शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

चमत्कार का इंतजार

कहानी

              चमत्कार का इंतजार   

                                    पवित्रा अग्रवाल
 
         मम्मी जी किसी सत्संग से लौट कर आई थीं। वह बहुत खुश नजर आ रही थीं। आते ही मुझसे बोली, "सपना आज एक बड़ा अच्छा समाचार सुनकर आई हूँ। गुजरात में एक माताजी है, उनके आशीर्वाद से कई निसंतानों की गोद भरी हैं। सुना है उन्हें बस कुछ हजार बच्चों का आशीर्वाद देने का वरदान प्राप्त हुआ है। शायद इसीलिए जगह-जगह से सैकड़ों लोग वहाँ जा रहे हैं। कई जगह से स्पेशल बसें भी जा रही हैं। तू भी अर्जुन के साथ वहाँ चली जा। हो सकता है हमारे यहाँ भी कोई चमत्कार हो जाए।'
 उनकी बातें सुनकर मैं ने चुप रहना ही उचित समझा ।...अब तक उनके कहने पर न चाहते हुए भी मैं कई जगह भटक चुकी हूँ।...अब और कहीं जाने का मन नहीं करता।
 "सपना तू चुप क्यों है...कोई जवाब नहीं दिया तू ने ?...'
 "यदि अर्जुन चलने को तैयार हो गए तो चली जाऊँगी मम्मी।...वैसे आप स्वयं अर्जुन से क्यों नहीं कहती ?
 मम्मी चुप रहती हैं।...मैं जानती हूँ वह अर्जुन से कुछ नहीं कहेंगी क्योंकि अर्जुन का इस सब में विश्वास नहीं है। मम्मी कहेंगी भी तो अर्जुन साफ़ मना कर देंगे।...इसलिए वह मेरे ही पीछे पड़ी रहती हैं।
 मम्मी जी से गुजरात की माता जी की चर्चा सुन कर मुझे अपनी सहेली गरिमा का स्मरण हो आया। हम दोनों ने एक साथ हाई स्कूल पास किया था। उसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी। तीन-चार महीने पूर्व वह मुझे मिली थी। बहुत खुश नजर आ रही थी। शर्माते हुए उसने बताया था कि वह शायद माँ बनने वाली है। तीसरा महीना चल रहा है।
  "मैंने कहा था -" शायद का क्या मतलब है, कोई शक है तो डॉक्टर को दिखा ले..टेस्ट से पता चल जाएगा।'
 वह रहस्यमय ढंग से मुस्कुराई थी - "ना तो मैं डॉक्टर के पास जा सकती हूँ और ना कोई टेस्ट करवा सकती हूँ। जिनके आशीर्वाद से मुझे ये सौभाग्य प्राप्त हुआ है उनका स्पष्ट आदेश है कि बच्चा होने तक न तो किसी डॉक्टर को दिखाना है और न ही कोई टेस्ट करवाना, न कोई दवा खानी है।...वर्ना आशीर्वाद नहीं फलेगा।'
 "मैन्सेज कब हुई थी, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।'
 "मेन्सेज तो मेरा बंद नहीं हुआ है।'
 "फिर तू गर्भवती नहीं है।'
 "माताजी के आशीर्वाद से जो महिलाएँ गर्भवती होती हैं, उनका मेन्सेज बंद होना जरूरी नहीं है।...खास बात तो ये है कि बच्चा नौ महीने से लेकर अठारह महीने के बीच कभी भी हो सकता है।'
 मैं अविश्वास से भर उठी थी "गरिमा मैं डॉक्टर तो नहीं हूँ, किंतु अपने ज्ञान के आधार पर कह सकती हूँ कि गर्भवती होने का पहला लक्षण मेन्सेज बंद होना ही है। दूसरी बात बच्चा नौ महीने ही माँ के गर्भ में रहता है, दस-पंद्रह या अठारह महीने नहीं।'
 "लेकिन सपना ये सच है। हमारी पहचान की जितनी भी महिलाएँ माताजी के आशीर्वाद से गर्भवती हुई है सबका हाल मेरे जैसा ही है।'
 "फिर तुझे कैसे पता चला कि तू माँ बनने वाली है ..माताजी ने कोई दवाई भी खाने को दी थी ?'
 "दवा तो नहीं, किंतु प्रसाद में मिश्री और इलायची दी थी और कहा था इसे पीसकर एक महीने तक रोज सुबह खाली पेट कच्चे दूध के साथ लेना। उनके पास से लौटने के कुछ ही दिन बाद से मेरी तबियत खराब रहने लगी। भूख नहीं लगती, खाने से अरुचि होने लगी। सारे दिन लगता कि उल्टी हो जाएगी। लक्षण तो सारे वही हैं। अब कुछ दिन में फिर उनके पास गुजरात जाना है।...मेरी बात मान कर सपना एक बार वहाँ तू भी हो आ।'
 "तुझे सफलता मिली तो मैं भी हो आऊँगी पर अभी नहीं।'
 "फिर तो माताजी के पास वरदान देने को कुछ बचेगा ही नहीं।'
 "कोई बात नहीं' कह कर मैं ने बात को टाल दिया था।
       पर आज मम्मी जी की बात सुन कर मैं गरिमा का हालचाल जानने के लिए  उत्सुक हो उठी।
 जब मैं गरिमा के घर पहुँची तो उसके यहाँ कोई छोटा सा आयोजन था। गरिमा ने बताया कि उसका सत मासा पूजा जा रहा है। माताजी ने इसके लिए आज की ही तारीख दी थी। फिर भी हमने कोई भीड़ इकट्ठी नहीं की है। बस मेरे पीहर और ससुराल के लोग ही हैं।
 उसे देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा था, क्योंकि उसका वजन मैं समझती हूँ एक किलो भी नहीं बढ़ा था। पेट पर जरा भी उभार नहीं था। मैं यह सवाल उससे पूछना भी चाहती थी किंतु वह बहुत खुश थी। सपनों के संसार में खोई थी। फिर भी एक सहेली होने के नाते मैंने कह दिया था, "गरिमा, माताजी के आशीर्वाद के प्रति इतनी आस्थावान भी मत होना कि आशीर्वाद के न फलने पर तुम बेहद निराश हो जाओ या मानसिक रोगी बन जाओ। मन ही मन यह मान कर चलना कि माताजी का रचा संसार छलावा भी हो सकता है।'
 "सपना तू बिल्कुल ठीक कह रही है।...मैं भी पूरी तरह आशावान नहीं हूँ। मेरे मन में भी शंकाएँ समाई हुई हैं, पर मेरी सास पूरी तरह आश्वस्त हैं। एक बार मैंने उनके सामने शंका प्रकट की थी तो उन्होंने मुझे नास्तिक कह डाला था और यह भी कहा था कि किसी आशीर्वाद के फलने के लिए उसमें पूरा विश्वास जरूरी होता है। तब से मैं चुप रहती हूँ। वर्ना सब दोष मुझे दे दिया जाएगा। वैसे माता जी के घर में बहुत सी ऐसी माताओं के फोटो उनके बच्चों के साथ लगे हुए हैं, जिन्हें माता जी के आशीर्वाद से बच्चे हुए हैं। वहाँ मुझे कई महिलाएँ मिलीं, जिन्होंने कहा कि उन्हें माताजी के आशीर्वाद से संतान सुख मिला हैं।'
 "मैं गरिमा को अधिक निरुत्साहित नहीं करना चाहती थी, किंतु मन में कई सवाल थे कि संतान सहित महिलाओं के फोटो लटके होने से ये कहा साबित होता है कि जो कहा जा रहा है वह सच है। जिन महिलाओं ने स्वयं ये बात कही कि वह उनके आशीर्वाद से माँ बनी हैं वह उनकी एजेंट भी हो सकती हैं।'
 मेरी इस मुलाकात के तीन-चार महीने बाद एक दिन गरिमा मेरे पास आई थी। कुछ निराश दिख रही थी। कह रही थी, "दस-ग्यारह महीने तो हो गए और कुछ महीने इंतजार कर लेती हूँ। उसके बाद पुनः: अपनी डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाऊँगी।'
 "मैंने गरिमा से पूछा, "तुम्हारे परिचितों में कई महिलाएँ गर्भवती थीं, उनको कुछ हुआ ?'
 "एक महिला ने तो पाँचवें महीने में सोनोग्राफी करवा ली थी। माताजी ने इस सबके लिए मना किया था इसलिए नहीं हुआ होगा।...एक महिला जल गई थी तो डॉक्टर से इलाज कराना पड़ा और दवा भी खानी पड़ी शायद इसलिए उसे भी कुछ नहीं हुआ, लेकिन मैंने अब तक एक बार भी दवा नहीं खाई है। कई बार तबियत खराब हुई किंतु डॉक्टर के पास नहीं गई। देखो क्या होता है। वैसे मेरी सास की पहचान में एक औरत को आशीर्वाद प्राप्त करने के पंद्रह महीने बाद बेटा हुआ है। इससे मन में विश्वास ने फिर जड़ें जमाई हैं।'
 "तुझे उस महिला का पता मालूम है ?...मैं उससे मिलना चाहती हूँ।'
 "सपना एक दिन तू मेरे घर आ जा। सासु जी के साथ उसके घर चलेंगे।'
 एक दिन मैं अचानक  गरिमा के घर पहुँच गर्इं। वहाँ कुछ महिलाएँ बैठी हुई थीं किन्तु गरिमा वहाँ नहीं थी ।पूछने पर उसकी सास ने बताया कि वह बीमार है और अपने कमरे मैं है ।
  "क्या हुआ गरिमा को ?'
  "देखने मैं तो भली-चंगी है ।डॉक्टर की समझ मैं भी कुछ नहीं आया। वैसे भी हम अभी उसे कोई दवा नहीं दे सकते ।'
      अपने कमरे मैं वह उदास लेटी थी - "गरिमा क्या हुआ है तुझे  ?'
  "कुछ नहीं बस डिप्रेशन है।'
  "डिप्रेशन का कारण तू भी जानती है और मैं भी।क्यों अपने को मानसिक रोगी बना रही है  ? माता जी के भ्रम जाल से बाहर निकल ,उससे कुछ हासिल नहीं होगा।'
 "तेरी ये बातें मेरी सास ने सुन लीं तो वह तुझ से भी चिढ़ने लगेंगी । मेरे घर वालों का तो  उन्हें  यहाँ आना भी पसंद नहीं है।.'..
  तभी एक महिला को बच्चे के साथ अपने कमरे आते देख कर  गरिमा ने कहा "सपना मै ने तुम्हें बताया था न  ?.. यह वही बच्चा है जो माताजी के आशीष से हुआ है।'
  मै ने उस महिला से पूछा, "सुना है आपको ये बच्चा माताजी के आशीर्वाद से हुआ है।'...
 "हाँ मैं तो इसे माताजी का आशीर्वाद ही मानती हूँ।...इससे पहले मैं सब कुछ कर के निराश हो गई थी।.. शादी के सात वर्ष बाद माँ बनी हूँ।'
 "ये कितने महीने में हुआ ?'
 "माताजी से आशीर्वाद प्राप्त करने के पन्द्रह महीने बाद हुआ है।'
 "गर्भकाल में आपका मासिक धर्म बंद हुआ था या नहीं ?'
 "शुरू के कुछ महीने तो बंद नहीं हुआ था।...बाद में बंद हो गया था।'
 "आप पहले की तरह दुबली-पतली रहीं या गर्भवती दिखती थीं ?'
 "...अंतिम चार-पाँच महीनों में गर्भवती दिखने लगी थी।...वजन भी काफी बढ़ गया था।'
 मैं समझ गई थी माँ बनने का समय नौ महीने से अठारह महीने तक क्यों रखा गया है।...इस बीच कुछ महिलाएँ यदि प्राकृतिक रूप से गर्भवती हो जाती हैं तो उसे भी माता जी का आशीर्वाद ही समझा जाएगा। खून, पेशाब या कोई भी परीक्षण  इसीलिए मना है कि भेद खुल जाएगा फिर भी किसी ने उत्सुकता वश टेस्ट करा भी लिया तो ये तो पहले ही कह दिया है कि इन स्थितियों में आशीर्वाद नहीं फलेगा। कोई दवा खा लेने से भी आशीर्वाद व्यर्थ हो जाएगा। जबकि अठारह महीने की इस अवधि में बिना किसी दवा के रहना भी हरेक के लिए संभव नहीं है। कोई-न-कोई दवा लेनी पड़ जाती है। फिर मजबूरी में उन्हें विश्वास करना पड़ता है कि माताजी के निर्देशों का पालन नहीं किया गया इसीलिए सफलता नहीं मिली।...माताजी पर अविश्वास की गुंजाइश कम ही है। सब भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाने के तरीके हैं। आश्चर्य तो तब होता है, जब पढ़े-लिखे जागरूक लोग भी इस जाल में फँस जाते हैं।
 मैं घर लौटी तो मम्मी जी ने पूछा कहाँ चली गई थीं ?'
 "अपनी सहेली गरिमा के घर गई थी।...वह भी माताजी के आशीर्वाद से गर्भवती है। ग्यारह-बारह महीने तो हो गए..अभी तक तो कुछ हुआ नहीं है ..अभी भी वे सब चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं।..वह
डिप्रेशन का शिकार हो गई है फिर भी इलाज की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दे रहा ...उसे पागल बना कर छोड़ेगे ।'
 "उसने भी कोई दवा खाली होगी या कोई टेस्ट करा लिया होगा या फिर वह भी तेरी तरह नास्तिक होगी। सुना है माता जी के आर्शीवाद कई ऐसी औरतों को भी बच्चे पैदा हुए हैं, जो ऑपरेशन करा चुकी हैं या जिनकी बच्चे दानी निकाली जा चुकी है।...भगवान की लीला अपरंपार है।...बस उसमें विश्वास होना चाहिए।'
 "मम्मी जी आप भी कैसी-कैसी बे-सिर-पैर की बातों पर विश्वास कर लेती हैं। यह सब गलत प्रचार है।...लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाया जा रहा है।...हम पढ़े-लिखे लोग भी ऐसे जाल में फँसने लगे तो व्यर्थ है हमारी पढ़ाई।'
 "तुम लोग पढ़-लिख कर नास्तिक हो गए हो। न अर्जुन सुनता है न तू समझती है। एक बार मेरी बात मान कर तुम भी वहाँ चले गए होते तो तुम्हारा कुछ बिगड़ जाता ?'
 "मम्मी जी पता नहीं मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक। बस इतना जानती हूँ कि डॉक्टर ने हम दोनों में कोई खराबी नहीं बताई है। वैसे तो संतान प्राप्ति की कई नई तकनीक विकसित हुई है, जिससे कुछ प्रतिशत लोगों को सफलता भी मिली है, लेकिन वह पद्धति बहुत खर्चीली है और सफलता की कोई गारंटी भी नहीं है। हमारे पास इतना धन नहीं है कि हम भी किस्मत आज़मा कर देख लें...और इन जादू,टोने, तांत्रिक-फ़क़ीरों    में हमारा विश्वास नहीं हैं।...अब किस्मत में संतान सुख लिखा कर लाए हैं तो वह हमें जरूर प्राप्त होगा वर्ना हम दोनों ने फैसला कर लिया है कि एक साल इंतजार करके किसी अनाथालय से एक बच्चा गोद ले लेंगे।'
 "अपना फैसला मम्मी जी को बता कर कपड़े बदलने के बहाने अपने कमरे में चले जाना ही मैंने उचित समझा क्योंकि मैं किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहती थी। लेकिन मैं जानती हूँ कि वह अब  बड़बड़ा रही होगी कि कितनी बार इन्हें समझाया है कि अनाथालय में पल रहे बच्चों के न माँ-बाप का पता होता है न उनके जाति-धर्म का। वहाँ से बच्चा गोद लेने की जिद्द छोड़ दे...लेकिन मेरी कौन सुनता है।...करेंगे ये लोग वही जो इनके मन में है।...करो जो मन में आए मैं कौन होती हूँ रोकने वाली।'

