शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

रेखा के पार


1997 में प्रकाशित मेरे पहले कहानी संग्रह    'पहला कदम' में से एक कहानी ---

कहानी
                    रेखा के पार


                                                             पवित्रा अग्रवाल

          स्टेशन पर उतरते ही निगाहें भाई को तलाश ने लगी थीं.भले ही घर दूर नहीं है, जगह भी जानी पहचानी है,घर अकेली भी आसानी से पहुँच सकती हूँ फिर भी विश्वास था कि भाई जरुर आयेंगे .अब तो उनके पास कार भी है ,हो सकता है भाभी भी साथ आजायें.किसी को भी न पाकर मन उदास हो गया .
         ऑटो कर के पहुची तो घर पहचान नहीं पाई.शायद पूरा तुड़वाकर नए सिरे से बनवाया गया है .नेम प्लेट पढ़ कर कालबेल बजाई तो दरवाजा एक नेपाली ने खोला और पूंछा ‘आप मीता मेमसाहब है न ,साहब की बहन ?’
       मेरे हाँ में सिर हिलाने पर वह मेरा सामान अन्दर ले गया और बोला ‘साहब और मेमसाहब घर पर नहीं हैं ,दो तीन घंटे में आजायेंगे .विक्की बाबू  कालेज गए हैं .’
  भाई भाभी के कई बार किये गए आग्रह पर इस बार मैं ने यहाँ आने का मन बनाया था लेकिन बच्चों ने मूड ख़राब कर दिया –‘आप को जाना है तो जाओ ,हमें वहां बोर होने नहीं जाना’ तब पति ने हिम्मत बंधाई थी –‘घर व बच्चों की चिता मत करो ...पांच छह दिन मैं संभाल लूँगा ‘तुम मिल आओ .’ फिर भी बच्चों को पहली बार अकेला छोड़ कर आते मन दुखी था .इसी लिए पांच दिन का प्रोग्राम बनाया था .दो दिन आने जाने के हो गए ,तीन दिन यहाँ रह लूंगी . 
      घर आये मुझे दो घंटे हो चुके थे .स्नान करके खाना भी खा चुकी थी पर भाई  ने फोन द्वारा यह जानने की भी ओपचारिकता नहीं निभाई थी कि मैं घर पहुंची भी हूँ या नहीं .आते ही भाभी ने कहा ‘ सौरी मीता हम तुम्हें घर में नहीं मिल सके .हमारे एक मित्र सपरिवार चार वर्ष बाद विदेश से आये हैं ,हम उन्हें डिनर पर बुलाना चाह रहे थे लेकिन शाम को वे फ्री नहीं थे इसलिए होटल में उन्हें लंच पर बुला लिया था .हम लोग विक्की को भी पढाई के लिए विदेश भेजना चाह रहे हैं… इन मित्र से कुछ मदद मिल सकती है .लंच के बाद उन्हें उनके घर तक छोड़ना पड़ा ...बस इसी में देर हो गई .तुमने खाना तो ठीक से खाया न ? मैं बहादुर को सब समझा कर गई थी ’
       मैं सोच रही थी उनके यह मित्र चार साल बाद आये हैं तो मैं भी तो कोई रोज आकर नहीं बैठी रहती .मैं भी छह वर्ष बाद यहाँ आई हूँ ,थोडा ख्याल तो मेरा भी करना चाहिए था .अभी उन्हें आये पंद्रह बीस मिनट ही हुए होंगे की भाभी भाई से बोलीं – ‘सुनो तुम थक गए होगे ...जाकर थोड़ी देर सो लो फिर शाम को तुम्हें क्लब भी जाना होगा .’
      फिर भाई ने दो चार वाक्यों में पति व बच्चों की खैरियत पूछने की ओपचारिकता निभाई और जम्हाई लेते हुए अपने कमरे में चले गए .तभी भाभी ने सूचना दी -‘मीता तीन घंटे बाद मुझे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ एक स्लम एरिया में जाना है .वहां निरीक्षण के लिए मंत्री महोदय आ रहे हैं .घर में बोर होगी, तुम भी चलो न .सफ़र में थक गई होगी थोड़ा आराम भी करलो ...मैं भी थोड़ी देर आराम करके आती हूँ .’मुझे ड्राइंग रूम में ही बैठा छोड़ कर उन्हों ने अपना बैडरूम बंद कर लिया था.
      मैं रुआंसी हो गई थी ,सच इन्हें तो जरा भी अहसास नहीं है .मैं पति व बच्चों को अकेला छोड़ कर पीहर के प्रति अपने इस एक तरफा मोह पर पछताई थी .भाभी के उठने तक मैं ने स्वयं को संयत कर लिया था .
