कहानी
चमत्कार का इंतजार
उनकी बातें सुनकर मैं ने चुप रहना ही उचित समझा ।...अब तक उनके कहने पर न चाहते हुए भी मैं कई जगह भटक चुकी हूँ।...अब और कहीं जाने का मन नहीं करता।
"सपना तू चुप क्यों है...कोई जवाब नहीं दिया तू ने ?...'
"यदि अर्जुन चलने को तैयार हो गए तो चली जाऊँगी मम्मी।...वैसे आप स्वयं अर्जुन से क्यों नहीं कहती ?
मम्मी चुप रहती हैं।...मैं जानती हूँ वह अर्जुन से कुछ नहीं कहेंगी क्योंकि अर्जुन का इस सब में विश्वास नहीं है। मम्मी कहेंगी भी तो अर्जुन साफ़ मना कर देंगे।...इसलिए वह मेरे ही पीछे पड़ी रहती हैं।
मम्मी जी से गुजरात की माता जी की चर्चा सुन कर मुझे अपनी सहेली गरिमा का स्मरण हो आया। हम दोनों ने एक साथ हाई स्कूल पास किया था। उसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी। तीन-चार महीने पूर्व वह मुझे मिली थी। बहुत खुश नजर आ रही थी। शर्माते हुए उसने बताया था कि वह शायद माँ बनने वाली है। तीसरा महीना चल रहा है।
"मैंने कहा था -" शायद का क्या मतलब है, कोई शक है तो डॉक्टर को दिखा ले..टेस्ट से पता चल जाएगा।'
वह रहस्यमय ढंग से मुस्कुराई थी - "ना तो मैं डॉक्टर के पास जा सकती हूँ और ना कोई टेस्ट करवा सकती हूँ। जिनके आशीर्वाद से मुझे ये सौभाग्य प्राप्त हुआ है उनका स्पष्ट आदेश है कि बच्चा होने तक न तो किसी डॉक्टर को दिखाना है और न ही कोई टेस्ट करवाना, न कोई दवा खानी है।...वर्ना आशीर्वाद नहीं फलेगा।'
"मैन्सेज कब हुई थी, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।'
"मेन्सेज तो मेरा बंद नहीं हुआ है।'
"फिर तू गर्भवती नहीं है।'
"माताजी के आशीर्वाद से जो महिलाएँ गर्भवती होती हैं, उनका मेन्सेज बंद होना जरूरी नहीं है।...खास बात तो ये है कि बच्चा नौ महीने से लेकर अठारह महीने के बीच कभी भी हो सकता है।'
मैं अविश्वास से भर उठी थी "गरिमा मैं डॉक्टर तो नहीं हूँ, किंतु अपने ज्ञान के आधार पर कह सकती हूँ कि गर्भवती होने का पहला लक्षण मेन्सेज बंद होना ही है। दूसरी बात बच्चा नौ महीने ही माँ के गर्भ में रहता है, दस-पंद्रह या अठारह महीने नहीं।'
"लेकिन सपना ये सच है। हमारी पहचान की जितनी भी महिलाएँ माताजी के आशीर्वाद से गर्भवती हुई है सबका हाल मेरे जैसा ही है।'
"फिर तुझे कैसे पता चला कि तू माँ बनने वाली है ..माताजी ने कोई दवाई भी खाने को दी थी ?'
"दवा तो नहीं, किंतु प्रसाद में मिश्री और इलायची दी थी और कहा था इसे पीसकर एक महीने तक रोज सुबह खाली पेट कच्चे दूध के साथ लेना। उनके पास से लौटने के कुछ ही दिन बाद से मेरी तबियत खराब रहने लगी। भूख नहीं लगती, खाने से अरुचि होने लगी। सारे दिन लगता कि उल्टी हो जाएगी। लक्षण तो सारे वही हैं। अब कुछ दिन में फिर उनके पास गुजरात जाना है।...मेरी बात मान कर सपना एक बार वहाँ तू भी हो आ।'
"तुझे सफलता मिली तो मैं भी हो आऊँगी पर अभी नहीं।'
"फिर तो माताजी के पास वरदान देने को कुछ बचेगा ही नहीं।'
"कोई बात नहीं' कह कर मैं ने बात को टाल दिया था।
पर आज मम्मी जी की बात सुन कर मैं गरिमा का हालचाल जानने के लिए उत्सुक हो उठी।
जब मैं गरिमा के घर पहुँची तो उसके यहाँ कोई छोटा सा आयोजन था। गरिमा ने बताया कि उसका सत मासा पूजा जा रहा है। माताजी ने इसके लिए आज की ही तारीख दी थी। फिर भी हमने कोई भीड़ इकट्ठी नहीं की है। बस मेरे पीहर और ससुराल के लोग ही हैं।