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-पवित्रा अग्रवाल
 

शनिवार, 7 नवंबर 2015

पहला कदम

कहानी
                           पहला कदम 


                                               
     पवित्रा अग्रवाल

        आज बुआ फिर आई थीं .बुझा बुझा सा मन ,शिथिल सा तन ,भावहीन चेहरा देख कर मैं दुखी हो जाती हूँ .जब फूफा जी जीवित थे ,एक स्निग्ध सी मुस्कराहट बुआ के व्यक्तित्व का हिस्सा थी .हर समय मैं ने उन्हें खुश देखा था .बीमारी में भी उन्हें कभी मुह लटकाये या हाय हाय करते नहीं देखा था .एक मेरी माँ हैं हर समय खीजती ,झुंझलाती रहती हैं जैसे उनसा दुखी इन्सान कोई दूसरा नहीं .ज़माने भर के सारे गम भगवान ने जैसे उनकी झोली में ही डाल दिए हों .पर बुआ अपने जीवन में बड़ी संतुष्ट थीं .कम से कम देखने वाले को तो ऐसा ही महसूस होता था .एसा भी नहीं कि उनके जीवन में उलझनें नहीं थीं.बच्चों की पढाई की वजह से उन्हें फूफा जी से अलग रहना पड़ता था क्यों की फूफा जी की तबादले वाली नौकरी थी .कहीं छह महीने, कही साल तो कहीं दो तीन साल भी उन्हें रहना पड़ जाता था .इस अनिश्चितता की वजह से बच्चों की पढाई में बाधा पड़ती थी , इसलिए बुआ इस कसबे में बच्चों के साथ रहती थीं .फूफा जी जब तब आते रहते थे .छुट्टियों में बुआ बच्चों के साथ उनके पास चली जाती थीं .
        मुझे याद है आसपास की महिलाएं अक्सर बुआ से मजाक करतीं व उन्हें छेड़ती रहती थीं – ‘अरे रेड्डी गारु पर नजर रखना .तुम यहाँ रहती हो वह बाहर अकेले रहते हैं... आंध्रा में तो दो बीबी रखने का रिवाज सा रहा है .किसी दूसरी के जाल में फंस गए तो सारी  उम्र पछताओगी .’
         कभी बुआ हंस कर टाल देती थीं तो कभी कह भी देती थीं –‘इस तरह की बातें मैं नहीं सोचती ,यह रिश्ता विश्वास का है और विश्वास पर दुनियां कायम है .बिना किसी आधार के मैं शक करूँ या भविष्य की कल्पना करके अपने सुखी वर्तमान को दुखी बनाऊं ,यह मुझे पसंद नहीं .फिर भी यदि किस्मत में वैसा लिखा है तो जब होगा तब सोचेंगे की क्या करना है ’.
        बुआ का घर हमारे घर से बहुत दूर नहीं था .एक दिन अचानक हैदराबाद से फूफाजी के एक्सीडेंट का समाचार आया था कि ‘हालत गंभीर है,सर में बहुत चोट आई है’, सुन कर माँ ,पापा, बुआ तभी चले गए थे किन्तु मौत किसी छलिया सौत सी फूफा जी को बुआ से छीन कर लेजा चुकी थी .बुआ की जिंदगी रेगिस्तान बन गई थी और छोटे बड़े झंझावतों से निरंतर जूझते रहना उनकी नियति थी . फूफाजी पांच बच्चे छोड़ गए थे ,तीन बेटियां ,दो बेटे .सबसे बड़ी कात्यायनी सोलह साल की रही होगी .तब वह इंटर प्रथम वर्ष में पढ़ रही थी .उससे छोटा राघव हाई स्कूल में था .मुझे याद है सब रिश्तेदारों का सुझाव था की जल्दी से जल्दी कात्यायनी की शादी करदी जाये तो एक जिम्मेदारी ख़तम हो जायेगी .बाकी की दोनों तो अभी बहुत छोटी हैं .शादी के कई रिश्ते भी आये थे लेकिन बुआ ने मना  कर दिया . उनका कहना था कि बिना बाप की बच्ची है पर माँ तो अभी जिन्दा है न.उसे मैं खूब पढाऊँगी ताकि भविष्य में जरुरत पड़ने पर वह आत्मनिर्भर बन सके .उसके पिता की इच्छा अपने बच्चों को खूब पढ़ाने की थी ,रिश्तेदारों को बुरा भी लगा पर बुआ अपने फैसले पर अडिग थीं .
        वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं ,हाई स्कूल पास थीं .उनकी योग्यता के हिसाब से उन्हें फूफाजी के दफ्तर में ही नौकरी मिल गई थी .छोटे बच्चों को घर में छोड़ कर कैसे ऑफिस जाऊँगी यह सोच कर वह परेशान थीं.हमारी दादी हमारी मम्मी से परेशान थीं और हमारी मम्मी को भी अपनी सास यानि हमारी  दादी का साथ रहना अच्छा नहीं लगता था .दादी को राह मिल गई थी और वह बुआ के साथ रहने चली गई थीं.अपनी माँ का साथ पाकर बुआ की परेशानियाँ कम हो गई थीं .      
        हैदराबाद में मकान बनाने के लिए फूफा जी ने प्रोविडेंट फंड से लोन  लिया हुआ था,अतः आफिस से तो ज्यादा पैसा नहीं मिला था .हाँ बीमा कंपनी से बुआ को करीब अस्सी हजार रुपये मिले थे जिन्हें वह बैंक में फिक्स करना चाह रही थीं पर हमारे पिता का कहना था कि बैंक में पैसा रखने से अच्छा है तुम वह रुपये मुझे देदो .मैं तुम्हारे नाम से कोई  जमीन खरीद देता हूँ ...प्रापर्टी पर बहुत तेजी से दाम बढ़ते हैं ,कुछ वर्षों में ही तीन चार गुने हो जायेंगे ,जब जरुरत हो बेच लेना .’
      बुआ ने बीस हजार अपने पास रख कर साठ हजार अपने भाई यानि हमारे पिता को देदिए थे. फूफा जी की मृत्यु हुए करीब सात आठ वर्ष हो चुके हैं .बुआ उनकी मौत के दो वर्ष बाद ही हैदराबाद चली गई थीं क्यों कि बच्चो की पढाई की सुविधाएँ वहां अधिक थीं .
        वही बुआ रात भर का सफ़र कर के हैदराबाद से आई हैं. करीब करीब हर महीने आती हैं, पापा से अपने पैसे वापस मांगने और यहाँ से हर बार कोई नया बहाना बना कर ,नये आश्वासनों के साथ बैरंग लिफाफे की तरह लौटा दी जाती हैं .बुआ को ड्राइंग रूम में बैठा कर मैं माँ  के स्नान घर से बाहर आने की प्रतीक्षा कर रही थी. उनके आते ही मैंने उन्हें बुआ के आने की सूचना दी थी तो माँ ने मुझे डांट दिया –‘अरे कह देती पापा बाहर गए हैं, चार पांच दिन में वापस आयेंगे....जब देखो तब पठान की तरह तकाजा करने चली आती हैं ...उनका पैसा खाना थोड़े ही है , जब होगा तब दे देंगे ’
‘अम्मा बुआ को तुम्हारे घर आने का कई शौक नहीं है .अकेली औरत के लिए नक्सलवादी इलाके में रात को बस का सफ़र करना खतरे से खाली भी नहीं है...किन्तु बेचारी मजबूर हैं .जब तक तुम उनका पैसा नहीं लौटाओगी इसी तरह उन्हें धक्के खाने पड़ेंगे ....पापा से कह कर उनके रुपये अब तो वापस करा दो माँ.अब तक तो बैंक में भी उनके पैसे डबल हो जाते,यहाँ तो उनका मूल धन भी फंस गया है ’
         ‘अच्छा ! तेरे को इतना पढाया लिखाया ,अब तो तू हमें ही कानून पढाने लगी है और गैरों की तरफदारी करने लगी है ’
        ‘वो गैर नहीं हैं अम्मा . जो रिश्ता तुम्हारा मामा से है ,वही रिश्ता बुआ का पापा से है .जब मामा गैर नहीं हैं तो बुआ गैर कैसे हो गई ? ’ 
        ‘श्रीलता ,तेरी जवान आज कल बहुत चलने लगी है .तेरी ही वजह से उसका पैसा फंसा रखा है .उसका बेटा राघव डाक्टरी की पढाई कर रहा है .चिराग लेकर ढूंढने पर भी वैसा लड़का अपनी बिरादरी में नहीं मिलेगा और मिल भी गया तो लाखों रुपयों की मांग होगी .मैं तेरी शादी उससे करना चाहती हूँ .हमें उसका एक पैसा नहीं रखना है ,ब्याज के साथ सब लौटा देंगे.मैं तो सोचती थी कात्यायनी की शादी भी हम ही करा दें .एक रिश्ता लेकर तेरे पापा हैदराबाद उनके पास गए भी थे . माँ बोले तो बोले उनकी बेटी कात्यायनी ने भी तेरे पापा की कैसी इज्जत उतारी थी .क्या नहीं कहा उनसे ?...कहा था मामा तुम्हारा नाम दया शंकर नहीं कंस मामा होना चाहिए था जो अपनी बहन और उसके बच्चों का दुश्मन बना है .एक बच्चे के बाप ,जिसकी बीबी ने जल कर आत्म हत्या करली थी ,उस से मेरी शादी करना चाहते हो ? ...कितनी दलाली मिली है तुम्हे ? बहुत अच्छा है तो उससे अपनी बेटी की शादी क्यों नहीं करा देते ?’
      ‘कात्यायनी अक्का  ने कुछ गलत नहीं कहा अम्मा .मेरे लिए कोई ऐसा रिश्ता लाता तो मैं भी ऐसा ही कहती .अम्मा एसा कौन सा एब है जो उस आदमी में नहीं है ... तंग आकर उसकी पत्नी ने आत्महत्या करली थी और पापा उससे कात्यायनी अक्का की शादी कराने की सोच रहे थे...ऐसा तो कोई दुश्मन ही कर सकता है , शुभचिन्तक नहीं ’ अम्मा बुआ के पास चली गई थीं .
      बिना पढ़ी लिखी मेरी माँ इतनी षडयंत्रकारी और जालिम हो सकती हैं देख कर मुझे अचरज होता है .तभी ड्राइंगरूम से माँ ने मुझे पुकारा था ‘श्री लता बुआ के लिए चाय नाश्ता ले कर आ’ ...मैं समझ गई थी की बुआ को शादी के लिए पटाना है इसीलिए उनकी आवभगत की जा रही है .
       अम्मा की आवाज मुझे रसोई घर में भी सुनाइ दे रही थी –‘राघव की शादी के बारे में क्या सोचा है तुमने ? मुझे वह बहुत पसंद है .मैं श्री लता की शादी राघव से करना चाहती हूँ ...अपनी श्रीलता भी देखने में सुन्दर है बी ए पास है ...पैसे की चिंता तुम मत करो .तुम्हारे भाई तुम्हारा पैसा लौटने के लिए परेशान हैं.एक जमीन बेचने को तैयार हैं ...अच्छा ग्राहक मिलते ही सौदा कर देंगे और वह पैसे तुम्हें ही देंगे .’
यह बात तो तुम पिछले छह साल से कह रहे हो पर जमीन का ग्राहक तुम्हें अभी तक नहीं मिला ...जाने मिलेगा भी या नहीं ?...मेरे इन पैसों का श्रीलता की शादी से क्या सम्बन्ध है …शादी पैसे लौटाने की शर्त है क्या ?’
       ‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है .तुम्हारा पैसा तो तुम को देना ही है पर मेरी दिली इच्छा है की राघव को ही अपना दामाद बनाऊ ’
     ‘राघव ने अभी एम.बी.बी.एस. पूरा नहीं किया है .उसके बाद वह एम.डी.करना चाहता है,उसके बाद शादी की सोचेंगे .उस से पहले तो कात्यायनी की शादी करनी है .हाथ में पैसा हो तो कहीं शादी की बात भी करूँ.बिना पैसे के तो मेरी बेटी ऐसे ही रह जाएगी,बिना शादी के .तभी तुम्हारे यहाँ चक्कर लगा रही हूँ .मेरे पैसे लौटा दो ,मुझे ब्याज भी नहीं चाहिए ’
        ‘आज तक किसी की बेटी बिना शादी के रही है जो तुम्हारी रह जाएगी ...हम लोग हैं न ...सब मिल कर कोशिश करेंगे .तुम राघव से श्रीलता की शादी के लिए हाँ करदो बस ,शादी की हमें कोई जल्दी नहीं है,बाद में कर लेंगे ’
     ‘राघव अब बड़ा हो गया है ,मैं उससे जबरदस्ती नहीं कर सकती .एक बार मैं ने श्रीलता के बारे में उससे बात की थी तो उसने कहा – ‘मैं निकट रक्त सबंधों में शादी के खिलाफ हूँ, ऐसी शादियाँ करना  मेडिकल पॉइंट आफ व्यू से ठीक नहीं हैं ...बच्चे शारीरिक ,मानसिक रूप से विकलांग पैदा हो सकते हैं और भी बहुत कुछ हो सकता है .’
    ‘रहने दो यह बातें ,हमेशा से हम लोगों में एसी शादी होती आ रही हैं .तुम्हारी और मेरी शादी भी सगी बुआ के बेटे से हुई थी .हमारा तुम्हारा  कौन सा बच्चा ख़राब या विकलांग है ?’
    ‘अब उससे बहस तो मैं नहीं कर सकती.अपने ही पैसे वापस लेने के लिए श्रीलता से उसकी शादी जबर्दस्ती करा भी दूं तो क्या गारंटी है वह तुम्हारी बेटी को खुश रखेगा ?’
   अम्मा ने बुआ से न जाने क्या कहा था कि वह पापा से बिना मिले ही वापस लौट गई थीं ...शायद रोती हुई .वैसे हमेशा ही वह रोती हुई लौटती हैं .उनके जाते ही मैं अम्मा पर बरस पड़ी थी –‘तुम क्यों राघव के पीछे पड़ी हो ,मुझे उससे शादी नहीं करनी .मेरे जीवन को ,मेरी छोटी छोटी खुशियों को दाव पर मत लगाओ माँ . उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर मुझे उनके गले में बांधने की कोशिश क्यों कर रही हो ?मुझे जान बूझ कर कुए में मत फेंको .तुम्हारे द्वारा इतना सताए जाने के बाद भी क्या वो तुम्हारी बेटी को प्यार या उचित सम्मान दे सकेंगे ? मैं उस घर में सर उठा कर चल सकूंगी ? तुम्हारे गुनाहों की वजह से, मैं तो वैसे ही शर्मिंदा हूँ...मुझे वहां शादी नहीं करनी है .बुआ चाहेंगी तब भी नहीं ’ कह कर मैं वहां से हट गई थी .तभी पडौस की राव आंटी आ गई थीं,वह माँ से कह रही थीं ‘तुम्हारी ननद आज रोती हुई लौटी हैं ...कुछ कहा सुनी हो गई थी क्या ?’
      ‘अरे नहीं वह अपनी बेटी की शादी को लेकर परेशान हैं ...उन्हें पचास साठ हजार रुपयों की जरुरत है ...तुम तो जानती ही हो अपनी भी चार बेटियां हैं .इतनी बड़ी रकम कहाँ से देदें ?कहीं से इंतजाम करा भी दिया तो वह वापस कहाँ से करेगी ? इसी लिए दुखी है ,हम भी क्या करें ?’
     मैं माथा थाम के बैठ गई थी,ओ माँ तुम इतनी झूठी हो यह मुझे अब तक नहीं पता था .मुझे क्या होता जा रहा है ,दिन पर दिन मैं माँ के खिलाफ होती जा रही हूँ .उनका व्यवहार असहय होता जा रहा है .मन करता है जाकर सब के सामने उनका असली रूप प्रकट करदूं .सब से कहूं वह बेईमान और धोखेबाज हैं .इस घर में अब एक मिनट भी दिल नहीं लगता ,दम घुटता है मेरा यहाँ ...कहीं दूर भाग जाने की इच्छा बलवती होने लगती है,पर कहाँ जाऊं ?
          पहले मुझे यह सब बातें विस्तार से नहीं मालूम थीं .जब बुआ आती थीं तो मैं अक्सर स्कूल में होती थी .घर में होती भी थी तो अम्मा वहां बैठने नहीं देती थीं फिर कभी इतनी रूचि भी नहीं रही थी कि कुछ जानने की कोशिश करूँ .एक बार बुआ की बेटी कात्यायनी अक्का  भी उनके साथ आई थी .तब उन्ही से सब कुछ जाना था . अक्का ने बड़े करुण स्वर में कहा था –‘श्रीलता मामा –मामी से कह  कर हमारे रुपये वापस करा दे न ,हम बहुत परेशानी मे हैं .जैसे अपनी संतान को सही राह दिखाना माता पिता का काम होता है वैसे ही माता पिता द्वारा जाने अनजाने में यदि कुछ गलत हो रहा है तो बच्चों में उसका विरोध करने का साहस होना चाहिए .’
      तभी कात्यायनी अक्का ने एक घटना सुनाई थी—‘जब हमारे पिता जीवित थे तब उन्होंने हैदराबाद में मकान बनवाते समय अपने एक दोस्त से पंद्रह-बीस हजार रुपये यह कह उधार लिए थे कि एक दो महीने में ऑफिस से मिलते ही लौटा दूंगा .जब ऑफिस से रुपये मिले तो मेरे छोटे भाई बहन पीछे पड़ गए कि फ्रिज और टी वी चाहिए .पापा भी लाने को तैयार हो गए थे .मैं ने पापा को याद दिलाया कि यह रुपये तो आप को अपने दोस्त को वापस देने हैं .पापा ने लापरवाही से कहा मकान का किराया आना शुरू हो गया है.थोड़े पैसे ऑफिस से अभी और आने हैं ,तब लौटा दूंगा .बच्चे बहुत दिन से टी वी ,फ्रिज की फरमाइश कर रहे हैं ,पहले वही ला देता हूँ ’...पर मैं अड़ गई थी ‘हमें अभी कुछ नहीं चाहिए, पहले कर्जा वापस करिए.यह सामान बाद में भी आ सकता है .’
       पापा बहुत खुश हुए थे ‘थैंक यू कात्यायनी मैं बच्चों के मोह में भटक गया था , तुम ने बिलकुल ठीक कहा ,पहले हमें कर्जा वापस करना चाहिए .’       