      रास्ते भर भाभी बताती रहीं कि कहाँ कहाँ उनके इंटरव्यू छपे ...कौन कौन से सम्मान और अवार्ड उन्हें दिए गए ...समाज में कितना सम्मान उन्हें मिला है.
     ‘सच सोशल वर्क की लाइन बहुत अच्छी है .बड़े बड़े लोगों से परिचय बढ़ता है और  जरुरत मंदों ,गरीबों के लिए कुछ कर पाने से आत्म संतोष भी मिलता है ‘ एक सोशल वर्कर ने सूचना दी थी कि टी.वी.केमरावालों ,प्रेस फोटोग्राफरों, संवाददाताओं  को भी सूचित कर दिया गया है .ये लोग वैसे चाहे न भी आयें किन्तु मंत्री के नाम पर आजाते हैं ’
      उस बस्ती में जाकर मुझे लगा की भाभी के साथ मैं पहले भी यहाँ आचुकी हूँ .पहले की अपेक्षा इस बस्ती में काफी सुधार नजर आरहा है .पक्की गलियां, पक्के शौचालय बन गए हैं .जगह जगह कई हेन्ड पाइप लगे हुए थे .भाभी ने बताया सात- आठ वर्षों से हमारी संस्था इस बस्ती में काम कर रही है .पिछले वर्ष इस बस्ती में पांच कमरों की एक इमारत भी बनवाई थी .उस में एक डिस्पेंसरी चलती है .एक हॉल में सिलाई कढ़ाई सेंटर चलता है.बच्चों के पढ़ने के लिए बाल वाडी की भी व्यवस्था की है.बुजुर्गों के मनोरंजन के लिए एक कमरा अलग है ,जहाँ वह टेप रिकार्डर पर भजन सुन सकते है, टी.वी देख सकते हैं .’
     ‘ये काम आप की संस्था ने अच्छे किये हैं भाभी ’ तभी एक औरत ने आकर भाभी को सलाम किया और मुझे देख कर मुस्कराई.भाभी तो आगे बढ़ गई .वह महिला मेरे साथ चलने लगी –‘अम्मा आप बहुत दिनों बाद आये हैं यहाँ...हम तो आप को बहुत याद करते हैं .लगता है आप हमें पहचाने नहीं ?...हम हैं जरीना बी .’
     ‘हाँ जरीना बी हमने आप को सचमुच नहीं पहचाना ’
‘आप सात आठ बरस पहले यहाँ आये थे ;हमारा मरद शराब पी कर हम को बहुत मारता था ...सब पैसे छीन कर ले जाता था ‘
     मुझे बहुत वर्ष पहले की वह घटना याद आई .भाभी के साथ उस वर्ष भी मैं यहाँ आई थी .एक औरत ने रो रो कर अपनी कथा भाभी को सुनाते हुए अपनी पीठ पर पड़े मार के नीले निशान दिखाए थे .भाभी के लिए इस तरह की घटनाएँ आम बात थीं किन्तु मैं सकते में आगेई थी .वही थी जरीना बी .बहुत देर तक वह मुझ से बात करती रही थी ,तभी उसने बताया था कि उसका मर्द रिक्शा चलाता है और सारे पैसे दारू में उड़ा देता है ,कम पड़ने पर मारपीट कर उस से छीन कर लेजाता है .बातों के बीच ही उसने बताया था कि उसकी दो बेटियां हैं .तब मैं ने उसे सलाह दी थी की यदि अपने दुखों को और नहीं बढ़ाना चाहतीं तो इन्ही बच्चों में संतोष कर .इन को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाओ और तीसरे बच्चे का ख्याल दिल से निकल दो .
     उसने कहा था ‘अम्मा हम भी यही चाहते हैं पर हमारा मरद नहीं मानता .न वह खुद ओपरेशन कराता है न हमें कराने देता है. कहता है औलाद तो अल्ला की नियामत है ,उसके काम में दखल मत दे ‘पढ़ा लिखा नहीं है ,उसके संगी साथी भी वैसे ही हैं .नए ज़माने की बात वह नहीं समझता ...जब से यह पढ़ी लिखी बहने हमारी बस्ती में आने लगी हैं ,तब से हमारे सोचने समझने के तरीके में बहुत बदलाव आया है .हम समझ गए हैं कि हमारी गरीबी का कारण ये ढेर सारे बच्चे ही हैं.आप को नहीं मालुम अम्मा हम बचपन में बहुत तकलीफ पाए हैं .हमारी अम्मी पन्द्रहवां बच्चा पैदा करने में मर गई.अब्बा इतने सारे बच्चों को रोटी नहीं खिला पाते थे ,तालीम कहाँ से दिलाते ? भाई लोग बचपन से ही चाय पान की दुकान ,पेट्रोल पम्प आदि पर नौकरी करने लगे .चार भाई बहन भूख और बीमारी से मर गए .बाप निकाह करके दूसरी औरत को ले आया .अब्बा ने रुपयों की खातिर दो बहनों की शादी अरब से आये बूढों से कर दी .उनमे से एक तो अरब चली गई ,पता नहीं वहां वह कैसी है .दूसरी को उसका शौहर मौज मस्ती करके बम्बई के एक होटल में छोड़ कर चला गया .बाद में उसने ख़ुदकुशी कर ली .एक बहन को पास के गाँव में दस बच्चों के बाप से ब्याह दिया जिसकी पहले से ही दो बीबी जिन्दा थीं .हमारा हाल तो आप देख ही लिए .’
