कोई समाचार नहीं है। पता नहीं तुम वहीं हो या तुम्हारा पता बदल गया है। हो सकता है इस बीच तुम्हें कोई मनमीत मिल गया हो और तुमने विवाह कर लिया हो...मेरे घर वाले मेरी शादी के पीछे पड़े हैं। उन्हें स्वीकृति देने से पहले मेरी तरफ से यह अंतिम प्रयास है...इस बार भी असफल रहा तो अपने सूनेपन को भरने का प्रयास करूँगा...यदि यह पत्र तुम्हें मिल जाए तो कुछ लाइनें जरूर लिख देना।
   
                                                                                     तुम्हारा,
                                                                                                      आकाश.
 
       पत्र पढ़ कर मैं हैरान रह गया कि निर्मला यानी मेरी पत्नी देखने में कितनी भोली-भाली लगती है। यह तो छुपी रुस्तम निकली। कौन है यह आकाश ? निर्मला का कोई पुराना प्रेमी लगता है। उसने अपनी किस गलती की चर्चा की है ? ऐसा क्या हो गया था कि आकाश के बार-बार माफी माँगने पर भी निर्मला ने उसे माफ नहीं किया और न ही उसके सात-आठ पत्रों का उत्तर दिया...पता नहीं उनके संबंध कहां तक पहुँचे थे ? दोनों के बीच कुछ तो रहा ही होगा...तो क्या उसने मुझसे छल किया है ?
             निर्मला से मेरी शादी हुए दो वर्ष हो चुके हैं। शादी से पहले मन में अनेक शंकाएं थीं कि पता नहीं पत्नी कैसी मिलेगी ? उससे मेरी पटेगी भी या नहीं, कहीं झगड़ालू आदत की न हो। यदि नहीं पटी तो जीवन बोझ बन जाएगा। इसलिए जब हमारे एक परिचित मेरे लिए निर्मला का रिश्ता लेकर आए थे तो मैं सावधान हो गया था। मुझे उन से ही पता चला था कि वह कहानियाँ व कविताएं लिखती है और अनेक पत्रिकाओं में छप भी चुकी है। मैंने अपने उन परिचित से कहकर निर्मला की कुछ कहानियाँ व लेखो की प्रतिलिपियाँ मँगवा लीं। पढ़ कर उसके विचारों, उसके जीवन दर्शन, समाज व समस्याओं के प्रति उसके सुलझे हुए सोच से मैंने महसूस किया कि वह सरल व सहज व्यक्तित्व की होगी।
        निर्मला से मिलने के बाद उसके प्रति मेरे मन में बनी छवि और भी पुष्ट हुई। हम दोनों में आपस में जीवन व समाज के अलग-अलग विषयों पर चर्चा हुई फिर हमने एक-दूसरे को पसंद कर घर वालों को अपनी स्वीकृति दे दी।
       इन दो वर्षों के साथ में कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं कहां फंस गया हूँ। जीवन शांत व स्थिर गति से बीत रहा है किंतु यह पत्र पढ़ कर दिमाग में अजीब सी हलचल मच गई है। निर्मला पर मुझे शक होने लगा है। बातें तो वह ऐसी करती है कि आदमी प्रभावित हुए बिना न रहे। एक बार कह रही थी -"नाम का जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। मैंने तो तन-मन से अपने नाम के अनुरूप बने रहने का प्रयास किया है।'जीवन में चारित्रिक श्रेष्ठता की खास कायल लगती है।
          एक बार भूल से मैंने अपने कॉलेज जीवन के एक प्रेम प्रसंग की चर्चा उसके सामने कर दी तो वह उखड़ गई। बड़ी मुश्किल से समझा पाया। पूछने पर उसने बताया कि "प्रेम को मैं बुरा नहीं मानती किंतु उसे फैशन या शौक नहीं समझना चाहिए। सच्चा प्रेम हमेशा पवित्र होता है। उसे निभाना चाहिए। प्रेम में शादी से पहले शारीरिक संबंध उस प्रेम को कलंकित करते हैं।'
         मैं सोच में पड़ गया कि यदि उसे आकाश से प्रेम था तो उसने निभाया क्यों नहीं ? उनकी शादी क्यों नहीं हुई ? कहीं ऐसा तो नहीं कि आकाश ने उस प्रेम को कलंकित कर दिया हो इसलिए नाराज होकर निर्मला उससे दूर चली गई ?