     कात्यायनी अक्का के जाने के बाद भी उनकी बातें मेरे कानों में गूंजती रही थीं   ‘हम मामा से कोई खैरात तो नहीं मांग रहे.पापा के बाद अब पैसा ही हमारी डूबती नाव को पार लगा सकता है .वो पैसा उनके मेहनत की गाढ़ी कमाई का था .पैसा न होने की वजह से सलेक्शन के बाद भी मैं मेडिकल में दाखिला नहीं ले पाई क्यों कि हम दोनों भाई बहनों की मेडीकल की पढाई का खर्चा अम्मा नहीं उठा सकती थीं .इसीलिए मैं ने राघव को एडमीशन लेने दिया ,खुद पीछे हट गई .अब पैसे नहीं मिले तो उसको पढाई बीच में छोड़नी पड़ेगी .दूसरा भाई इंजीनियरिंग में नहीं जा पायेगा .दोनों छोटी बहने भी पढ़ रही हैं .भाई तो बहनों की मदद करते हैं .मम्मी  के इन भाई ने तो हमारा ही पैसा न देकर हमारी तकलीफें और बढा दी हैं .’
      अपनी माँ से बात करना व्यर्थ था और पापा से बात करने की हिम्मत नहीं थी . पता नहीं आम परिवारों की तरह हम अपने पापा से क्यों नहीं घुल मिल पाए थे  .शायद माँ व पिता दोनों को ही बेटा न होने का मलाल रहा है .वैसे हमारी सुख सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा गया है .कभी कोई अभाव महसूस नहीं होने दिया लेकिन कभी व्यर्थ का लाड़ भी नहीं लड़ाया गया .
     अम्मा जब बीमार नानी से मिलने दो तीन दिन के लिए गाँव गई थीं तब पापा और बहनों की देखभाल और खाने पीने की जिम्मेदारी मेरी हो गई थी .तभी एक दिन पापा को अच्छे मूड में देख कर मैं ने कहा था –‘पापा आप बुआ का पैसा लौटा दो ,उन्हें बहुत जरुरत है ’
       ‘बेटा ,पैसा हाथ में होता तो कब का लौटा चुका होता ...सब इधर उधर फंसे हैं '
  मैं कहना तो चाहती थी कि फंसे नहीं हैं,सब एक के दो और दो के चार हो रहे हैं लेकिन कह नहीं पाई .बस इतना ही कहा – ‘दस बीस हजार अभी भेज दें बाकी के कुछ दिन बाद भेज देना ‘
     ‘ठीक है.कुछ भेजने की कोशिश करता हूँ...अपनी माँ को नहीं बताना .’
पूछने का मन हुआ था कि आप माँ से इतना डरते क्यों हैं ?बुआ आप की कमाई मे से उधार या उपहार नहीं मांग रही हैं, वे अपने  पैसे मांग रही हैं ,माँ बीच में कहाँ से आ गयीं  ? उनसे पूछने या न पूछने या छिपाने का प्रश्न ही कहाँ उठता है. पर चाह कर भी कुछ नहीं कह पाई .
पता नहीं पापा माँ से इतना क्यों दबते हैं या तो घर में कलह से कतराते हैं या माँ को हाई ब्लड प्रेशर है ,उनको तनाव न हो इस लिए चुप हो जाते हैं या  फिर समय  समय पर  माँ द्वारा जान देने की दी गई धमकी से डर जाते हैं कि कहीं सचमुच ही वह कुछ कर न बैठें .यदि पापा की नीयत साफ है तो अम्मा को बिना बताये ,चाहे किश्तों में ही सही बुआ को पैसे लौटा सकते थे...लेकिन उन्हों ने ऐसा नहीं किया .इस से तो एसा लगता है कि पापा की नीयत भी ठीक नहीं है .
     बुआ तो कहती हैं शादी से पहले तेरे पापा बहुत सरल ,स्नेही, मददगार और साफ नीयत के इन्सान थे.पैसों से उन्हें जरा भी मोह नहीं था .घर में सभी उन पर बहुत विश्वास करते थे .शादी के बाद शुरू में उनकी तेरी माँ से जरा भी नहीं पटती थी .भाभी तुनक तुनक कर पीहर चली जाती थीं .तब भैया बहुत उदास हो जाते थे ,कहते थे पता नहीं इसके साथ जीवन कैसे कटेगा ?...यह तो बहुत स्वार्थी व पैसे के मामले में बहुत ‘मीन’ है .मेरे विचार तो इस पर किसी बिंदु पर मेल नहीं खाते.उसके घर में उसकी मम्मी का शासन चलता है ,यहाँ भी वह अपना शासन चाहती है.पता नहीं फिर क्या हुआ था ,धीरे धीरे भैया बदलते गए और एक दिन  ऐसा लगा की हमारे भाई अपने स्नेही व्यक्तित्व के साथ कहीं खो गए हैं ...वह वही देखते थे जो भाभी दिखाती थीं ,वही सोचते थे जो वह समझाती थीं .अपनी बुद्धि तो जैसे कहीं गिरवी रखदी थी .फिर भी न जाने कैसे मैं उनकी बातों में आगई .उन पर विश्वास करके सब रुपये उन्हें थमा दिए ...मेरी ही बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी .
      पिता का आज का रूप देख कर मुझे भी नहीं लगता कि कभी वह बहुत अच्छे इंसान रहे होंगे .माँ को अपने अनुरूप नहीं ढाल पाए तो शायद घर की सुख शांति के लिए खुद को ही अम्मा के रंग में रंग लिया था .औरत हो कर भी माँ बुआ का दुःख नहीं समझ पाईं.उनकी संवेदनाएं क्यों नहीं जागती. खुद को बुआ के हालात में रख कर कभी क्यों नहीं सोचा उन्हों ने.उनके साथ भी एसा ही हुआ होता ,उनका भाई भी उनके रुपये हड़प कर जाता तो वे क्या करतीं ? यही बात एक बार मैं ने अम्मा से कह दी थी तो वह तड़प उठी थीं ‘तू हमारा खून है. गैरों के लिए तेरे मन मे इतना दर्द है कि अपनी अम्मा के विधवा होने की बात भी सोच गई ...बाप तुम लोगों की चिंता में घुला जा रहा है .और ज्यादा कमाने के लिए रात दिन एक किये हुए है ताकि तुम लोगों को पार लगा सके .तेरे बुआ के तो दो बड़े बेटे हैं .फूफा के आफिस में नौकरी भी कर रही है .हैदराबाद जैसे बड़े शहर में अपना मकान है .तेरे पापा को कुछ हो गया तो हम तो बरबाद हो जायेंगे .’
      ‘तुम्हारे बेटा नहीं है...अपना मकान नहीं है...हम चार बेटियां हैं तो इसमे बुआ का दोष कहाँ हैं ?बेटियां हैं इस का मतलब यह तो नहीं की दूसरे का पैसा दबा लो , बेईमान बन जाओ ?’            
    फिर मैं ने खुद को थोड़ा शांत कर ,संयत स्वर में कहा था ‘तभी कहती हूँ अम्मा ,किसी का दिल मत दुखाओ...किसी की बद्दूआयें मत लो.बुआ को पूरी रकम लौटा दो ’ पर माँ पर कोई असर नहीं हुआ था .
      अम्मा की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ था .वह पापा से कह रही थीं ‘तुम्हारी बहन आज फिर आई थी .श्रीलता की शादी के विषय में मैं ने बात की थी लेकिन वह तैयार नहीं है .कहती है राघव नजदीकी रिश्तों में शादी के खिलाफ है .अब वहां तो ना ही समझो .अपनी श्रीलता के लिए दूसरा लड़का तलाशना शुरू करो .अब पहले श्रीलता की शादी करनी है...उसका पैसा बाद में लौटाते रहेंगे ‘ पापा चुप थे .
     पहले पापा अपनी आमदनी की चर्चा घर पर करते थे कि  उस जमीन  की कीमत पांच साल में इतनी बढ़ गई .जो मकान बुक कराया था उसका कब्ज़ा लेते ही इतने प्रॉफिट में खड़े खड़े बेच लो .लेकिन अम्मा ने इस चर्चा पर घर में पाबन्दी लगा दी थी – ‘सब के सामने आमदनी का लेखा जोखा ले कर क्यों बैठ जाते हो ?ज़माना रोने का है.खूब कमाओ तब भी रोते रहो की आमदनी ही नहीं है ...इतने खर्चे कैसे पूरे करूँ ...कर्जे में डूबा हूँ .’
    ‘तुम कैसी बातें करती हो ...घर में तुम्हारी सास नन्द बैठी हैं क्या ,जो सुन लेंगी ?...अपनी बेटियां ही तो हैं .’
     ‘उनके सामने भी यह सब बातें करने की क्या जरुरत है ?...तुम कुछ नहीं समझते .तुम्हारी बड़ी बेटी श्रीलता तो अपनी बुआ की पूरी चमची है .जब तब बुआ का पक्ष लेकर मुझे उल्टा सीधा सुनाती रहती है ,उनके पैसे वापस करने को कहती है और हमें बेईमान समझती है .’
      ‘ठीक ही कहती है, हमें उसके पैसे अब लौटा देने चाहिए.सब सगे रिश्तेदार मुझे कैसी नज़रों से देखते हैं ,तुम को क्या मालूम ?’
    ‘तुम ने एसा किया तो अच्छा नहीं होगा...उसने हमारे साथ कौन सा अच्छा व्यवहार किया है .हमारे घर में बेटी बैठी है ...फिर भी वह अपने बेटे के लिए बाहर की लड़की लाएगी...मैं भी उसे सबक सिखाऊँगी...तुम ने बिना मेरे पूछे एक पैसा  भी दिया तो ...जहर खाके मर जाऊंगी .फिर संभालना अपनी चारों बेटियों को’ कह कर अम्मा रोने लगी थीं .
‘अरे कौन दे रहा है...इस घर में तो हमेशा वही होता रहा है जो तुम ने चाहा है...बात बात पर मरने की धमकी देती रहती है .’ पापा ने कहा था
       मैं बहुत बेचैन रहने लगी हूँ .मन न जाने कहाँ कहाँ भटकता रहता है .अपने आप से ही तर्क वितर्क में उलझी रहती हूँ.हमारे देश में तो औरत ही औरत की दुश्मन है .यदि औरतें एक दूसरे का दुःख समझने लगें तो महिलाओं के पचास प्रतिशत दुःख मिट जायेंगे . हत्या आत्महत्याओं में भी कमी आजायेगी .कभी कभी तो मन करता है कि खाना पीना छोड़ कर अनशन चालू करदूं कि पहले बुआ का पैसा लौटाओ तब ही अन्न जल ग्रहण करूंगी .कभी मन करता है घर से रुपये चोरी करके बुआ को दे दूं ,बाद में जो होगा देखा जायेगा .पर यह सब सोचती रह जाती हूँ ,कर कुछ नहीं पाती किन्तु मुझे कुछ करना चाहिए ...सब से पहले मुझे आत्म निर्भर बनना होगा ,उसके बाद ही कोई ठोस कदम उठा पाऊंगी .
       तभी एक दिन पापा को माँ से कहते सुना था – ‘रोज पीछे पड़ी रहती हो कि श्रीलता के लिए लड़का ढूंढो ,लड़का ढूंढो.मैं ने एक लड़का देखा है ...पढ़ा लिखा है ,सुन्दर है ,घर में खूब पैसा है...सब से बड़ी बात उनकी मांग कुछ नहीं है .बस उन्हें सुन्दर ग्रेजुएट लड़की चाहिए .परसों वह लोग आरहे हैं ,लड़की पसंद आगइ  तो एक महीने के अन्दर शादी भी करना चाहते हैं '
         वह लोग आये थे .मधुकर मुझे भी अच्छा लगा था ,एक महीने के बाद बारात भी आगई थी .शादी की रस्म से पहले अचानक मधुकर मेरे पिता को भीड़ से अलग एकांत में ले गये .उपस्थित लोगों को यह सब अप्रत्याशित सा लगा .उन में कानाफूसी होने लगी कि लगता है दहेज़ की कोई नई मांग करनी होगी .मैं,मम्मी, मधुकर के पापा,बुआ आदि कुछ निकटतम रिश्तेदार भी उनके पीछे पीछे वहां पहुँच गए कि आखिर बात क्या है .मधुकर पापा से  कह रहा था ‘मुझे शादी से पहले एक लाख रुपये चाहिए ‘
       यह मांग सुन कर मधुकर के पिता घबड़ा गए थे कि बेटे को अचानक यह क्या हो गया .वह बोले – ‘मधुकर यह क्या तमाशा है ...शादी के बीच पैसा कहाँ से आगया ? मैं एक सच्चा समाज सुधारक हूँ ,सच्चे मन से इस काम में लगा हूँ .मैं दहेज़ के सख्त खिलाफ हूँ .अखवारों में फोटो छपवाने या सरकारी ,गैर सरकारी पुरस्कार पाने के लिए मैं ने समाज सेवा का ढोंग नहीं रचा है...तुझे जितना चाहिए मैं दूंगा.’
       मुझे ध्यान आया की सुबह राघव के हाथ से मधुकर ने एक पत्र मुझे भेजा था ,उसमें लिखा था – ‘ राघव से मुझे पता चला है कि तुम ने शादी के इस अवसर पर रिश्तेदारों के सामने बुआ को अपने रुपये वापस  मांगने की सलाह दी है , इसका मतलब घर में इतने रुपये तो होंगे ही .बुआ की मदद के लिए मैं एक नाटक करना चाह रहा हूँ...मेरा विश्वास है कि तुम मेरे साथ हो ’
    मैं ने अपनी स्वीकृति लिख कर भेज दी थी . मैं समझ गई कि अचानक यह मांग उसी नाटक का पहला भाग है अतः मैं शांत रही .
      पापा के हाथ पांव फूल गए थे .घबराये हुये वह मेरे पास आये –‘पहले तो इन्होंने कुछ नहीं माँगा था ...अब अचानक यह मांग रख दी .बेटी तेरी ख़ुशी के लिए मैं  यह मांग पूरी कर भी दूं...पर क्या भरोसा है कि एसी मांग आगे भी बार बार नहीं की जायेगी ?...और पूरा न किये जाने पर वही अंत होगा...जल जाएगी ...जला दी जाएगी या घर से निकाल दी जायेगी ‘ पापा अनिर्णय की स्थिति में थे
       तभी मधुकर का स्वर गूंजा –‘ आप लोग मुझे गलत न समझें ,भगवान की कृपा से हमारे पास सब कुछ है ,मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए ...पर आप के पास भी कोई कमी नहीं है फिर भी आपने अपनी बहन के साथ एसा क्यों किया ? आप ने बहुत वर्षों पहले अपनी बहन से साठ हजार रुपये लिए थे कि उनके नाम से कोई प्रोपर्टी खरीद देंगे और कीमत बढ़ जाने पर उसे बेच देंगे .इस बात को सात –आठ वर्ष हो गए .ना तो आपने प्रोपर्टी खरीद कर दी और और न ही मांगने पर भी रुपये वापस किये .आप की बहन रुखा सूखा खाकर गरीबी में दिन काट रही है फिर भी बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलाने की कोशिश में लगी है .पैसे के अभाव में बेटी को डॉक्टरी नहीं पढ़ा पाई .अब उसकी शादी भी नहीं कर पा रही हैं .यह किस्सा बहुत दिन पहले मैं ने अपने दोस्त राघव से सुना था .तब मुझे नहीं मालूम था कि कभी राघव के उन्हीं मामा की बेटी से मेरा विवाह होगा .आज राघव को यहाँ देख कर मैं चोंका था .फिर पता चला कि आप, राघव के वही मामा हैं जिन्हों ने अपनी बहन के पैसे वापस नहीं किये हैं .अब तक दस हजार ही दिए हैं .राघव की माँ भी यहाँ आई हुई हैं .सुबह से मैं उलझन में था कि कैसे उनकी मदद करूँ .और उनकी मदद के लिए ही मैं ने एक लाख की यह मांग की है .मैं आप से प्रार्थना करता हूँ कि एक लाख रुपये अभी राघव की माँ को लाकर दे दें .’
    अम्मा फिर बुआ को कोसने लगी थीं “मैं ने तो पहले ही कहा था कि अपनी बहन को शादी में मत बुलाओ .सबके सामने हमारी इज्जत का कचरा कर दिया ’ माँ रोने बैठ गई थीं .
        सात आठ दिन पहले ही पापा ने कोई जमीन बेच कर डेढ़-दो लाख रुपये घर में लाकर रखे थे कि शादी के घर में न जाने कब क्या जरुरत पड़ जाए.पापा ने बिना माँ की तरफ देखे तत्काल एक लाख रुपये लाकर बुआ के हाथ में रख दिए -- ‘ले बहन तेरी अमानत ,शर्मिंदा हूँ अभी तक नहीं दे पाया था .ये रुपये परसों ही तेरे लिए लाकर रखे थे .सोचा था शादी से लौटते समय तुझे सरप्राइज दूंगा लेकिन उससे पहले ही दामाद जी ने हमें सरप्राइज दे दिया .’
       मैं जानती हूँ बुआ को रुपये वापस करने का पापा का कोई इरादा नहीं था किन्तु इस समय उनके इस झूट से मुझे राहत मिली है .मजबूरी में ही सही बुआ का पैसा उनके हाथ से निकला तो .अब उन्हें रिश्तेदारों से नजर नहीं चुरानी पड़ेगी .मेरे पापा बेईमान हैं ,सगी विधवा बहन का पैसा खा गए ,मुझे इस अहसास के साथ नहीं जीना पड़ेगा .
        बुआ ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि इतने सारे रुपये उन्हें एक साथ मिल जायेंगे .उन के चहरे पर अजीब से भाव थे जैसे उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सच है.कहीं एसा न हो कि वह यह ख़ुशी बर्दाश्त ही न कर पायें ,राघव ने उन्हें बाँहों का सहारा दे दिया था ....सब ठीक हो गया था .
      मेरी आखों से अविरल अश्रु बह रहे थे.शादी के बाद मधुकर के साथ मिल कर मैं  एसा ही कुछ हंगामा  करना चाहती थी ताकि बुआ के पैसे वापस करा सकूं किन्तु मधुकर का मेरी तरफ बढ़ता पहला कदम सब समस्याएं सुलझा चुका था .  मैं भूल गई थी कि मधुकर से मेरी शादी अभी हुई नहीं ,होने वाली है . मुझे लग रहा था उससे तो मेरा जन्मों का नाता है .मैं लाज शर्म ,लोगों की भीड़ सब भूल कर उस से लिपट गई थी – ‘मुझे तुम पर नाज है .जो काम मैं अब तक बेटी हो कर नहीं कर पाई ,तुम ने कर दिखाया .’
       ‘लेकिन तुम्हारे सहयोग व सहमति के बिना मैं यह नहीं कर सकता था .अपने विचारों के अनुरूप तुम्हें पा कर मैं बहुत खुश हूँ .’
        बुआ ने भाव विभोर हो कर हम दोनों को अपने सीने से लगा लिया था                           
                        
