शुक्रवार, 13 मई 2016

आखिर क्यों

    कहानी              आखिर क्यों   
                                                                        
                                                                         पवित्रा अग्रवाल                            
               
       कॉलेज से लौटी तो घर का वातावरण कुछ असहज सा लगा। रोज किवाड़ चाची खोलती थीं, आज माँ ने खोले थे और चाची का कहीं अता-पता नहीं था।इस समय रोज चाची मेरा इंतजार करती मिलती थीं। फिर हम दोनों मिल कर साथ खाना खाते थे।चाचा की शादी के बाद से घर मुझे बहुत प्यारा लगने लगा था।पहले मुझे घर में कंपनी देने वाला कोई नहीं था।न कोई भाई-बहन,न बुआ।दादी के पास बैठने का मतलब था सिर्फ उपदेश "जीन्स नहीं पहनो,सलवार सूट पहनो।घर का काम काज सीखो,'  ...यों चाची मेरी हम उम्र नहीं है ,मुझ से चार-पाँच वर्ष बड़ी हैं किंतु उम्र का ये अन्तराल कुछ भी मानी नहीं रखता, वह मुझे कभी बहन, कभी भाभी और कभी सहेली सी लगती हैं।हम दोनों में खूब अच्छी पटती रही है।
     जब से चाचा की मौत हुई है वह पत्थर बन गई है। हर समय अपनी किस्मत को कोसती रहती है।बड़ी मुश्किल से उन्हें सम्हाला है लेकिन घर में कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि वह अधिक दिन तक सामान्य नहीं रह पातीं ..यह कहना अधिक सही होगा कि दादी उन्हें सहज नहीं रहने देतीं।वह चाचा की मौत के लिए चाची को ही जिम्मेदार ठहराती  हैं।उनके हिसाब से चाची के पाँव इस घर के लिए शुभ नहीं हैं,वह मनहूस हैं।
     पापा और छोटे चाचा दादी को उनके इस व्यवहार के लिए कई बार समझा चुके हैं कि माँ ये शुभ- अशुभ कुछ नहीं होता।तुम्हारा बेटा बस इतनी ही उम्र लिखा कर लाया था, इस में बेचारी बहू का क्या दोष है ? तुम्हारे दुख से उसका दुख कही विशाल है।उसे सम्हालो,उसे सांत्वना दो,उसका मनोबल  बढ़ाओ माँ। उसकी जिजीविषा को कम मत करो।'
      पापा ने तो एक बार यहाँ तक कह दिया था कि राहुल तो प्रेम विवाह करना चाहता था किंतु लड़की मंगली है,यह शादी नहीं हो सकती कह कर तुमने उसका दिल तोड़ दिया था और खाना पीना छोड़ कर बैठ गई थी। लड़का अच्छा था, तुम्हारी जिद्द के सामने उसने हार मान ली थी।यह शादी तुम्हारी मर्जी से अच्छी तरह जन्म पत्री मिलवाने के बाद हुई थी,अब तुम किसी को दोष नहीं दे सकती माँ।'
      किंतु दादी कहाँ हथियार डालने वाली थीं बोलीं -"भगवान जाने जो जन्म पत्री हमें दी गई थी वह वास्तविक भी थी या नहीं..मुझे तो अब ऐसा लगने लगा है कि यहाँ भी हमें धोखा दिया गया था।'
      पापा ज्यादा बहस नहीं कर पाए।खीज कर बोले -"माँ बहस में आप से कोई नहीं जीत सकता।जो मन में आए करो।'
      मैं यह सब सुनती रही थी और मन ही मन उबलती रहती थी किंतु कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पाती थी। चाचा को अपनी इच्छा के विरुद्ध यह शादी करनी पड़ी थी परंतु उनका उत्साह कहीं खो गया था शायद इसी लिए वह कहीं हनीमून पर भी नहीं गए थे।चाची से उनका व्यवहार कैसा था यह मैं नहीं जानती।
      चाचा बैंक में थे।उनकी मौत के बाद बैंक में जब चाची को नौकरी देने की बात उठी तो दादी ने कहा "बैंक में बात करके देखो कि यह नौकरी मृतक की पत्नी की जगह उसके भाई को दी जा सकती है क्या ? बसंत कब से नौकरी के लिए कोशिश कर रहा है किंतु सफलता नहीं मिल रही।'
      इतने दिनों से खामोश चाची ने पहली बार मुह खोला था "नहीं मम्मी जी यह नौकरी तो मैं ही करूँगी,यही मेरे जीने का सहारा होगी।'
     घर के अन्य सब सदस्यों ने भी चाची की हाँ में हाँ मिलाई थी।तब से दादी चाची से और अधिक नाराज रहने लगी थी।
      आज भी जरूर कुछ हुआ है।मुझे घर में आए इतनी देर हो चुकी है परंतु अभी तक चाची का कहीं पता नहीं है ...जरूर वह अपने कमरे में बैठ कर रो रही होगी।मेरा अनुमान सही निकला।वह अपने कमरे में थीं। उनकी आँखें रोते -रोते सूज गई थीं।