        मैं अपने ही विचारों में खोई थी कि उसकी आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ – ‘अरे अम्मा इतनी देर से आप किस सोच में डूबे हैं ?’
     ‘कुछ नहीं जरीना बी ...मुझे सब याद आगया .अब आपको कितने बच्चे हैं ? आपका पति वैसा ही है या कुछ सुधर गया है ?’
‘बच्चे तो अब भी हमारे दो ही हैं .आप के मशवरे पर हम डाक्टर अम्मा के पास गए थे ,वह कापर टी लगा दी थीं .मरद को पता ही नहीं चला .एक बार वह डाक्टर अम्मा के पास ले गया की इसको बच्चा क्यों नहीं हो रहा ? अम्मा को हम पहले ही सब बता दिए थे .जाँच करके वो बोलीं यह तो ठीक है ,एक बार तू भी जाँच कराले ,उसके बाद वह डाक्टर के पास नहीं गया .आप की सलाह से हमारी और हमारी बच्चियों की जिंदगी बन गई अम्मा वरना अब तक तो यहाँ भी बच्चों की कतार लगी होती .हम उन्हें सम्हालते या कमा कर लाते ? '
     तुम्हारा मरद ?
    ' हमारा मरद तो नहीं सुधरा.पहले वह दारू पीता था बाद में उसको दारू पी गई .जहरीली शराब पीने से पिछले बरस उसकी मौत हो गई .मरते दम तक  सताता ही रहा .वो हमारी चौदह बरस की बच्ची का निकाह हमारे अब्बा की उमर के बूढ़े अरब से करना चाह रहा था .बदले में रूपया भी मिल रहा था .उस दिन हमें भी गुस्सा आगया था .धक्का देकर उसे भी बाहर निकल आई .उसने मारने को हाथ उठाया तो हम भी डंडा लेकर खड़े हो गए ...पुलिस बुलाने की धमकी दी .बड़ी मुश्किल से अपनी बच्ची को उस सौदे से बचा पाए .’
अब तुम्हारी बच्चियां क्या कर रही हैं ?
     ‘अम्मा हम उन्हें अच्छी तालीम तो नहीं दिला पाए ,सात आठ क्लास पढ़ी हैं लेकिन दोनों सिलाई कढ़ाई के हुनर में माहिर हो गई हैं .एक सिलाई मशीन तो अम्मा दिलादी थीं ,एक हमने खरीद ली .हम दुकानों से स्कूल ड्रेस ,थैले ,लहंगे शमीज आदि थोक के भाव सिलने को ले आते हैं ...काम अच्छा चल रहा है.बैंक  में दोनों  के खाते भी खुलवा दिए हैं .अब बस एक ही तमन्ना है कि  बच्चियों को अच्छा शौहर मिल जाये .अरब शेखों के दलाल तो बस्ती मे चक्कर लगाते ही रहते हैं ...पर हमें बच्चियों का सौदा नहीं करना है ....अरे अम्मा क्या टाइम हुआ है ? हमें अपनी सास और ननद को लेने स्टेशन जाना है .मरद तो है नहीं अब यह काम हमें ही करना होगा ’
     उसे समय बता कर मैं सोच रही थी कि आत्म-निर्भरता ने इस अनपढ़ गरीब महिला में कितना आत्मविश्वास भर दिया है .अपने प्रयासों से गरीबी की एक रेखा तो इसने पार कर ही ली है .गरीबी से लड़ते हुए ,अपनी समस्याओं में उलझे होने के बाद भी अपने दिवंगत पति की बूढी माँ व बहन के आगमन के प्रति उत्साहित है .बसों में भीड़ के धक्के मुक्कों के बीच भी सफ़र कर उन्हें स्टेशन लेने जाने की इच्छा रखती है .
इधर एक तरफ मेरे भाई भाभी हैं .पढ़े लिखे हैं ,जिन्होंने समृद्धि और ख्याति द्वारा सफलता की कई रेखाओं को पार किया है किन्तु अपनों के प्रति ,निकटतम रिश्तों के निर्वाह के प्रति उदासीनता ,उत्साहहीनता ,सामान्य शिष्टताचारों की भी उपेक्षा उन्हें कहीं किन्ही रेखाओं से नीचे भी ले आई हैं .                                            
 
         
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