( यह कहानी  1997 में प्रकाशित मेरे पहले कहानी संग्रह 'पहला कदम ' में से ली गई है .यह  1993 में मनोरमा में प्रकाशित हुई थी )


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-पवित्रा अग्रवाल
 
मेरे ब्लोग्स --

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

रेखा के पार


1997 में प्रकाशित मेरे पहले कहानी संग्रह    'पहला कदम' में से एक कहानी ---

कहानी
                    रेखा के पार


                                                             पवित्रा अग्रवाल

          स्टेशन पर उतरते ही निगाहें भाई को तलाश ने लगी थीं.भले ही घर दूर नहीं है, जगह भी जानी पहचानी है,घर अकेली भी आसानी से पहुँच सकती हूँ फिर भी विश्वास था कि भाई जरुर आयेंगे .अब तो उनके पास कार भी है ,हो सकता है भाभी भी साथ आजायें.किसी को भी न पाकर मन उदास हो गया .
         ऑटो कर के पहुची तो घर पहचान नहीं पाई.शायद पूरा तुड़वाकर नए सिरे से बनवाया गया है .नेम प्लेट पढ़ कर कालबेल बजाई तो दरवाजा एक नेपाली ने खोला और पूंछा ‘आप मीता मेमसाहब है न ,साहब की बहन ?’
       मेरे हाँ में सिर हिलाने पर वह मेरा सामान अन्दर ले गया और बोला ‘साहब और मेमसाहब घर पर नहीं हैं ,दो तीन घंटे में आजायेंगे .विक्की बाबू  कालेज गए हैं .’
  भाई भाभी के कई बार किये गए आग्रह पर इस बार मैं ने यहाँ आने का मन बनाया था लेकिन बच्चों ने मूड ख़राब कर दिया –‘आप को जाना है तो जाओ ,हमें वहां बोर होने नहीं जाना’ तब पति ने हिम्मत बंधाई थी –‘घर व बच्चों की चिता मत करो ...पांच छह दिन मैं संभाल लूँगा ‘तुम मिल आओ .’ फिर भी बच्चों को पहली बार अकेला छोड़ कर आते मन दुखी था .इसी लिए पांच दिन का प्रोग्राम बनाया था .दो दिन आने जाने के हो गए ,तीन दिन यहाँ रह लूंगी . 
      घर आये मुझे दो घंटे हो चुके थे .स्नान करके खाना भी खा चुकी थी पर भाई  ने फोन द्वारा यह जानने की भी ओपचारिकता नहीं निभाई थी कि मैं घर पहुंची भी हूँ या नहीं .आते ही भाभी ने कहा ‘ सौरी मीता हम तुम्हें घर में नहीं मिल सके .हमारे एक मित्र सपरिवार चार वर्ष बाद विदेश से आये हैं ,हम उन्हें डिनर पर बुलाना चाह रहे थे लेकिन शाम को वे फ्री नहीं थे इसलिए होटल में उन्हें लंच पर बुला लिया था .हम लोग विक्की को भी पढाई के लिए विदेश भेजना चाह रहे हैं… इन मित्र से कुछ मदद मिल सकती है .लंच के बाद उन्हें उनके घर तक छोड़ना पड़ा ...बस इसी में देर हो गई .तुमने खाना तो ठीक से खाया न ? मैं बहादुर को सब समझा कर गई थी ’
       मैं सोच रही थी उनके यह मित्र चार साल बाद आये हैं तो मैं भी तो कोई रोज आकर नहीं बैठी रहती .मैं भी छह वर्ष बाद यहाँ आई हूँ ,थोडा ख्याल तो मेरा भी करना चाहिए था .अभी उन्हें आये पंद्रह बीस मिनट ही हुए होंगे की भाभी भाई से बोलीं – ‘सुनो तुम थक गए होगे ...जाकर थोड़ी देर सो लो फिर शाम को तुम्हें क्लब भी जाना होगा .’
      फिर भाई ने दो चार वाक्यों में पति व बच्चों की खैरियत पूछने की ओपचारिकता निभाई और जम्हाई लेते हुए अपने कमरे में चले गए .तभी भाभी ने सूचना दी -‘मीता तीन घंटे बाद मुझे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ एक स्लम एरिया में जाना है .वहां निरीक्षण के लिए मंत्री महोदय आ रहे हैं .घर में बोर होगी, तुम भी चलो न .सफ़र में थक गई होगी थोड़ा आराम भी करलो ...मैं भी थोड़ी देर आराम करके आती हूँ .’मुझे ड्राइंग रूम में ही बैठा छोड़ कर उन्हों ने अपना बैडरूम बंद कर लिया था.
      मैं रुआंसी हो गई थी ,सच इन्हें तो जरा भी अहसास नहीं है .मैं पति व बच्चों को अकेला छोड़ कर पीहर के प्रति अपने इस एक तरफा मोह पर पछताई थी .भाभी के उठने तक मैं ने स्वयं को संयत कर लिया था .
      रास्ते भर भाभी बताती रहीं कि कहाँ कहाँ उनके इंटरव्यू छपे ...कौन कौन से सम्मान और अवार्ड उन्हें दिए गए ...समाज में कितना सम्मान उन्हें मिला है.
     ‘सच सोशल वर्क की लाइन बहुत अच्छी है .बड़े बड़े लोगों से परिचय बढ़ता है और  जरुरत मंदों ,गरीबों के लिए कुछ कर पाने से आत्म संतोष भी मिलता है ‘ एक सोशल वर्कर ने सूचना दी थी कि टी.वी.केमरावालों ,प्रेस फोटोग्राफरों, संवाददाताओं  को भी सूचित कर दिया गया है .ये लोग वैसे चाहे न भी आयें किन्तु मंत्री के नाम पर आजाते हैं ’
      उस बस्ती में जाकर मुझे लगा की भाभी के साथ मैं पहले भी यहाँ आचुकी हूँ .पहले की अपेक्षा इस बस्ती में काफी सुधार नजर आरहा है .पक्की गलियां, पक्के शौचालय बन गए हैं .जगह जगह कई हेन्ड पाइप लगे हुए थे .भाभी ने बताया सात- आठ वर्षों से हमारी संस्था इस बस्ती में काम कर रही है .पिछले वर्ष इस बस्ती में पांच कमरों की एक इमारत भी बनवाई थी .उस में एक डिस्पेंसरी चलती है .एक हॉल में सिलाई कढ़ाई सेंटर चलता है.बच्चों के पढ़ने के लिए बाल वाडी की भी व्यवस्था की है.बुजुर्गों के मनोरंजन के लिए एक कमरा अलग है ,जहाँ वह टेप रिकार्डर पर भजन सुन सकते है, टी.वी देख सकते हैं .’
     ‘ये काम आप की संस्था ने अच्छे किये हैं भाभी ’ तभी एक औरत ने आकर भाभी को सलाम किया और मुझे देख कर मुस्कराई.भाभी तो आगे बढ़ गई .वह महिला मेरे साथ चलने लगी –‘अम्मा आप बहुत दिनों बाद आये हैं यहाँ...हम तो आप को बहुत याद करते हैं .लगता है आप हमें पहचाने नहीं ?...हम हैं जरीना बी .’
     ‘हाँ जरीना बी हमने आप को सचमुच नहीं पहचाना ’
‘आप सात आठ बरस पहले यहाँ आये थे ;हमारा मरद शराब पी कर हम को बहुत मारता था ...सब पैसे छीन कर ले जाता था ‘
     मुझे बहुत वर्ष पहले की वह घटना याद आई .भाभी के साथ उस वर्ष भी मैं यहाँ आई थी .एक औरत ने रो रो कर अपनी कथा भाभी को सुनाते हुए अपनी पीठ पर पड़े मार के नीले निशान दिखाए थे .भाभी के लिए इस तरह की घटनाएँ आम बात थीं किन्तु मैं सकते में आगेई थी .वही थी जरीना बी .बहुत देर तक वह मुझ से बात करती रही थी ,तभी उसने बताया था कि उसका मर्द रिक्शा चलाता है और सारे पैसे दारू में उड़ा देता है ,कम पड़ने पर मारपीट कर उस से छीन कर लेजाता है .बातों के बीच ही उसने बताया था कि उसकी दो बेटियां हैं .तब मैं ने उसे सलाह दी थी की यदि अपने दुखों को और नहीं बढ़ाना चाहतीं तो इन्ही बच्चों में संतोष कर .इन को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाओ और तीसरे बच्चे का ख्याल दिल से निकल दो .
     उसने कहा था ‘अम्मा हम भी यही चाहते हैं पर हमारा मरद नहीं मानता .न वह खुद ओपरेशन कराता है न हमें कराने देता है. कहता है औलाद तो अल्ला की नियामत है ,उसके काम में दखल मत दे ‘पढ़ा लिखा नहीं है ,उसके संगी साथी भी वैसे ही हैं .नए ज़माने की बात वह नहीं समझता ...जब से यह पढ़ी लिखी बहने हमारी बस्ती में आने लगी हैं ,तब से हमारे सोचने समझने के तरीके में बहुत बदलाव आया है .हम समझ गए हैं कि हमारी गरीबी का कारण ये ढेर सारे बच्चे ही हैं.आप को नहीं मालुम अम्मा हम बचपन में बहुत तकलीफ पाए हैं .हमारी अम्मी पन्द्रहवां बच्चा पैदा करने में मर गई.अब्बा इतने सारे बच्चों को रोटी नहीं खिला पाते थे ,तालीम कहाँ से दिलाते ? भाई लोग बचपन से ही चाय पान की दुकान ,पेट्रोल पम्प आदि पर नौकरी करने लगे .चार भाई बहन भूख और बीमारी से मर गए .बाप निकाह करके दूसरी औरत को ले आया .अब्बा ने रुपयों की खातिर दो बहनों की शादी अरब से आये बूढों से कर दी .उनमे से एक तो अरब चली गई ,पता नहीं वहां वह कैसी है .दूसरी को उसका शौहर मौज मस्ती करके बम्बई के एक होटल में छोड़ कर चला गया .बाद में उसने ख़ुदकुशी कर ली .एक बहन को पास के गाँव में दस बच्चों के बाप से ब्याह दिया जिसकी पहले से ही दो बीबी जिन्दा थीं .हमारा हाल तो आप देख ही लिए .’
        मैं अपने ही विचारों में खोई थी कि उसकी आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ – ‘अरे अम्मा इतनी देर से आप किस सोच में डूबे हैं ?’
     ‘कुछ नहीं जरीना बी ...मुझे सब याद आगया .अब आपको कितने बच्चे हैं ? आपका पति वैसा ही है या कुछ सुधर गया है ?’
‘बच्चे तो अब भी हमारे दो ही हैं .आप के मशवरे पर हम डाक्टर अम्मा के पास गए थे ,वह कापर टी लगा दी थीं .मरद को पता ही नहीं चला .एक बार वह डाक्टर अम्मा के पास ले गया की इसको बच्चा क्यों नहीं हो रहा ? अम्मा को हम पहले ही सब बता दिए थे .जाँच करके वो बोलीं यह तो ठीक है ,एक बार तू भी जाँच कराले ,उसके बाद वह डाक्टर के पास नहीं गया .आप की सलाह से हमारी और हमारी बच्चियों की जिंदगी बन गई अम्मा वरना अब तक तो यहाँ भी बच्चों की कतार लगी होती .हम उन्हें सम्हालते या कमा कर लाते ? '
     तुम्हारा मरद ?
    ' हमारा मरद तो नहीं सुधरा.पहले वह दारू पीता था बाद में उसको दारू पी गई .जहरीली शराब पीने से पिछले बरस उसकी मौत हो गई .मरते दम तक  सताता ही रहा .वो हमारी चौदह बरस की बच्ची का निकाह हमारे अब्बा की उमर के बूढ़े अरब से करना चाह रहा था .बदले में रूपया भी मिल रहा था .उस दिन हमें भी गुस्सा आगया था .धक्का देकर उसे भी बाहर निकल आई .उसने मारने को हाथ उठाया तो हम भी डंडा लेकर खड़े हो गए ...पुलिस बुलाने की धमकी दी .बड़ी मुश्किल से अपनी बच्ची को उस सौदे से बचा पाए .’
अब तुम्हारी बच्चियां क्या कर रही हैं ?
     ‘अम्मा हम उन्हें अच्छी तालीम तो नहीं दिला पाए ,सात आठ क्लास पढ़ी हैं लेकिन दोनों सिलाई कढ़ाई के हुनर में माहिर हो गई हैं .एक सिलाई मशीन तो अम्मा दिलादी थीं ,एक हमने खरीद ली .हम दुकानों से स्कूल ड्रेस ,थैले ,लहंगे शमीज आदि थोक के भाव सिलने को ले आते हैं ...काम अच्छा चल रहा है.बैंक  में दोनों  के खाते भी खुलवा दिए हैं .अब बस एक ही तमन्ना है कि  बच्चियों को अच्छा शौहर मिल जाये .अरब शेखों के दलाल तो बस्ती मे चक्कर लगाते ही रहते हैं ...पर हमें बच्चियों का सौदा नहीं करना है ....अरे अम्मा क्या टाइम हुआ है ? हमें अपनी सास और ननद को लेने स्टेशन जाना है .मरद तो है नहीं अब यह काम हमें ही करना होगा ’
     उसे समय बता कर मैं सोच रही थी कि आत्म-निर्भरता ने इस अनपढ़ गरीब महिला में कितना आत्मविश्वास भर दिया है .अपने प्रयासों से गरीबी की एक रेखा तो इसने पार कर ही ली है .गरीबी से लड़ते हुए ,अपनी समस्याओं में उलझे होने के बाद भी अपने दिवंगत पति की बूढी माँ व बहन के आगमन के प्रति उत्साहित है .बसों में भीड़ के धक्के मुक्कों के बीच भी सफ़र कर उन्हें स्टेशन लेने जाने की इच्छा रखती है .
इधर एक तरफ मेरे भाई भाभी हैं .पढ़े लिखे हैं ,जिन्होंने समृद्धि और ख्याति द्वारा सफलता की कई रेखाओं को पार किया है किन्तु अपनों के प्रति ,निकटतम रिश्तों के निर्वाह के प्रति उदासीनता ,उत्साहहीनता ,सामान्य शिष्टताचारों की भी उपेक्षा उन्हें कहीं किन्ही रेखाओं से नीचे भी ले आई हैं .                                            
 