         बातों के दौरान एक बार उसने कहा था कि हमारी शादी भले ही अरेंज है किंतु मेरा प्यार जिस्मानी नहीं है...तुम पास रहो या दूर किंतु मुझे दुनिया का कोई भी प्रलोभन आकर्षित नहीं कर सकता। जीवनसाथी से एकनिष्ठता का मेरा व्रत है और चाहूँगी कि मेरा साथी भी ऐसा ही हो। इन दो वर्षों के साथ में मैंने उसे वैसा ही पाया है जैसा वह दावा करती है। आत्मसंयमी, मितभाषी, सरल, सहज, स्नेही...फिर यह पत्र ?... लगता है किसी ने जानबूझ कर हमारे शांत जीवन में हलचल मचाने का प्रयास किया है...किसी ने पुरानी दुश्मनी निकाली है।
          अब शक का अंकुर फूट चुका था। कहीं मन से एक आवाज यह भी आई कि यदि शादी से पहले उसका कोई प्रेम-प्रसंग रहा भी है तो तू ही कौन सा दूध का धुला है। शादी से पहले तेरे भी कई प्रेम-प्रसंग रहे हैं। यदि निर्मला को उनका पता चल जाए तो पता नहीं वह तुझे इतना प्यार करे या नहीं। हो सकता है छोड़ कर ही चली जाए, क्योंकि उसने एक बार कहा भी था कि कोई तुम्हारा प्रेम-प्रसंग रहा भी हो तो मुझे कभी बताना नहीं। अब तू उसके एक प्रेम-प्रसंग के खयाल से जल-भुन कर खाक हुआ जा रहा है...सच में पुरुष बहुत छोटे दिल का होता है। खुद कितना भी दिलफेंक रहा हो किंतु पत्नी सती-सावित्री ही चाहिए...यदि निर्मला के नाम आए इस पत्र में कुछ सच्चाई है तो मेरा उसके साथ सहज जिंदगी जीना मुश्किल हो जाएगा...मुझे तो अभी से उससे नफरत होने लगी है।
           ऑफिस में मन नहीं लगा तो आधे दिन की छुट्टी लेकर घर की तरफ चल दिया। मन में अनेक विचार आ रहे थे। सोच रहा था कि यदि निर्मला का यह कोई पुराना प्रेमी निकला तो उसको बेइज्जत कर के घर से निकाल दूँगा। उसके साथ मैं शांत व प्रेमपूर्ण जीवन नहीं जी पाऊँगा। मैं ऐसी स्त्री के साथ नहीं रह सकता जिसके जीवन में पहले से कोई प्रेमी रहा हो... अच्छा है, अभी हमारे कोई संतान नहीं है.... आसानी से अलग हुआ जा सकता है। घर जाकर पहले उसे पत्र पढ़ने को दूँगा फिर जवाब माँगूंगा। ऑफिस छोड़ने से पहले मैंने पत्र को बड़ी सफाई से चिपका दिया था।
         घर पहुँच कर मैंने दरवाजे की घंटी बजाई लेकिन काफी देर तक कोई आवाज नहीं आई। शक यकीन में बदलने लगा कि हो न हो कोई अंदर जरूर है। दरवाजा खोलने में भला इतनी देर लगती है। शादी से पहले जिसके किसी से संबंध रहे हों शादी के बाद वह कोई गुल न खिलाए, यह कैसे हो सकता है। कहीं वह यहां भी कोई गुल तो नहीं खिला रही ? मैं तो कभी टाइम से पहले ऑफिस से घर आया नहीं।..घर में एक ही दरवाजा है। यदि आज कोई घर में है तो रंगे हाथों पकड़ा जाएगा। मैंने फिर घंटी का बटन दबाया और देर तक दबाए रखा।
        "अरे कौन है, जरा भी सब्र नहीं है...बैल बजाने की भी तमीज नहीं,' कह निर्मला ने दरवाजा खोला।
      दरवाजे पर मुझे देख कर एकदम से घबरा गई -- "तुम, इस समय कैसे ?.. तबीयत तो ठीक है ?'