                मुझे देखते ही वह मुझ से लिपट कर रोने लगीं -"दीपा में क्या करूँ ...कहाँ जाऊँ ? अब जिया नहीं जाता। माँ-बाप हैं नहीं ,भाई-भाभी मेरी शादी कर के विदेश चले गए थे और मेरी इस दुख की घड़ी में भी नहीं आ पाए। जरूर उनकी कुछ मजबूरी रही होगी।इसका मतलब यह तो नहीं कि वह मुझ से प्यार नहीं करते।वैसे वह आ कर भी क्या कर लेते ?...अपने दुख तो मुझे खुद ही सहन कर ने होंगे।...बैक की यह नौकरी भी मैं इसी लिए करना चाहती हूँ ताकि व्यस्त रह सकूँ और किसी पर बोझ न बनूँ ।में घर में कुछ दिन और रही तो लगता है पागल हो जाऊँगी या कुछ कर बैठूँगी लेकिन मम्मी जी तो मुझे रुलाने का कोई न कोई बहाना ढूँढ़ती रहती हैं...अब ज्यादा परेशान करेंगी तो मैं यह घर छोड़ दूँगी।'
     मुझे दादी पर बहुत गुस्सा आ रहा था।आखिर वह अपने को समझती क्या हैं..ठीक है यह मकान उन्हीं के नाम है, दादा जी बहुत पैसा छोड़ गए है इसलिये वह किसी पर आश्रित नहीं है।इसका मतलब यह तो नहीं कि वह किसी को कुछ समझें ही नहीं।पता नहीं घर के अन्य सदस्य उनसे सम्मान वश कुछ नहीं कह पाते या उनकी दौलत कही उन्हें विरोध का स्वर ऊँचा करने से रोकती रही है ।किंतु मुझ पर उनका रौब कुछ ज्यादा नहीं चल पाता।उनसे बचने का में ने एक ही तरीका अपना रखा है कि में उनके पास बैठती ही नहीं।पर आज मेरा मन उन से झगड़ने को कर रहा था। में उठने को हुई पर मेरे हाव-भाव देख कर चाची ने मुझे रोक लिया "दीपा आप मेरी तरफ लेकर मम्मी जी से कुछ नहीं कहेगी ,आप को मेरी कसम है।'
      दूसरे दिन सुबह मैं कॉलेज जाने के लिए निकल ही रही थी कि दादी सामने आ गयी। वह पूजा करके मंदिर से लौटी थीं।मुझे देखते ही बोली - "ठहर दीपा ,पूजा पाठ में तो तुझे रुचि है नहीं ,प्रसाद तो लेती जा।'
      मैंने पूजा की थाली में से प्रसाद लेते हुए दादी से पूछा -"दादी आप भगवान में विश्वास करती हैं ?'
      "तू कैसा बेवकूफी का प्रश्न पूछ रही है दीपा ?..क्या तू रोज मुझे पूजा पाठ करते,मंदिर जाते नहीं देखती ?'
      "हाँ वो सब तो देखती हूँ फिर भी पूछ रही हूँ।सुना है जीवन - मृत्यु भगवान के हाथ में है।भगवान की बिना इच्छा के संसार में कुछ भी नहीं हो सकता ?'
      "तूने बिल्कुल ठीक सुना है बिटिया।बिना भगवान की इच्छा के तो पत्ता भी नहीं हिलता।'
      "लेकिन दादी जीवन और मृत्यु तो अब पूरी तरह भगवान के हाथ में नहीं रहे।सही समय पर डॉक्टर की मदद मिल ज़ाए तो कितने ही लोगों को नया जीवन मिल जाता है और यदि कोई अपनी ही जान लेना चाहे तो उसे कौन रोक सकता है ?'
     "नहीं बेटा यह सब मानव का भ्रम है।सच पूछो तो उसके हाथ में कुछ नहीं है, बस परिस्थिति वैसी बन जाती हैं। किस को कितना जीना है सब पहले से निश्चित होता है।'
     "दादी आप तो बहुत ज्ञानी है।मुझे बस एक बात बताइए जब जीवन मृत्यु पर मानव का वश नहीं है फिर सब चाचा की मौत के लिए चाची को दोषी क्यों मानते हैं ? जिस ट्रक ने चाचा को टक्कर मारी थी वह चाची तो चला नहीं रही थी फिर चाची को अशुभ कह कर उनका तिरस्कार क्यों किया जाता है ?'
      चाची का नाम आते ही दादी के चेहरे पर एक दम से कठोरता के भाव आ गये थे -""तो इतनी लंबी चौड़ी भूमिका तू अपनी चाची के लिए बाँध रही थी ?... बहू तेरी  यह बेटी पढ़-लिख कर अब हमको ही पढ़ाने लगी है, इसे हटाले यहाँ से।'
    "दादी  मुझे तो कॉलेज जाना है।गुस्सा छोड़ के बस एक बार अपने ही कहे पर विचार करना कि यदि हम सब अपनी उम्र ऊपर से ही लिखा कर लाते हैं तो पति की मौत के लिए पत्नी को मनहूस क्यों कहा जाता है ?---आखिर क्यों ?
                                                               
      email-- agarwalpavitra78@gmail.com                                                                                                                          
                  
मेरे ब्लोग्स --

2 टिप्‍पणियां:

  1. ekdam jabardast kahani. Mai to aapka fan ho gaya. Aab bahut hi achcha likhti hain.

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  2. बहुत बहुत आभार उत्तम जी कहानी पढ़ने और अपने विचारों से अवगत कराने के लिए .आप को कहानी पसंद आई जान कर अच्छा लगा .

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