         
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शनिवार, 12 सितंबर 2015

           
कहानी

मेरे दूसरे कहानी संग्रह  'उजाले दूर नहीं ' में से एक कहानी  यहाँ प्रस्तुत है .यह कहानी 1998 में मनोरमा पत्रिका में प्रकाशित हुई थी  

                               छल
                                                   
                                                   पवित्रा अग्रवाल

 "दीदी मेरी एक सहेली मुसीबत में है। असल में वह एक धोखे का शिकार हो गई है। आपसे कुछ सलाह-मशवरा करना चाहती है। आपसे बिना पूछे ही मैंने उसे यहाँ आने को कह दिया है। मैंने कुछ गलत तो नहीं किया दीदी ? "
 "नहीं अनु, तुमने कुछ गलत नहीं किया है। कब आएगी वो ? उसके साथ क्या धोखा हुआ है  ? उस विषय में तुम मुझे कुछ बता सकोगी ?"
 "हाँ, दीदी .. जो थोड़ा-बहुत मुझे ज्ञात है वह मैं आपको बता देती हूँ। मेरी उस सहेली का नाम सुरभि है। उसने मेरे साथ ही इंटर पास किया है। उम्र यही अठारह साल के आसपास है। वह छह बहनें हैं, भाई एक भी नहीं है। बहनों में उसका नंबर चौथा है।"
 "दो वर्ष पूर्व उसकी सबसे बड़ी बहन पूनम, जो शादीशुदा थी, की मौत हो गई थी। अभी ढ़ाई महीने पहले अपने उसी बहन के पति भीष्म से सुरभि का विवाह हुआ है। सुरभि के दूसरे नंबर की बहन नीलम की शादी में उसके ये जीजा जी आए थे। नीलम के विदा हो जाने के बाद वह अपनी पत्नी पूनम को याद करके बहुत रोये और सुरभि के पिता से अनुरोध किया कि सुरभि की सूरत मेरी पत्नी पूनम से बहुत मिलती है। मैं उसे भुला नहीं पाया। मैं पूनम को बहुत प्यार करता था। मैं सुरभि से शादी करना चाहता हूँ।"
 "सुरभि के पिता तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि सुरभि से बड़ी एक बहन अभी अविवाहित है। उससे पहले वे सुरभि की शादी नहीं कर सकते। हाँ सुरभि की बड़ी बहन से शादी करना चाहो तो विचार किया जा सकता है।"
      "लेकिन उसके जीजा भीष्म ने सुरभि की बड़ी बहन से शादी करने से इन्कार कर दिया और वे सुरभि से ही शादी करने की जिद्द करने लगे। उन्होंने कहा, सुरभि की बड़ी बहन की शादी में मैं धन से आपकी मदद करूँगा क्योंकि दामाद भी बेटे की तरह ही होता है। उसके लिए अच्छा मैच भी बताऊँगा। अब मैं और अकेला नहीं रह सकता। सुरभि से शादी करके अब अपने साथ ही ले जाऊँगा।"
      "सुरभि के पिता ने शादी में आए रिश्तेदारों से सलाह-मशवरा किया। सभी ने यही सलाह दी कि जाना-पहचाना लड़का है। जमीन-जायदाद है, अच्छी नौकरी में है। मौका हाथ से मत जाने दो। उम्र भी अधिक नहीं है सुरभि से आठ-नौ वर्ष बड़ा होगा बस। यह शादी करके एक और बेटी की जिम्मेदारी से निबट जाओगे। सुरभि को भी सभी ने यही समझाया कि तुम्हारे पिता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता । तेरे अतिरिक्त अभी तीन लड़कियों की शादी और करनी है। पता नहीं कब और कैसे कर पाएँगे। तू भाग्यशाली है, तुझे तो माँग कर ले रहा है।"
    "पिता ने शादी की स्वीकृति देते हुए दो-तीन सप्ताह का समय माँगा था ताकि कुछ पैसे का इंतजाम कर सके किंतु वह नहीं माना। उसने कहा, "भगवान की कृपा से मेरे पास सब कुछ है। मुझे सुरभि के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए। उसने जबर्दस्ती दस हजार रुपये सुरभि के पिता के हाथ में रख दिये कि तैयारी में ये रुपये खर्च कर लें।'
 "इस तरह दूसरे दिन ही सुरभि की शादी हो गई। शादी के बाद वह सुरभि को लेकर घूमने चला गया। बीस-पच्चीस दिन सुरभि के साथ हनीमून मना कर वह दो दिन के लिए अपनी पोस्टिंग  वाली जगह भी गया फिर सुरभि को यहाँ छोड़ गया। तब से सुरभि यहीं पर  है। उसने पत्र में लिखा था कि उसका स्थनांतरण होने वाला है। तब लेने आएगा।'
 "तो अब समस्या क्या है अनु ?"
      "दीदी, अभी सुनने में आया है कि सुरभि से शादी करने के पन्द्रह दिन पहले भी उसने एक और शादी की थी। पता नहीं क्यों वह उस पत्नी के साथ एक दिन भी नहीं रहा और अब उससे तलाक लेने की कोशिश कर रहा है। यद्यपि यह बात उसने स्वयं न सुरभि को बताई न उसके घर वालों को।"
    तभी अनु की सहेली सुरभि आ गई थी । बहुत उदास थी। उसकी आखें रो-रोकर सूज गई थीं। मैंने उसे पास बैठा कर समझाया था कि "परेशान मत हो, हर समस्या का हल होता है। इसका समाधान जरूर होगा। मुझे विस्तार से पूरी बात बताओ। तुम्हें यह कैसे ज्ञात हुआ कि तुम्हारे पति ने तुम से पहले भी एक शादी की है।"
     "मेरे पति आदम पुर में हैं। वह एयरफोर्स में हैं। अभी चार-पाँच दिन पहले की बात है कि मेरी छोटी बहन, जो दसवीं कक्षा में पढ़ती है, अपनी एक सहेली से बात कर रही थी। बातों के दौरान उसने कहा, "मेरी जीजा जी आदमपुर में रहते हैं।"
 मेरी बहन ने कहा, "हमारे जीजा जी भी आदमपुर में रहते हैं।"
 उसने बताया, "वह एयरफोर्स में हैं, उनका नाम भी भीष्म सिंह है"।'
        मेरी बहन ने यह बात घर आकर बताई तो हम लोग चौंके कि कहीं ये दोनों व्यक्ति एक ही तो नहीं हैं।"
     "मेरे पिता उस लड़की के घर गये। उसके पिता ने बताया कि मेरी भतीजी की शादी करीब तीन महीने पूर्व हुई है। उसका पति भीष्म एयरफोर्स में है और आजकल आदमपुर में है। फोटो देख कर बोले कि हाँ इसी से मेरी भतीजी की शादी हुई है। शादी के दूसरे दिन ही उसने मेरी भतीजी को वापस भेज दिया और अब वह तलाक चाहता है। यह सब समाचार मुझे भाई के पत्र से ज्ञात हुए हैं। भतीजी की शादी के बाद से मेरी मुलाकात भाई से नहीं हुई है। अत: डिटेल में मुझे जानकारी नहीं है। यदि उसी लड़के ने पुन: आपकी बेटी से भी शादी की है तो यह तो सरासर धोखा है। सरकारी नौकरी में है। इस धोखाधड़ी के जुर्म में उसकी नौकरी तो जायेगी ही, उसे जेल भी हो सकती है। उसे सजा मिलनी चाहिए। मैं अपने भाई को यहाँ बुलाता हूँ। आप दोनों मिल कर उस पर केस कर दें तो उसकी तो ऐसी की तैसी हो जाएगी।"
      "दीदी, हमारे घर में मातम का सा माहौल है। इधर ज्ञात हुआ कि मैं माँ बनने वाली हूँ। क्या करूँ, कुछ भी समझ में नहीं आता। मेरी जिंदगी तो उसने बरबाद कर दी है। मन होता है आत्महत्या कर लूँ।" वह सुबक-सुबक कर रोने लगी थी।
     मैंने उसे सांत्वना देने का प्रयास किया और पूछा, "अब तुम और तुम्हारे पिताजी क्या करना चाहते हैं ?'
    "पिताजी उस पर कोर्ट केस करना चाहते हैं। उन्होने वकील से नोटिस भिजवाया है। वह आजकल में आता ही होगा।"
    मैंने सुरभि से कहा, "उसके आने पर हो सके तो एक बार मेरे पास लेकर आना। पता तो चले कि उसने ऐसा क्यों किया और अब वह क्या चाहता है। तभी आगे के विषय में कुछ निर्णय लिया जा सकेगा।"
    दूसरे दिन ही सुरभि अपने माता"पिता के साथ मेरे पास आई थी। उन्हीं से पता चला कि भीष्म सिंह भी आया हुआ है।
  मैंने उनसे पूछा, "वह चाहता क्या है ? और उसने आपके साथ ये धोखा  क्यों किया ?'
   "जब से वह आया है बस रो रहा है। कहता है मैंने आपके साथ कोई धोखा नहीं किया। सुरभि मेरी पत्नी है और जिंदगी भर मेरे साथ रहेगी। मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ, उसे पूरे सम्मान के साथ रखूँगा।"
    पहली शादी के विषय में कहता, "हाँ मैंने वो शादी की थी। किंतु लड़की वालों ने मेरे साथ धोखा किया है। उस लड़की के शरीर पर व पैरों पर सफेद दाग हैं, जो कपड़ों में ढके रहते हैं, ऊपर से दिखाई नहीं देते। उन्होंने पहले बता दिया होता तो मैं वह शादी नहीं करता। मैंने उस लड़की को छुआ तक नहीं है, दूसरे दिन ही वापस भेज दिया दिया था। अब वह लोग फोन पर धमकी दे रहे हैं कि लड़की को साथ रखो वर्ना दहेज के लालच में लड़की को सताने और वापस भेज देने के जुर्म में सजा कराएँगे। चाहे वे मेरी जान ले लें लेकिन मैं उस लड़की के साथ नहीं रह सकता।"
    "उसका कहना है कि सुरभि की बहन नीलम की शादी में सुरभि को देख कर मुझे अपनी पत्नी पूनम की याद आ गई और तभी सुरभि से शादी करने का ख्याल मन में आया और मैंने आपके आगे अपनी इच्छा जाहिर कर दी। यदि मैं शादी की बात बता देता तो आप सुरभि की शादी मुझसे नहीं करते। हाँ, ये मेरी गलती है। आप जो चाहें सजा मुझे दे लें। मुझे मंजूर होगी।"
    सुरभि के पिता ने सब बातें विस्तार से बताते हुए मुझसे पूछा, "बेटी, अब तुम बताओ, हमें क्या करना चाहिए।"
      मैंने कहा, "अंकल मैं जानना चाहती हूँ कि आप क्या चाहते हैं ?...उससे समझौता करना चाहते हैं या उसे सजा दिलाना चाहते हैं ?'