      "क्यों, गलत समय पर आ गया क्या ? मुझे इस समय घर नहीं आना चाहिए था ?.. किवाड़ खोलने में इतनी देर लगती है क्या ?'
      "अरे नहीं, तुम कभी इस तरह जल्दी नहीं आए थे इसलिए पूछा, कहीं तुम्हारी तबीयत तो खराब नहीं हो गई ? परेशान भी दिख रहे हो ?.. नहा रही थी, आने में थोड़ा समय तो लगेगा न ? रोज तुम्हारे ऑफिस जाने से पहले नहा लेती हूँ...आज नहीं नहा पाई थी.. सोचा महरी काम कर जाए उसके बाद नहा लूँगी वरना बीच में वह घंटी  बजा कर चली जाएगी...अभी थोड़ी देर पहले ही वह काम करके गई तो मैं नहाने चली गई।'
         निर्मला के भीगे केशों से पानी की बूंदें गिर रही थीं, गुलाबी रंग के गाउन में वह बड़ी प्यारी लग रही थी। मन हुआ अभी बाहों में भर कर उसे चूम लूँ पर तभी फिर पत्र का ध्यान आ गया। मैं पत्र उसके हाथ में थमा कर जानबूझ कर टॉयलेट चला गया। सोचा पहले उसे पत्र पढ़ लेने दूँ फिर थोड़ी देर बाद आकर पता करूँगा कि किसका पत्र है ? देखूँ क्या जवाब देती हैं सती-सावित्री जी।
           मैं बाथरूम से बाहर आया तो वह किसी सोच में डूबी हुई थी। पत्र उसके हाथ में फड़फड़ा रहा था। मैंने सोचा था कि वह पत्र पढ़ कर जल्दी से इधर-उधर छुपा देगी किंतु ऐसा नहीं हुआ था।
      "किस सोच में डूब गई ? यह किस का पत्र है ?'
       वह हँसी- "है एक पागल प्रेमी का...लो तुम भी पढ़ लो...पढ़ कर जल जाओगे।'
    मैंने उससे इस सरल व सहज व्यवहार की कल्पना नही की थी। कितनी सहजता से पुराने प्रेमी का पत्र मुझे दे रही थी। जरूर यह भी उसकी कोई चाल होगी। लेखिका तो है ही। मुझे सुनाने के लिए फौरन कोई कहानी गढ़ ली होगी।
           पत्र तो मैं पहले ही पढ़ चुका था फिर भी उससे लेकर पढ़ने का अभिनय करने लगा।
 पत्र देने के साथ वह कहने लगी -- "कैसे-कैसे लोग व चरित्र हैं समाज में...यह मेरे जीवन की एक न भुलाए जाने वाली घटना है। यह पत्र यदि किसी दूसरे के हाथ लग जाता तो न जाने मेरे बारे में क्या-क्या सोचता।'
           "कौन है यह आकाश, तुम्हें यह कैसे जानता है ?'
         "बात तीन-चार साल पुरानी है... मैं बहुत बड़ी लेखिका तो नहीं हूँ। कभी-कभी लिख लेती हूँ। थोड़ा-बहुत जो छपा है उस पर कभी-कभी पाठकीय पत्र भी आ जाते हैं। मेरी कोई रचना पढ़कर एक लड़की का पत्र आया था। उसका नाम काजल था। उसकी भी कुछ रचनाएं छपी थीं। उसने अपनी कुछ प्रकाशित रचनाएं मुझे पढ़ने के लिए भेजी थीं। उसका एक भाई था आकाश। वह भी लिखता था व कई पत्रिकाओं में छप चुका था। ऐसा काजल ने ही पत्र में लिखा था। काजल ने मुझ से पत्र-मित्रता का आग्रह किया था। उसने अपनी जो उम्र लिखी थी उस हिसाब से वह मेरी हम उम्र ही थी।... उससे पत्रों का आदान-प्रदान होने लगा....