उसे देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा था, क्योंकि उसका वजन मैं समझती हूँ एक किलो भी नहीं बढ़ा था। पेट पर जरा भी उभार नहीं था। मैं यह सवाल उससे पूछना भी चाहती थी किंतु वह बहुत खुश थी। सपनों के संसार में खोई थी। फिर भी एक सहेली होने के नाते मैंने कह दिया था, "गरिमा, माताजी के आशीर्वाद के प्रति इतनी आस्थावान भी मत होना कि आशीर्वाद के न फलने पर तुम बेहद निराश हो जाओ या मानसिक रोगी बन जाओ। मन ही मन यह मान कर चलना कि माताजी का रचा संसार छलावा भी हो सकता है।'
"सपना तू बिल्कुल ठीक कह रही है।...मैं भी पूरी तरह आशावान नहीं हूँ। मेरे मन में भी शंकाएँ समाई हुई हैं, पर मेरी सास पूरी तरह आश्वस्त हैं। एक बार मैंने उनके सामने शंका प्रकट की थी तो उन्होंने मुझे नास्तिक कह डाला था और यह भी कहा था कि किसी आशीर्वाद के फलने के लिए उसमें पूरा विश्वास जरूरी होता है। तब से मैं चुप रहती हूँ। वर्ना सब दोष मुझे दे दिया जाएगा। वैसे माता जी के घर में बहुत सी ऐसी माताओं के फोटो उनके बच्चों के साथ लगे हुए हैं, जिन्हें माता जी के आशीर्वाद से बच्चे हुए हैं। वहाँ मुझे कई महिलाएँ मिलीं, जिन्होंने कहा कि उन्हें माताजी के आशीर्वाद से संतान सुख मिला हैं।'
"मैं गरिमा को अधिक निरुत्साहित नहीं करना चाहती थी, किंतु मन में कई सवाल थे कि संतान सहित महिलाओं के फोटो लटके होने से ये कहा साबित होता है कि जो कहा जा रहा है वह सच है। जिन महिलाओं ने स्वयं ये बात कही कि वह उनके आशीर्वाद से माँ बनी हैं वह उनकी एजेंट भी हो सकती हैं।'
मेरी इस मुलाकात के तीन-चार महीने बाद एक दिन गरिमा मेरे पास आई थी। कुछ निराश दिख रही थी। कह रही थी, "दस-ग्यारह महीने तो हो गए और कुछ महीने इंतजार कर लेती हूँ। उसके बाद पुनः: अपनी डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाऊँगी।'
"मैंने गरिमा से पूछा, "तुम्हारे परिचितों में कई महिलाएँ गर्भवती थीं, उनको कुछ हुआ ?'
"एक महिला ने तो पाँचवें महीने में सोनोग्राफी करवा ली थी। माताजी ने इस सबके लिए मना किया था इसलिए नहीं हुआ होगा।...एक महिला जल गई थी तो डॉक्टर से इलाज कराना पड़ा और दवा भी खानी पड़ी शायद इसलिए उसे भी कुछ नहीं हुआ, लेकिन मैंने अब तक एक बार भी दवा नहीं खाई है। कई बार तबियत खराब हुई किंतु डॉक्टर के पास नहीं गई। देखो क्या होता है। वैसे मेरी सास की पहचान में एक औरत को आशीर्वाद प्राप्त करने के पंद्रह महीने बाद बेटा हुआ है। इससे मन में विश्वास ने फिर जड़ें जमाई हैं।'
"तुझे उस महिला का पता मालूम है ?...मैं उससे मिलना चाहती हूँ।'
"सपना एक दिन तू मेरे घर आ जा। सासु जी के साथ उसके घर चलेंगे।'
एक दिन मैं अचानक गरिमा के घर पहुँच गर्इं। वहाँ कुछ महिलाएँ बैठी हुई थीं किन्तु गरिमा वहाँ नहीं थी ।पूछने पर उसकी सास ने बताया कि वह बीमार है और अपने कमरे मैं है ।
"क्या हुआ गरिमा को ?'
"देखने मैं तो भली-चंगी है ।डॉक्टर की समझ मैं भी कुछ नहीं आया। वैसे भी हम अभी उसे कोई दवा नहीं दे सकते ।'
अपने कमरे मैं वह उदास लेटी थी - "गरिमा क्या हुआ है तुझे ?'
"कुछ नहीं बस डिप्रेशन है।'
"डिप्रेशन का कारण तू भी जानती है और मैं भी।क्यों अपने को मानसिक रोगी बना रही है ? माता जी के भ्रम जाल से बाहर निकल ,उससे कुछ हासिल नहीं होगा।'
"तेरी ये बातें मेरी सास ने सुन लीं तो वह तुझ से भी चिढ़ने लगेंगी । मेरे घर वालों का तो उन्हें यहाँ आना भी पसंद नहीं है।.'..
तभी एक महिला को बच्चे के साथ अपने कमरे आते देख कर गरिमा ने कहा "सपना मै ने तुम्हें बताया था न ?.. यह वही बच्चा है जो माताजी के आशीष से हुआ है।'
मै ने उस महिला से पूछा, "सुना है आपको ये बच्चा माताजी के आशीर्वाद से हुआ है।'...
"हाँ मैं तो इसे माताजी का आशीर्वाद ही मानती हूँ।...इससे पहले मैं सब कुछ कर के निराश हो गई थी।.. शादी के सात वर्ष बाद माँ बनी हूँ।'
"ये कितने महीने में हुआ ?'