   "यों तो भीष्म ने हमारे साथ सरासर धोखा किया है .. हमारी बेटी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया है फिर भी हम यदि उस पर मुकदमा दायर करते हैं तो उस के साथ-साथ हमारी बेटी की जिंदगी भी बरबाद हो जाएगी। अभी वह इतनी पढ़ी-लिखी नहीं है कि अपने पैरों पर खड़ी हो सके। साथ ही वह माँ भी बनने वाली है। हम इतने समृद्ध नहीं हैं कि बेटी को इतना कुछ दे दें कि वह आसानी से जीवन निर्वाह कर सके। मैं तो अपनी तीन कुँवारी बेटियों की ही शादी नहीं कर पा रहा, उसकी दूसरी शादी कैसे कर पाऊँगा। कोर्ट केस करो भी तो बरसों लग जाएँगे और पैसा भी पानी की तरह बहेगा, जो हमारे पास नहीं है। यदि हम केस जीत गये और उसे सजा भी करा दी तब भी मेरी बेटी की जिंदगी की कोई समस्या हल नहीं होगी। अभी तो वह माफी माँग रहा है। मेरी बेटी को अपने साथ रखना चाहता है। उसकी एक यही विनती है कि पहले पक्ष के साथ मिलकर हम उसके विरुद्ध खड़े न हों और कोर्ट में ये गवाही भी न दें कि उसने हमारी बेटी से शादी की है क्योंकि पहले पक्ष का साथ देने का मतलब उसकी सजा निश्चित है।"
     "अपनी बेटी के हित को ध्यान रख कर हमने भी यही फैसला किया है कि हम भीष्म के विरुद्ध न जाएँ। बेटी क्या हम कुछ गलत सोच रहे हैं ?"
     "नहीं अंकल, आप जिन परिस्थितियों में हैं उनमें आपका यह निर्णय गलत नहीं है फिर भी मैं चाहती हूँ कि आप अपने दामाद भीष्म सिंह से मेरी एक मुलाकात करा दें।"
    सुरभि के माता-पिता के जाते ही मेरी छोटी बहन अनु मुझ पर बरस पड़ी, "वाह दीदी, आप तो नारी स्वतंत्रता, नारी न्याय की बड़ी-बड़ी बातें करती व सोचती हैं। यह तो उस धोखेबाज के सामने हथियार डालना हुआ। उसके किए की सजा उसे कहाँ मिली ? उसे तो जेल की सजा होनी चाहिए यदि आपके साथ या मेरे साथ ऐसा होता, तब भी आप यही निर्णय लेती ?'
     "देखो, अनु कोई भी निर्णय व्यक्ति विशेष की परिस्थितियों के हिसाब से लिया जाता है। मेरे साथ यदि ऐसा होता तो मेरा फैसला यह नहीं होता। मैं अपने पैरों पर खड़ी हूँ, पढ़ी-लिखी हूँ, बोल्ड हूँ। वैसे भी सुरभि के पिता को मैंने कोई सलाह नहीं दी है। यह उनका अपना फैसला है किंतु मुझे उनके इस फैसले में कोई बुराई नजर नहीं आई, बशर्ते भीष्म की नीयत में खोट न हो।"
 शाम को सुरभि भीष्म के साथ आई थी।
  आते ही भीष्म ने कहा था, "सुरभि आपको दीदी कहती है। क्या मैं भी आपको दीदी कह सकता हूँ ?'
 "हाँ, क्यों नहीं।"
 "दीदी, इस सुरभि को समझाए। आपको तो पता होगा कि यह माँ बनने वाली हैं किंतु यह इस गर्भ को समाप्त कर देना चाहती है, कहती है "मुझे तुम जैसे धोखेबाज के साथ जीवन नहीं बिताना है.. मुझे अपनी जिंदगी अकेले ही काटनी है... इसके लिए मुझे आत्मनिर्भर बनना होगा, पढ़ना होगा। यह बच्चा मेरे पैरों की बेड़ी बन जाएगा।'
     "हाँ, दीदी, मैंने कुछ गलत नहीं कहा। वैसे भी बच्चा पति-पत्नी के प्रेम की निशानी होता है। लेकिन हमारे विवाह का आधार प्यार नहीं छल है। मैं इस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती और न ही  इनके साथ रहना चाहती हूँ।उस लड़की के परिवार ने इनके साथ धोखा किया इसलिए इन्होंने उनकी लड़की को त्याग दिया। इन्होंने मेरे साथ धोखा किया है इसलिए मैं इनका त्याग करती हूँ। ये मेरी प्रिय बहन के पति रहे हैं बस, इस नाते इनको अपनी तरफ से यह सहयोग दे सकती हूँ कि हम इनके खिलाफ कोर्ट में खड़े नहीं होंगे किंतु दूसरी पार्टी बहुत संपन्न है, इनको सजा कराके रहेगी। इस धोखेबाज को सजा मिलनी ही चाहिए।'  कह कर सुरभि रोती हुई वहाँ से उठ कर चली गई।
      मेरे पूछने पर भीष्म सिंह ने कहा, "दीदी, मैं कोई क्रिमिनल नहीं हूँ, जिसका एक के बाद एक शादी करते जाना शौक हो। हाँ, मैंने एक सच को छिपा कर बहुत बड़ा अपराध किया है। यद्यपि उसके पीछे भी मेरा सुरभि के प्रति प्यार ही था। मैं बता देता तो सुरभि को नहीं पा सकता था। अभी तो यह मुझसे बहुत नाराज है। यद्यपि इसकी नाराजगी सही है। अभी मैं जा रहा हूँ, उधर का केस सुलझते ही फिर आऊँगा। आपसे एक निवेदन है, किसी तरह समझा-बुझाकर सुरभि को गर्भपात कराने से रोक लें।...आपका अहसान जीवन भर नहीं भूलूँगा। उसके माता-पिता ने तो मुझे माफ़ कर दिया है।"
     भीष्म सिंह तो वापस लौट गया था। सुरभि को मैंने समझाया था कि गर्भपात भी हत्या ही है। तुम बच्चे को जन्म दो, यदि तुम उसे साथ नहीं रखना चाहोगी तो मेरे भाई-भाभी को दे देना। उनके कोई संतान नहीं है, वह उसे गोद ले लेंगे।...बहुत समझाने पर वह मान गई थी किंतु वह अपने फैसले पर अटल थी कि भीष्म के साथ नहीं रहेगी।
     एक दिन सुरभि ने बताया कि पुलिस ने दहेज के लिए पत्नी को छोड़ने व सताने के आरोप में भीष्म सिंह को गिरफ्तार  कर लिया है।
 इस समाचार के सात-आठ दिन बाद ही एक दिन अचानक भीष्म सिंह सुबह-सुबह मेरे घर आ पहुँचा, "दीदी स्टेशन से सीधे आपके पास आ रहा हूँ। सुरभि या उसके घर वालों को तो मेरे यहाँ आने के विषय में कुछ नहीं पता है।"
    पूछने पर उसने बताया कि पुलिस तो उसे गिरफ्तार करके ले गई थी। उस लड़की के घर वाले  मेरे पीछे पड़े थे किंतु उस लड़की ने मुझे मुक्त करा दिया। उसने साफ कह दिया कि मुझे दहेज के लिए नहीं सताया गया। मेरे माता-पिता ने एक सच को छिपाया था। मुझसे तो कहा था कि सफेद दाग होने की बात लड़के को बता दी गई है, जबकि इनको नहीं बताई गई थी। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है। मैं तो शादी करना ही नहीं चाहती थी क्योंकि मैं जानती थी कि उसका अंत ऐसा ही कुछ होगा।'
 "आपसी सहमति से हमारा तलाक हो गया है।...यहाँ सुरभि के माता-पिता तो मुझे माफ कर चुके हैं किंतु सुरभि मुझसे नफरत करती है।'
   बहुत-सी बातें वह मुझसे करता रहा फिर सुरभि के घर चला गया। शाम को वह पुन: आया था।.. बहुत निराश दिख रहा था। उसने बताया "माता-पिता के समझाने का भी सुरभि पर कोई असर नहीं हो रहा। कहती है, "जबर्दस्ती इनके साथ भेजोगे तो आत्महत्या कर लूँगी।'
   सोचता हूँ आज वापस लौट जाऊँ।'
    थोड़ी देर बाद सुरभि को उसके माता-पिता मेरे पास ले कर आये थे। सुरभि के एक बार फिर धोखेबाज कहने पर भीष्म सिंह तड़प उठा था।
 "इतने दिन से मैं छल और कपट के आरोप सुने जा रहा हूँ। छल मेरे साथ भी किया गया था किंतु मैंने आज तक वह बात कभी नहीं कही।'
  "उस परिवार के अतिरिक्त भी आपसे किसी ने छल किया था ?... किसने दिया था आपको धोखा ?" सुरभि ने पूछा था।
 "तुम्हारे मम्मी-पापा ने भी मेरे साथ धोखा किया था।"
   "मैं नहीं मान सकती। उन्होंने तुम्हारे साथ क्या छल किया है ?"
     "यदि तुम्हारे मम्मी-पापा ने अपनी गलती स्वीकार कर ली तो क्या तुम मुझे क्षमा कर दोगी ?.. मैं तुम्हें बता तो रहा हूँ किंतु तुम यह कभी मत सोचना कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता या तुम्हारे माता-पिता के छल का बदला लेने के लिए मैंने तुम से छल किया है। सच मानों, मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूँ। किसी बदले की भावना से मैंने ये शादी नहीं की है।"
 सब भौंचक्के हो कर भीष्म को देख रहे थे।
 'बेटे, तुम किस छल की बात कर रहे हो ?...हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा।"
   "पापा मैं अभी बताता हूँ, आपकी बड़ी बेटी यानी मेरी पत्नी पूनम को हार्ट डिजीज थी। डॉक्टर ने उसकी शादी न करने की सलाह भी आपको अवश्य दी होगी। लेकिन इस सच्चाई को मुझसे छिपा कर आपने उसकी शादी मुझसे कर दी। क्या मैं गलत कह रहा हूँ ? '
     पापा की नजरें झुक गई थीं, "हाँ बेटे, हार्ट प्राब्लम तो उसको थी किंतु उसकी शादी न करने की सलाह डॉक्टर ने हमें नहीं दी थी।"
     "किंतु पापा आपने हार्ट प्राब्लम होने वाली बात भी हमें नहीं बताई थी। एक तरह से क्या ये छल नहीं है ? ...पहली प्रेगनेन्सी में डिलीवरी के दौरान पूनम की मौत हो गई। हमारी डॉक्टर ने बताया था कि ऐसे केसेज में हम लड़की की शादी न करने की सलाह देते हैं क्योकि मातृत्व की पीड़ा उसके लिए जानलेवा बन सकती है।"
 सुरभि के माता-पिता मौन थे ।
 "अब मुझे कुछ नहीं कहना है। मैं "सवेरा" होटल में ठहरा हूँ। सुरभि, तुम्हारे पास सोचने के लिए रात भर का समय है यदि तुमने मुझे माफ कर दिया है तो सुबह सात बजे तक मुझे खबर भिजवा देना, मैं तुम्हें लेने आ जाऊँगा वर्ना सुबह की ट्रेन से वापस लौट जाऊँगा।'
 सुरभि ने जाते हुए भीष्म का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया था -- "रुक जाओ, मैंने निर्णय ले लिया है.. मैं  तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ।"       