          काजल पत्रों में मुझ से कुछ ज्यादा ही खुल गई थी। अपनी व्यक्तिगत समस्याएं मुझे लिख कर कभी-कभी मेरी राय भी माँगा करती थी। अपने पत्रों में कई बार उसने अपने प्रेमी का जिक्र भी किया था जिसके साथ वह अंतर्जातीय विवाह करने वाली थी। उसने लिखा था कि घर वाले इस विवाह के लिए तैयार नहीं हैं। वे अपनी जाति में ही विवाह करना चाहते हैं। मोटा दहेज देने की ताकत उनमें नहीं है इसीलिए वे अभी तक कोई उपयुक्त वर नहीं चुन पाए हैं। मैं भी उनकी इस तलाश से थकने व जाति  से मोहभंग होने का इंतजार कर रही हूँ...हो सकता है हार कर सहमति दे ही दें। तुम्हारे विचार से मुझे क्या करना चाहिए ?
         उसने घुमा-फिरा कर मुझ से कई बार जानने का प्रयास किया कि क्या मैं भी किसी से प्यार करती हूँ। अंतर्जातीय विवाह के विषय में मेरे क्या विचार हैं। मैं माता-पिता की पसंद की शादी करूँगी या अपनी पसंद की। एक बार उसने एक परिचर्चा के सिलसिले में मेरे विचार जानने चाहे थे। विषय था,   "सपनो के धरातल पर मेरे वो,' साथ में उसने मेरा फोटो भी माँगा था।
         "यह पत्रों का सिलसिला करीब दो साल चला। एक बार मुझे एक दिन के लिए उसके शहर जाने का मौका मिला। मैंने उसे अपने प्रोग्राम के बारे में लिख दिया। अपने ठहरने की जगह व वहां का फोन नंबर भी दे दिया। वहां पहुँच कर मुझे काजल के भाई आकाश का फोन मिला। उसने बताया था कि काजल को अचानक आवश्यक काम से बाहर जाना पड़ गया है, वह मुझ से मिलने को कह गई है। क्या में आपके पास मिलने आ सकता हूँ ?'
        -"तो ये पत्र तुम्हें उसी काजल के भाई आकाश ने लिखा है ? क्या तुम उससे मिली थीं ? उससे ऐसी क्या गलती हो गई थी जिसे तुम माफ नहीं कर पाई  और वह लगातार माफी माँगता रहा ?' मैंने बीच में ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
         "अभी वही सब बताने जा रही हूँ...मैंने उसे मिलने की स्वीकृति दे दी थी। वह मुझ से मिलने आया था और करीब एक घंटा मेरे साथ रहा। उसी दिन शाम को मुझे लौटना था। वह मुझे स्टेशन भी छोड़ने आया था।'
         "लौटने के पाँच-सात दिन बाद मुझे एक पत्र मिला। राइटिंग देखकर ही मैं पहचान गई कि काजल का पत्र है।काजल ने लिखा था कि मेरा भाई आकाश आपको बहुत चाहने लगा है। पहली बार उसने आपको आपके ही शहर की किसी साहित्यिक गोष्ठी में देखा व सुना था। तभी उसके मन में आपके प्रति चाह जागी थी। वह तभी आपसे मिलना चाहता था किंतु साहस नहीं जुटा सका। वह पढ़ा-लिखा युवक है तथा स्वतंत्र लेखन करता है, पत्रकारिता में भी उसकी रुचि है। अब उसे बैंक में नौकरी भी मिल गई है।... उसका सपना है कि उसकी पत्नी भी राइटर ही हो। शायद आप में रुचि लेने का यही एक कारण है। वह आपसे शादी करना चाहता है...उस दिन वह आपसे मिला था किंतु चाह कर भी आप से कुछ कह नहीं पाया...क्या आप उसकी जीवनसंगिनी बनना पसंद करेंगी ? अंत में उसने जो कुछ लिखा था वह बहुत चौंकाने वाला था।'
         "ऐसा क्या लिखा था उसने ?'
          "उसने लिखा था कि मैंने एक गलती की है, एक शरारत की है, एक झूठ बोला है...वैसे काजल सचमुच मेरी बहन है किंतु काजल के नाम से अब तक मैं "आकाश' आप को पत्र लिखता रहा हूँ...आप विश्वास  करें, इस शरारत के पीछे मेरी कोई बुरी भावना न थी और न ही मेरे मन में कोई छल या कपट था। आपको देखने के बाद आप से परिचय की इच्छा हुई। उन्हीं दिनों आप की एक कहानी पत्रिका में पढ़ने को मिली। आपका पता भी मुझे पत्रिका में मिल गया। लड़के के नाम से पत्र लिखता तो शायद आप मुझे जवाब ही न देतीं। बस, तभी खयाल आया कि जब मैं काजल नाम से अपनी रचना प्रकाशित करा सकता हूँ तो काजल नाम से आप को पत्र क्यों नहीं लिख सकता ?.....