"माताजी से आशीर्वाद प्राप्त करने के पन्द्रह महीने बाद हुआ है।'
"गर्भकाल में आपका मासिक धर्म बंद हुआ था या नहीं ?'
"शुरू के कुछ महीने तो बंद नहीं हुआ था।...बाद में बंद हो गया था।'
"आप पहले की तरह दुबली-पतली रहीं या गर्भवती दिखती थीं ?'
"...अंतिम चार-पाँच महीनों में गर्भवती दिखने लगी थी।...वजन भी काफी बढ़ गया था।'
मैं समझ गई थी माँ बनने का समय नौ महीने से अठारह महीने तक क्यों रखा गया है।...इस बीच कुछ महिलाएँ यदि प्राकृतिक रूप से गर्भवती हो जाती हैं तो उसे भी माता जी का आशीर्वाद ही समझा जाएगा। खून, पेशाब या कोई भी परीक्षण इसीलिए मना है कि भेद खुल जाएगा फिर भी किसी ने उत्सुकता वश टेस्ट करा भी लिया तो ये तो पहले ही कह दिया है कि इन स्थितियों में आशीर्वाद नहीं फलेगा। कोई दवा खा लेने से भी आशीर्वाद व्यर्थ हो जाएगा। जबकि अठारह महीने की इस अवधि में बिना किसी दवा के रहना भी हरेक के लिए संभव नहीं है। कोई-न-कोई दवा लेनी पड़ जाती है। फिर मजबूरी में उन्हें विश्वास करना पड़ता है कि माताजी के निर्देशों का पालन नहीं किया गया इसीलिए सफलता नहीं मिली।...माताजी पर अविश्वास की गुंजाइश कम ही है। सब भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाने के तरीके हैं। आश्चर्य तो तब होता है, जब पढ़े-लिखे जागरूक लोग भी इस जाल में फँस जाते हैं।
मैं घर लौटी तो मम्मी जी ने पूछा कहाँ चली गई थीं ?'
"अपनी सहेली गरिमा के घर गई थी।...वह भी माताजी के आशीर्वाद से गर्भवती है। ग्यारह-बारह महीने तो हो गए..अभी तक तो कुछ हुआ नहीं है ..अभी भी वे सब चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं।..वह
डिप्रेशन का शिकार हो गई है फिर भी इलाज की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दे रहा ...उसे पागल बना कर छोड़ेगे ।'
"उसने भी कोई दवा खाली होगी या कोई टेस्ट करा लिया होगा या फिर वह भी तेरी तरह नास्तिक होगी। सुना है माता जी के आर्शीवाद कई ऐसी औरतों को भी बच्चे पैदा हुए हैं, जो ऑपरेशन करा चुकी हैं या जिनकी बच्चे दानी निकाली जा चुकी है।...भगवान की लीला अपरंपार है।...बस उसमें विश्वास होना चाहिए।'
"मम्मी जी आप भी कैसी-कैसी बे-सिर-पैर की बातों पर विश्वास कर लेती हैं। यह सब गलत प्रचार है।...लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाया जा रहा है।...हम पढ़े-लिखे लोग भी ऐसे जाल में फँसने लगे तो व्यर्थ है हमारी पढ़ाई।'
"तुम लोग पढ़-लिख कर नास्तिक हो गए हो। न अर्जुन सुनता है न तू समझती है। एक बार मेरी बात मान कर तुम भी वहाँ चले गए होते तो तुम्हारा कुछ बिगड़ जाता ?'
"मम्मी जी पता नहीं मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक। बस इतना जानती हूँ कि डॉक्टर ने हम दोनों में कोई खराबी नहीं बताई है। वैसे तो संतान प्राप्ति की कई नई तकनीक विकसित हुई है, जिससे कुछ प्रतिशत लोगों को सफलता भी मिली है, लेकिन वह पद्धति बहुत खर्चीली है और सफलता की कोई गारंटी भी नहीं है। हमारे पास इतना धन नहीं है कि हम भी किस्मत आज़मा कर देख लें...और इन जादू,टोने, तांत्रिक-फ़क़ीरों में हमारा विश्वास नहीं हैं।...अब किस्मत में संतान सुख लिखा कर लाए हैं तो वह हमें जरूर प्राप्त होगा वर्ना हम दोनों ने फैसला कर लिया है कि एक साल इंतजार करके किसी अनाथालय से एक बच्चा गोद ले लेंगे।'
"अपना फैसला मम्मी जी को बता कर कपड़े बदलने के बहाने अपने कमरे में चले जाना ही मैंने उचित समझा क्योंकि मैं किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहती थी। लेकिन मैं जानती हूँ कि वह अब बड़बड़ा रही होगी कि कितनी बार इन्हें समझाया है कि अनाथालय में पल रहे बच्चों के न माँ-बाप का पता होता है न उनके जाति-धर्म का। वहाँ से बच्चा गोद लेने की जिद्द छोड़ दे...लेकिन मेरी कौन सुनता है।...करेंगे ये लोग वही जो इनके मन में है।...करो जो मन में आए मैं कौन होती हूँ रोकने वाली।'
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