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गुरुवार, 13 अगस्त 2015

अधिकार के लिए

  (     मेरे दूसरे  कहानी संग्रह   'उजाले दूर नहीं "  में से एक कहानी )

            यह कहानी करीब  30 वर्ष पूर्व लिखी गई थी  


कहानी

          अधिकार के लिए
                                                                 
                                                                        पवित्रा अग्रवाल

  उत्तर प्रदेश से दूर दक्षिण के इस प्रांत में अचानक मेरी मुलाकात कमलेश से हो जाएगी ऐसा मैंने सोचा भी नहीं था। मैं बस में चढ़ रही थी और कमलेश उसी बस से उतर रही थी। एक-दूसरे से हमारी नजरें मिली, आँखों में कुछ पहचान उभरी और हम एक-दूसरे से लिपट गए थे।
 "अम्माँ आप लोगों को बस में नहीं चढ़ना तो न सही, लेकिन हमें तो बस में चढ़ने को रास्ता दो।'
  तब हमें ध्यान आया कि हम अन्य लोगों का रास्ता रोके खड़े हैं। मैंने पूछा, "कमलेश तू यहाँ कब आई ?'
 "नीरू यही सवाल तो मैं तुझसे भी पूछना चाहती हूँ।'
 "मैं यहाँ तीन वर्ष से हूँ। मेरे पति बैंक में हैं। ट्रान्सफर होकर यहाँ आए हैं।'
 कमलेश ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बस में चढ़ने से रोक लिया और बोली, "नीरू मेरा घर पास में ही है, तुझे जल्दी न हो तो घर चल, बहुत सी बातें करेंगे।'
 ठीक है कमलेश, मुझे घर जाने की कोई जल्दी नहीं है। इस बहाने तेरा घर भी देख लूँगी। तुझसे मिलकर मुझे कितनी खुशी हुई है यह मैं व्यक्त नहीं कर सकती लेकिन तेरे पति तो व्यापार करते थे। तू इस शहर में कैसे आ गई ?'
 "नीरू ये बहुत लंबी कथा है।....घर चल कर सब बताऊँगी।'
 हम दोनों बातें करते कमलेश के घर तक पहुँच गए। लिफ्ट में प्रवेश करते हुए मैंने कमलेश से पूछा, "तुम कौन से फ्लोर पर रहती हो ? तुम्हारा ये कोम्पलैक्स तो बहुत खूबसूरत बना हुआ है। यहाँ दो बेड रूम फ्लैट का क्या किराया होगा ?'
   "किराया चार हजार के आसपास है। मैं चौथे फ्लोर पर रहती हूँ।' फ्लैट का ताला खोलकर कमलेश ने मुझे अपने सुसज्जित ड्राइंग रूम में बैठाया। मैं अपनी जिज्ञासा और अधिक रोक नहीं पा रही थी।
 मैंने पूछा, "कमलेश तेरी शादी तो रमेश से हुई थी। उन दिनों तेरी शादी ने उस छोटे से कस्बे को हिलाकर रख दिया था। जैसे कोई भूकंप आ गया हो। तूने जो कदम उठाया था वह सबके लिए एक नई बात थी। इतनी हिम्मत तूने कहाँ से जुटाई थी ? तभी तुझ से मिलने को मेरा बहुत मन कर रहा था, लेकिन उन्हीं दिनों पापा का ट्रांसफ़र हो गया था। शादी के समय तो तू गर्भवती थी। क्या हुआ था बेटा या बेटी ?...और वो कहाँ हैं ?...'
 "हाँ तब मेरे बेटी पैदा हुई थी। वह अब दस वर्ष की हैं। उसका नाम सपना है। इस समय वह स्कूल गई हुई है। नीरू बातें तो आराम से होती रहेंगी पहले ये बता गर्म लेगी या ठंडा ?'
 "पहले तो एक गिलास ठंडा पानी पिला दे कमलेश, फिर चाय चलेगी।'
 "पानी का गिलास मुझे देकर कमलेश रसोई में चली गई। मेरा मन अतीत में भटकने लगा था। करीब दस-ग्यारह वर्ष पहले की बात है एक दिन अचानक शहर में तहलका सा मच गया था। भाई ने बाहर से आकर बताया था कि कमलेश नाम की एक लड़की ने चौराहे की एक दुकान पर आमरण अनशन कर दिया है। सुना है दुकान मालिक के बेटे ने मंदिर में उससे शादी की थी और अब जब वह माँ बनने वाली हैं तो उसने उसे पत्नी मानने से इन्कार कर दिया है। उसकी कल शाम को ही किसी सेठ की बेटी से सगाई होने वाली है।
    महिला संस्था की बहुत सी सदस्याएँ वहाँ लड़के के खिलाफ नारे लगा रही हैं। दुकान पर बैनर लगे हैं---
 "मेरे बच्चे को पिता का नाम दिलाओ या यहीं मेरी चिता जलाओ' "पत्नी का अधिकार लेकर रहूँगी'- तब भाई ने ही बताया था कि कमलेश को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी है। पुलिस को स्थिति सँभालनी पड़ी है। पुलिस वहाँ किसी को ठहरने नहीं दे रही। लोग आते जा रहे हैं और आगे बढ़ते जा रहे हैं।
 यह तो मुझे बाद में पता चला था कि ये कमलेश वही है, जो इंटर में मेरी दोस्त थी। कॉलेज में भी वह बहुत उदास रहती थी। अपनी सौतेली माँ द्वारा सताए जाने के किस्से वह अक्सर मुझे सुनाती रहती थी और बहुत बार तो वह रो भी देती थी। देखने में वह सीधी-सादी लड़की थी। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि कभी वे ऐसा भी कुछ कर सकती है।
    कमलेश द्वारा चाय की ट्रे मेज पर रखने से मैं अतीत से वर्तमान में लौट आई। मेरे मन में कमलेश को लेकर बहुत सी जिज्ञासा थीं, जिनका समाधान मैं कमलेश से चाहती थी। चाय पीते हुए मैं और अधिक सब्र नहीं कर पाई और बातों की धारा उसी तरफ मोड़ते हुए मैंने पूछा, "कमलेश रमेश के क्या हाल हैं, वह कहाँ हैं ?'
  "रमेश को तो मैंने तभी छोड़ दिया था। वह शादी भी कोई शादी थी। वह ज़बरदस्ती की शादी थी। वह लंबी नहीं खिंचेगी यह मैं पहले ही जानती थी किंतु अपने बच्चे को पिता का नाम दिलाने के लिए मुझे मजबूरी में वह सब करना पड़ा था।'
   "कमलेश तू देखने में तो बड़ी डरपोक सी थी। तुझमें इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई कि तू दुकान पर भूख हड़ताल करने बैठ गई ?'
 "असल में मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी। इन हालातों में अन्य कुंवारी माँओं की तरह मैं भी नदी में कूद कर जान देने गई थी किंतु मुझे एक महिला ने बचा लिया, उस महिला का नाम रत्ना था। वह किसी सामाजिक संगठन की सदस्या थी। मेरे आत्महत्या का कारण सुनकर वह मुझ पर बिगड़ पड़ी।
 उसने कहा-- "एक गलती पहले कर चुकी हो अब दूसरी करने जा रही हो। गलती सिर्फ तुम्हारी ही नहीं है। प्यार में रमेश ने तुम्हें धोखा दिया है। सजा तुम अकेली क्यों भुगत रही हो। लड़कियों की इसी कायरता से लड़कों को प्रोत्साहन मिलता है। लड़की में जरा भी हिम्मत हो तो वह ऐसे लोगों को सबक सिखा सकती है। एक को सबक सिखाने का मतलब है समाज के अन्य लोगों को भी सबक मिल जाएगा। इसमें सबक लडकों को ही नहीं, लड़कियों को भी मिलेगा ताकि वह ऐसी बेवक़ूफ़ियाँ न करें जिससे बाद में उन्हें शर्मिंदा होना पड़े।'
       "कमलेश रत्ना ने कहा तो ठीक ही था लेकिन एक बात बता प्यार करना गलत नहीं है किंतु प्यार में शादी से पहले सब सीमाएँ तोड़ देना भी तो सही नहीं है ? तू इस हद तक कैसे पहुँच गई कि गर्भवती हो गई ?'
  "नीरू की तो मैंने भी शादी ही थी किंतु मेरी अज्ञानता की वजह से वह शादी एक छलावा सिद्ध हुई। हमने बाकायदा मंदिर में रमेश के तीन दोस्तों के सामने शादी की थी। शादी की सभी रस्में मंदिर के पुजारी ने पूरी की थीं किंतु मेरे पास इसका काई प्रमाण नहीं था। फोटो भी खिंचवा लिया होता तो कुछ तो सबूत होता।'
  "शादी के बाद क्या तुम साथ रहने लगे थे ?'
  "नहीं नीरू शादी के बाद हम साथ नहीं रहे। रमेश का कहना था "मौका देख कर माँ को सब बता दूँगा। तुम तो जानती हो कि मैं पिता के साथ ही बिजनेस करता हूँ यदि उन्होंने घर से निकाल दिया तो मैं सड़क पर आ जाऊँगा।'
  अत: उसने शादी की बात किसी से भी कहने को मुझे मना कर दिया था। कभी-कभी हम उसके एक दोस्त के कमरे पर मिल लेते थे। उसका दोस्त पढ़ने के लिए किराए पर कमरा लेकर वहाँ रहता था।'
  "फिर क्या हुआ ?'
   "जब मुझे माँ बनने की बात का ज्ञान हुआ तो मैंने रमेश को बताया। यह सुनकर वह घबरा गया और बोला, "तू किसी महिला डॉक्टर से बात कर के गर्भपात करा ले, रुपये मैं दे दूँगा।...मेरे घर वालों को यह बात पता नहीं चलनी चाहिए वरना बात बिगड़ जाएगी' लेकिन मैंने रमेश की बात नहीं मानी तो उसने रंग बदल लिया और बोला    - "क्या सबूत है कि मैं ही इस बच्चे का बाप हूँ या मैंने तुझसे शादी की थी ? यदि सबूत है तो लाकर दिखा।'
    "सच नीरू उसका बदला रूप देखकर समझ गई थी कि मैं छली गई हूँ। मन हो रहा था धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊँ। मैं मंदिर गई तो पुजारी ने पहचान ने से इंकार कर दिया। उसके तीनों दोस्त दूसरी जगह से यहाँ पढ़ने आए हुए थे। छुट्टियों में वे अपने गाँव वापस चले गए थे। मैं अकेली क्या करती ?...कहाँ से सबूत जुटाती ?'
    "कमलेश तेरे घर वालों को जब इस बात का पता चला तो क्या हुआ ?'
 "घरवाले थे ही कौन ? तुझे तो पता है कि माँ बचपन में ही मर गई थी। पिता ने तभी दूसरी शादी कर ली थी। सौतेली माँ ने एक दिन चैन से नहीं जीने दिया। फिर उनके भी दो बेटियाँ और एक बेटा पैदा हो गया। फिर तो मैं उनकी नौकर बन कर रह गई थी। माँ से झगड़ा करके पिता ने मुझे इंटर करवाया था। रोज-रोज के कलह से तंग आकर वह दिल के मरीज बन गए। उन दिनों तो उन्हें पैरालैसिस का अटैक हुआ था और वह बिस्तर पर थे। माँ को जब पता चला तो उन्होंने चोटी पकड़ कर मुझे घर से बाहर निकाल दिया और बोली, "कलमुही अब कभी लौट कर यहाँ मत आना। जरा भी शर्म बाकी है तो नदी में जाकर डूब मरना। मैं अपने बच्चों पर तेरी छाया भी नहीं पड़ने दूँगी।' घर से निकाले जाने पर मैं नदी में कूद कर आत्महत्या करने गई थी, वहाँ रत्ना ने मुझे बचा लिया।'
 "फिर क्या हुआ कमलेश ?'
 "रत्ना के कहने पर मैं रमेश के घर गई तो उसका घर सजाया जा रहा था, मालूम हुआ कि दूसरे दिन रमेश की सगाई है। उसकी माँ को मैंने अपनी व्यथा-कथा सुनाई किंतु उन्होंने मुझे अपमानित करके घर से निकाल दिया। फिर मैं दुकान पर गई, मुझे देखते ही रमेश का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने मुझसे कहा-  "दस-बीस हजार मुझ से लेकर मेरा पीछा छोड़ दो।'
       तभी मैं वहाँ बैठ गई और बोली, "मैं लौटने के लिए यहाँ नहीं आई हूँ, सबके सामने मुझे पत्नी स्वीकार कर वरना तेरी इस दुकान पर बैठ कर अपनी जान दे दूँगी। वह तो दुकान छोड़ कर भाग गया। थोड़ी ही देर बाद रत्ना महिला मंडल की सदस्याओं को लेकर वहाँ आ गई और उन्होंने मेरे पक्ष में रमेश के खिलाफ नारे लगाने प्रारंभ कर दिये।'
         "हाँ, ये तो मुझे मालूम है। सुना था रमेश के ससुराल वाले भी तेरे पास आए थे।'
 " हाँ रमेश के ससुराल वाले मेरे एहसानमंद थे। वो कह रहे थे कि तुम्हारे इस कदम से ही हमारी बेटी की जिंदगी ख़राब होने से बच गई। वरना रमेश के दुष्कर्मों का हमें पता भी नहीं चलता। वह मुझे आश्वासन दे के गए कि हम तेरे साथ हैं। कभी भी किसी मदद की जरूरत हो तो हमें फोन कर देना। रमेश लापता था .मैंने भी मन में ठान ली थी कि या तो जान दे दूँगी या अपना अधिकार लेकर रहूँगी।"
    "हाँ कमलेश इसके बाद की बात तो मुझे मालूम है। शहर के कुछ उत्साही युवक दूसरे दिन रमेश को कहीं से
ढूँढ़ कर लाए थे और चौराहे पर ही विवाह का मंडप तैयार करके जनसमूह के सामने उससे तेरी शादी कराई थी। सुना है उसके पिता ने भी सबके सम्मुख तुझे अपनी बहू स्वीकार किया था। शादी के बाद शायद तेरे ससुर ने ही जूस पिला कर तेरी भूख हड़ताल समाप्त करवाई थी। यह भी सुना था कि जनसमूह में से बहुत से लोगों ने कन्यादान की रस्म में भाग लिया था। खुली जीप में तुम दोनों को बैठा कर शहर में तुम्हारा जुलूस निकाला गया था। हमारे घर के सामने से भी तुम्हारी जीप गुजरी थी तभी तो मुझे यह ज्ञात हुआ कि यह घटना तुम्हारे साथ घटी है।...उसके बाद क्या हुआ यह मुझे नहीं मालूम।'
  "उसके बाद जीप से मुझे रमेश के घर ले जाया गया। वहाँ तो मातम का माहौल था। माता-पिता दोनों ने रमेश को बहुत फटकारा। यदि रमेश उनका इकलौता बेटा न होता तो शायद वह उसे जायदाद से बेदखल करके घर से ही निकाल देते।'
 "उस घर में मुझसे किसी ने पानी तक भी नहीं पूछा। भूख से बेहाल मैं एक कमरे में पड़ी आँसू बहा रही थी। तभी मैंने सुना रमेश के पिता किसी से कह रहे थे, "उस लड़की को किसी ने खाने को कुछ दिया या नहीं। वैसे भी वह दो दिन से भूखी है। कहीं मर-मरा गई तो हत्या हमारे सिर पड़ेगी। शहर का माहौल बिगड़ा हुआ है और हमारे खिलाफ भी है।' तब से उनकी काम वाली थाली परोस कर कमरे में दे जाती थी। रमेश तो सामने बहुत कम आता था।'
  बस तनावों के बीच ऐसे ही समय गुजरता रहा। कुछ महीनों बाद सपना का जन्म हुआ। रमेश की काम वाली को मुझसे बहुत हमदर्दी थी वह मेरी जरूरतों का ध्यान रखती थी। फिर भी थी तो वह नौकरानी ही। उसकी भी सीमाएँ थीं। बच्ची रोती-बिलखती रहती थी, मुझे भी बच्चे पालने का अनुभव नहीं था।'
   'कमलेश, रमेश या उसके मां-बाप किसी ने भी बच्ची को सँभालने में तुम्हारी कोई मदद नहीं की ?'
  "उन्होंने लोगों के डर से मुझे अपनाया था, मन से नहीं। कोई कभी यह भी नहीं पूछता था कि बच्ची क्यों रो रही है। मैं ही रमेश को बाप की जिम्मेदारी निभाने की याद दिलाती थी तो वह भड़क उठता था। एक-दो बार उसने हाथ उठाने की कोशिश भी की। उसकी माँ भी हर समय ताने मारती रहती थी। मैं चाहती तो पुलिस में रिपोर्ट लिखा सकती थी। जनता से, महिला संगठन से शिकायत कर सकती थी लेकिन मैं भी थक गई थी और कोई नया तमाशा खड़ा करना नहीं चाहती थी।...मैंने रमेश का घर छोड़ने का फैसला रत्ना को बता दिया था।'
  रत्ना बोली-"ऐसे कैसे घर छोड़ देगी ?...यदि वह पत्नी व बहू का सम्मान नहीं दे सकते तो उन्हें बच्ची के पालन पोषन के लिए धन देना होगा।....हम लोग उनसे बात करते हैं'। धन की उनके पास कमी नहीं थी। वह एक लाख रुपये देने को तैयार हो गए।'
  "रुपये देने को वे आसानी से तैयार हो गए ?'
 "रमेश के पिता तो एक बार में तैयार हो गए शायद उन्हें यह सौदा सस्ता ही लगा था पर रमेश की माँ ने डंक मारते हुए कहा था यदि पैसा ले कर ही हमारा पीछा छोड़ना था तो उतना बड़ा तमाशा करने की क्या जरूरत थी...हम तो पहले भी दे रहे थे ।'
   तूने उन्हें जवाब नहीं  दिया ?
   "मैं चुप कैसे रह सकती थी, मैं ने कहा था -- "तमाशा न करती तो आपकी शराफत का नकाब कैसे उतरता ? वह तमाशा आप के लिए होगा... मेरे लिए तो एक लड़ाई थी ,मैं अपने बच्चे को नाजायज औलाद की गाली विरासत में नहीं देना चाहती थी।....अब आप जो दे रहे हैं वह एहसान या खैरात नहीं  हम दोनों का अधिकार है उस पर।'..फिर उनका मुँह बंद हुआ था।....'
  समाज के कुछ जाने-माने लोग जिनमें रत्ना व महिला संगठन की कुछ सदस्याएँ भी थीं, के सामने हमने एक-दूसरे को आपसी सहमति से तलाक़ देने के पेपर साइन किए और एक लाख रुपये लेकर मैंने घर छोड़ दिया। मैं उस शहर से ही बहुत दूर चली जाना चाहती थी।'
   "फिर यहाँ दक्षिण में कैसे आ गई ?'
  "रत्ना के कुछ रिश्तेदार यहाँ रहते थे। मेरे आग्रह पर वह मुझे यहाँ ले आई। उसके रिश्तेदारों ने मेरी बहुत मदद की। अपने घर के पास ही मुझे कमरा दिलवा दिया। बैंक में मेरा खाता खुलवा दिया। यहाँ आकर मैंने ब्यूटीशियन का कोर्स किया। तब मेरी बेटी को वही सँभालते थे।....
 कोर्स करने के बाद मैंने एक बैडरूम का फ्लैट किराए पर ले लिया और उसके एक हाल में ब्यूटी पार्लर शुरू कर दिया। धीरे-धीरे पार्लर चल निकला।...अब मेरे पास अपना ये फ्लैट है। इसी में ब्यूटी पार्लर भी चला रही हूँ। बेटी सपना पाँचवीं क्लास में पढ़ रही है।...बस ऐसे ही जिंदगी कट रही है।'
  मैंने पूछा, "तेरी बेटी सपना कभी अपने पिता के विषय में नहीं पूछती ?'
 "क्यों नहीं पूछती ? रोज-रोज उसके द्वारा पूछे गए सवाल मुझे बेचैन कर देते हैं। पापा देखने में कैसे थे प्रश्न का हल तो मैंने उसे शादी के फोटो दिखा कर कर दिया।"पापा कहाँ है ? हमारे साथ क्यों नहीं रहते,... अनेकों ऐसे सवाल है, जिनका अंत करने के लिए मन होता है उससे कह दूँ कि उसके पिता मर चुके हैं किंतु झूठ नहीं बोल पाती। उसे यही कह कर समझा देती हूँ कि तुम्हारे पिता ने हमें छोड़ कर दूसरी शादी कर ली है। इसलिए वे हमार साथ नहीं रहते।'
     " रमेश ने तो दूसरी शादी कर ली ? '
  "पता नहीं मैंने कभी उसके बारे में जानने की कोशिश नहीं की। जिस राह जाना नहीं उसका पता क्या पूछना ? मैं एक दुःखद स्वप्न समझ कर उसे भुला देना चाहती हूँ।'
   "क्या तेरे मन में पुन: शादी का ख्याल कभी नहीं आया ?'
 "मन का क्या है, यह तो बहुत कुछ चाहता है पर मन को मारना पड़ता है...अपनी नियति से मैंने समझौता कर लिया है। अब तो सपना की अच्छी परवरिश करना ही मेरा एकमात्र स्वप्न है।'
   कमलेश बहुत थकी हुई व उदास दिखने लगी थी। समय बहुत हो चुका था। दुबारा फिर मिलने का वादा करके भारी मन से मैं लौट आई थी।