      पत्रों में मैं आप से प्रेम, विवाह, दहेज, अंतर्जातीय विवाह आदि अलग-अलग विषयों पर प्रश्न कर आपके सुलझे विचारों से प्रभावित होता रहा। पत्रों द्वारा यह भी अंदाजा लग गया कि आप अविवाहित हैं और अभी तक इस प्रेम रोग से मुक्त हैं...आपको जीवनसाथी बनाने की इच्छा बलवती होने लगी...इसलिए अब इस रहस्य से परदा उठाना जरूरी हो गया था...मेरे शादी के प्रस्ताव पर विचार करें व उससे मुझे अवगत कराएँ।'
        फिर क्या हुआ ?'
       "उससे शादी में मेरी कोई रुचि नहीं थी और इतने दिनों तक गलत नाम से पत्र लिखना एक तरह का धोखा ही था...बस मैंने उसके किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया। यद्यपि हर पत्र में वह गलत नाम से पत्र लिखने की गलती के लिए क्षमा माँगता रहा...बाद में उसके पत्र आने बंद हो गए, आज कई वर्षों बाद फिर उसका यह पत्र आया है। है न अजीब घटना  ?'
        इस घटना को सुन कर मैंने राहत की साँस ली। मैं इन कुछ घंटों में न जाने क्या-क्या सोच गया था। यदि मैं धैर्य से काम न लेता, शक व जलन वश निर्मला पर सीधे चरित्रहीनता का आरोप लगा देता, उसे जलील करता तो आज बात बहुत बिगड़ गई होती। वह बहुत स्वाभिमानी है। अपने प्रति अविश्वास  से दुखी होकर न जाने वह क्या कर बैठती। हो सकता मुझे छोड़ कर चली जाती या गुस्से में आत्महत्या कर लेती...मेरा प्यारा सा नीड़ टूट कर बिखर जाता...इस शक की आग में जल कर न जाने कितने घर तबाह हो गए हैं...असल में कई बार वह सब सच नहीं होता जो प्रकट में नजर आता है। पर पत्र पढ़ कर कोई भी यही अनुमान लगाता कि ये दोनों पुराने प्रेमी रहे हैं।
         "अरे, तुम क्या सोचने लगे ? एक बात बताओ, इस पत्र का क्या करूँ ?'
         "करना क्या है। इन आकाश साहब को पत्र लिखो। जवाब तो तुम्हें तभी दे देना चाहिए था जब उसके कई पत्र आए थे। तभी स्पष्ट कर देना चाहिए था कि उससे शादी करने में तुम्हारी कोई रुचि नहीं है। बात तभी समाप्त हो जाती। हो सकता है अब तक वह भी शादी कर चुका होता। खैर, अब उसे पत्र लिख दो और सूचना दे दो कि तुम्हारी शादी हो चुकी है।'
        "तुम ठीक कह रहे हो, लिख दूँगी...एक बात बताओ यदि तुमने यह पत्र ऑफिस में खोल कर पढ़ लिया होता तो तुम मेरे बारे में क्या सोचते ? क्या तुम्हें यह नहीं लगता कि शादी से पहले मेरा इस आकाश से कुछ चक्कर था ?'
           मैं ने अभिनय करते हुए कहा-- "ऐसे एक क्या चार पत्र भी तुम्हारे प्रति मेरे विश्वास  को कम नहीं कर सकते...तुम्हारे साथ रह कर मैं तुम्हें इतना तो पहचान ही गया हूँ...अपने प्रति तुम्हारी निष्ठा पर मुझे कभी शक नहीं हो सकता...तुम्हें पाकर मैं बहुत खुश हूँ।'
       मैं निर्मला के कुछ और निकट चला गया था फिर निर्मला ने प्यार से मेरे कंधे पर अपना सिर टिका दिया।

                                                       ( मेरे  दूसरे  कहानी संग्रह - उजाले दूर नहीं से   )
        
          -पवित्रा अग्रवाल
 
email - agarwalpavitra78@gmail.com

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