                                                  ------

पवित्रा अग्रवाल

 ईमेल --  agarwalpavitra78@gmail.com
 


 

 

बुधवार, 1 जुलाई 2015

दुविधा के बादल

    (     मेरे दूसरे  कहानी संग्रह   'उजाले दूर नहीं "  में से एक कहानी )


कहानी  

      दुविधा के बादल


                                         पवित्रा अग्रवाल
 
      करन ने  अपनी पत्नी से कहा--"सुनो रानी ,भैया -भाभी पहली बार घर आ रहे हैं,उन की आवभगत जरा अच्छी तरह करना।'
 रानी ने भृकुटि कुछ टेढ़ी कर के कहा --"तुम कहना क्या चाहते हो ,क्या मैं आने जाने वालों का स्वागत अच्छी तरह नहीं करती ?'
 "अरे यार मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहता ।उन के आने की बात सुन कर जरा एक्साइटेड हो गया हूँ या सच कहूँ तो थोड़ा टेंशन  हो रहा है बस उसी धुन में तुम से यह कह दिया ।असल में तुम्हे तो मालुम हैं भैया बहुत पैसे वाले हैं... वैसे पैसा तो बहुतों के पास होता है पर सब में  पैसे की बू नहीं होती ।'
 "हाँ कह तो तुम ठीक ही रहे हो पर भैया से ज्यादा घमंड भाभी और उनके बच्चों को है ।उनकी बात पैसे से शुरू हो कर पैसे पर ही खत्म होती है ।उनके यहाँ आने जाने वालों का स्वागत भी आने वाले की हैसियत के हिसाब से होता है।हमारे बच्चे तो वहाँ जाना ही नहीं चाहते ।'
 "वैसे वे नए मकान में शिफ्ट होने के बाद आते तो ज्यादा अच्छा होता ।'
 "हाँ... अपना सोफा कितना बेकार हो गया है.. डाइनिंग टेबिल भी यही सोच कर नहीं ली कि अब अपने नए घर में जा कर ही लेंगे ।'
 " चलो छोड़ो अब यह सब बातें....आ रहे हैं तो अपना नया घर तो जरूर देखना चाहेंगे ।'
 "अब जैसा भी है दिखा लाना उनका तो बहुत बड़ा है ।घर क्या उनकी तो कोठी है ..उस की डैकोरेशन में भी बहुत पैसा खर्च किया है ...जब हम उनके गृह प्रवेश में गए थे तो हर कमरे का परिचय देते हुए भाभी हर चीज की कीमत भी बताती जा रही थीं।'
 "हाँ, रसोई भी कितनी बड़ी है उसमें लगी चिमनी की कीमत ही करीब अस्सी हजार की बता रहे थे, चलो छोड़ो यह सब बातें ...उन्हें ठहरायेगे किस रूम में ।'
    "उनकी तरह लौबी में बिस्तर डाल कर जमीन में तो नहीं सुलायेंगे ।'
 "रानी अपन गृह प्रवेश में गए थे ,इतने सब मेहमानों को कमरों में पंलगो पर तो कोई भी नहीं सुला सकता ...उस बात को मन से नहीं लगाना चाहिए ।'
    " मैं तब की बात कर भी नही रही हूँ ।पाँच छह साल पहले जब मैं सुमन दीदी के पास गई थी तो लौटते में हमारी डाइरेक्ट ट्रेन वहीं से तो थी ।ट्रेन सुबह की थी इसलिए एक रात उन के पास रुकना पड़ा था ।..... मिन्नी मेरे साथ थी उसके बाद से तो मिन्नी वहाँ जाने से साफ ना कर देती है ।'
 " मुझे याद नहीं ऐसा क्या हुआ था वहाँ ?'
 " रात को भाई साहब,भाभी जी और बच्चे सब अपने अपने ऐ सी रूम बंद कर के सो गए और हम दोनो के लिए वहीं लिविंग रूम में गद्दा डाल दिया था ।उस रात मिन्नी बहुत रोई थी और बोली थी     "मम्मी अब आगे से मुझे यहाँ आने को कभी मत कहना '..भाभी जी या उनके एक दो बच्चे भी हमारे साथ सो गए होते तो उतना बुरा नहीं लगता पर...
 "यह बातें कोमन सेंस और संस्कारों की होती हैं,भैया तो पहले ऐसे नहीं थे ।'
 " अब हमारे पास तो दो ही कमरे हैं,हमारा कमरा बड़ा है।तुम और भाई साहब पलंग पर सो जाना ,मै और भाभी नीचे गद्दे डाल कर सो जाएगे ।'
 " हाँ यह ठीक रहेगा ।'
  "भाई साहब से भी पूछेंगे कि उन्हों ने भी अपना घर वास्तु के हिसाब से बनवाया था क्या ?''
 "मैं समझता हूँ भैया भी हमारी तरह इन फालतू बातों में विश्वास नहीं करते होंगे...आज कल तो जाने लोगों को क्या हो गया है किराए का मकान लेते समय भी वास्तु के बारे में पूछतें हैं ।'
 "वास्तु शास्त्र पहले तो सुनने में नहीं आता था,इधर तो यह एक बीमारी की तरह फैल रहा है।'
  "रानी वास्तु शास्त्र पहले भी था.. मकान बनाते समय कुछ बातो का ध्यान तब भी रखा जाता था जैसे घर में सूरज की रोशनी अच्छी आये ,घर हवादार व खुला खुला हो पर अब तो अति होती जा रही है।..असल में अब यह एक फलता फूलता व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है ।'
 " मजे की बात तो यह है कि हरेक का अपना अपना वास्तु शास्त्र है। अभी कुछ दिन पहले ही पेपर में पढ़ रही थी कि मुख्य मंत्री का आफिस वास्तु के हिसाब से ठीक कराने में लाखों रुपए लग गए ...कुछ दिन बाद नया मुख्य मंत्री आया उसने वह सब तुड़वा कर अपने वास्तु शास्त्री के हिसाब से ठीक कराने में फिर लाखों रुपया लगा दिए, इस सब के बाद भी समय पूरा होने से पहले ही कुर्सी छोड़नी पड़ी ।'
 "जनता का पैसा है उन की जेब से क्या जाता है पर अफसोस तो तब होता है जब आम आदमी भी  इन बातों में फॅस कर बर्बाद होने को तैयार हैं।मैं ने मकान बनवाते समय अलग से किसी वास्तु शास्त्री की सलाह इसी लिए नहीं ली कि फिर उनकी बात न मानो तो मन में बहम हो जाता है ।'
 "पर इन शुभचिंतकों का क्या करूँ ,एक एक दोष निकाल कर मन में बहम पैदा करने लगे हैं...ऐसे ऐसे उदाहरण देते हैं जैसे "घर का मालिक मर गया...लड़की भाग गई' कि विश्वास हिलने लगता है ।'
 "रानी सब से अच्छा तरीका है गृह प्रवेश से पहले किसी को अब घर ही मत दिखाओ ।'
    " उस से कुछ खास फर्क पड़ने वाला नहीं है,वह अभी नहीं तो बाद में अपनी राय देंगे ...उस दिन गुप्ता जी किसी वास्तुशास्त्री के विषय में बता रहे थे और कह रहे थे गृह प्रवेश से पहले मकान का नक्शा दिखा कर उनसे एक बार राय जरूर लेलो ,वह बर्बादी नहीं होने देंगे और सही राय देंगे।'....परिवर्तन कराना न कराना तो अपने हाथ में है,मेरी भी इच्छा है कि तुम एक बार उनके पास चले जाओ ।'
 "अच्छा,सोचूँगा ।कल भाई साहब भी आ रहे हैं देखें वह क्या कहते हैं ।'

   खाना खाते हुए करन ने भाइ साहब से पूछा --" आप वास्तुशास्त्र में विश्वास करते हैं ? '
 " करता तो नहीं था पर तुम्हारी भाभी की इच्छा थी तो सोचा जहाँ इतना खर्च हो रहा हैं वहाँ लाख-पचास हजार और सही। भविष्य में परिवार में कुछ उल्टा सीधा घटा तो कम से कम मुझे तो ताने नहीं सुनने पड़ेगे ।'
 भाभी ने कहा --"करन मकान जिन्दगी में एक ही बार बनता है...वास्तु के हिसाब से ही बनवाना चाहिए, हमने तो पूरी तरह वास्तु के हिसाब से ही बनवाया है ।वास्तु-विशेषज्ञ ने पचास हजार लिए थे ।हमने तो इंटीरियर वाला भी हायर किया था ।'
 "लेकिन भाभी भैया को हार्ट अटैक तो इस नए घर में आने के बाद ही आया था न ?'
 "हाँ,अटैक तो नए मकान में ही आया था पर बच गए,इस लिए मैं तो इसे शुभ संकेत ही मानती हूँ।क्या तुमने भी वास्तु के हिसाब से बनवाया है ?'
 "हमारे पास इतने साधन कहाँ है भाभी ,बैंक लोन ले कर बस एक छोटा सा घर बना लिया है ..जितना घर का किराया यहाँ देते हैं उस से कुछ ज्यादा की किश्त चली जाया करेंगी ।वास्तु में हम
दोनो को ही विश्वास नही है पर मिलने जुलने वालों ने मन में शक पैदा कर दिया है..लेकिन विशेषज्ञ के पास जाते डर भी लगता है कि पता नहीं कितने का बिल और बन जाएगा ।'
 "करन मन में बहम आ ही गया है तो दिखालो ...पर आजकल मकान का नक्शा बनाने वालों को भी वास्तु का ज्ञान होता है ....उसने जरूर इसका ध्यान रखा होगा । ...वैसे एक बात बताऊँ यह बड़े लोगों के चोचल हैं।'
    "मैं भी ऐसा ही सोचता हूँ भैया पर रानी...
 "सोचती तो मैं भी ऐसा ही हूँ भैया कि पंडितों, वास्तु विशेषज्ञों के हिसाब से चलने पर यदि लोगो के जीवन से दुख गायब हो जाता तो सबसे ज्यादा सुखी तो यही लोग होते ..हमारे एक परिचित हैं उनका बिजनस अच्छा नहीं चल रहा था...किराये का दूसरा मकान ढूँढ़ते समय वह एक वास्तु शास्त्री साथ रखते थे। आखिर वास्तु विशेषज्ञ की मदद से उन्होंने एक मकान किराए पर ले लिया...पर तब भी हालत में सुधार नहीं आया तो उन्होंने किसी दूसरे विशेषज्ञ को बुलाया उसने सलाह दी कि अपने घर के पिछवाड़े में एक छोटा सा तालाब बनवाओ जिसमें हर समय पानी भरा रहना चाहिए, साथ ही उसमें सफेद कमल के फूल भी लगाओ...'
 भाई साहब ने चौंक कर पूछा -- "सचमुच का तालाब कैसे बन सकता है ?'
 "हाँ भाई साहब सचमुच का तो कैसे बनता,वहाँ पथरीली जमीन थी... पत्थर फोड़ने वाले को बुला कर वहाँ एक बड़ा गड्ढ़ा करा के उसमें पाइप से पानी भर दिया और उसे हर समय भरा ही रखतें थे पर दो महीने बीत गए हालात ज्यों के त्यो रहे फिर किसी तीसरे को बुलाया वह बोला सबसे पहले तो यह तालाब बन्द करिए,उस गड्ढ़े को फिर मिट्टी से भरा गया ।उसके बाद विशेषज्ञ ने रसोई और पानी के टैंक की जगह बदलने को कहा पर मकान मालिक ने उसकी परमीशन नहीं दी ।आखिर वह थक हार कर बैठ गए और फिर सारा घ्यान अपने बिजनस पर लगाने लगे, अब वह खुश हैं ।''
    भाई साहब के कुछ बोलने से पहले ही करन ने कहा--"रानी जब तुम इतना जानती हो तो लोगों की बातों में क्यों आ रही हो ,मेरी मानों तो जो तारीख हमने चुनी है उसी पर गृह प्रवेश कर लेते हैं...अभी समय है फिर से सोच लो।'
  भाई साहब को स्टेशन छोड़ कर आने के बाद करन ने रानी से फिर पूछा --"बोलो अब क्या इरादा है... कार्ड तो छपे रखे हैं कहो तो बाहर के भेज दूँ ।'
 "सुनो एक दो दिन और रुक जाओ मैं ने गुप्ता जी से वास्तु-विशेषज्ञ का पता ले कर रखा है,   एक बार नक्शे के साथ उनसे से मिल लो यदि मामूली सी फेर बदल करने को कहते हैं तो करा लेंगे वरना छोड़ देंगे।'
     "चलो ठीक है वैसे उनका थोड़ा सा परिवर्तन भी हमारे लिए बहुत होगा, अब और तोड़ फोड़ कराने की न तो मुझ में ताकत है और न हैसियत फिर भी कल उनसे मिलता हूँ ।'
     करन थोड़ा सा परेशान था और सोच रहा था हम अब तक इतने मकानों में रहे पर कभी वास्तु के बारे में नहीं सोचा..बच्चे भी अच्छे हैं ।मिन्नी अगले साल इंजीनियर हो जाएगी, अच्छी कंपनी में सलैक्शन भी हो गया है,संजू इंजीनियरिंग फस्ट ईयर में है  ..अब मकान भी अपना हो जाएगा ।बैंकों में जोड़ने को नहीं है पर गुजारा अच्छी तरह हो रहा है ।आदमी को जीवन में और क्या चाहिए..पर इतनी दुविधा में मैं ने अपने को कभी नहीं पाया।
        करन ने फोन पर वास्तुशास्त्री राजेश जी के सचिव से मिलने का समय लिया, पहुँच कर पहले फीस जमा कराई, कुछ देर के इंतजार के बाद मिलना हुआ।नक्शा देख कर वह बोले -- "अरे करन साहब आप मकान पूरा होने के बाद आए हैं पहले आए होते तो दोहरे खर्चे से बच जाते ,अक्सर लोग यही गल्ती करते हैं फिर हमें दोष देते हैं कि बहुत खर्च करा दिया ।'
 "अच्छा राजेश जी नक्शा देख कर यह तो बताइये कि दोष कहाँ कहाँ हैं ?'
 "करन जी दोष एक जगह हो ता बताऊँ...देखिए पूर्व तथा उत्तर की अपेक्षा आपने दक्षिण में ज्यादा जगह छोड़ रखी है जो ठीक नहीं...पूर्व में स्थित रसोई घर को हटा कर यहाँ बाथरूम की जगह करना पड़ेगा,बोर वैल और ये पानी का टैंक भी यहाँ से दूसरी जगह  शिफ्ट करना पड़ेगा।'
  "अरे राजेश जी इसे सुन कर ही मुझे चक्कर आने लगे हैं ,इतनी मेरी औकात नहीं, भगवान का नाम ले कर मैं तो ऐसे ही घर में रहने चला जाता हूँ।'
 "जैसा आप ठीक समझें पर इतना तय है कि आप वहाँ सुख से नहीं रह पायेंगे ।बाल बच्चेदार आदमी हैं, मुसीबतों को निमंत्रण क्यों देते हैं ?'
"अभी आपने जो दोष बताये हैं उसे सुधारने में कम से कम एक डेढ़ लाख रुपए तो लग जाएगे ?'
"हाँ पहले तो बना बनाया भाग तोड़ना पड़ेगा फिर बनाना पड़ेगा इतने तो आपके लग ही जायेंगे।'
 "मैं तो पेन्ट तक करा चुका हूँ ,पन्द्रह दिन बाद गृह प्रवेश है... कार्ड भी छप चुके हैं।'
  "मैं तो आपको यही सलाह दूँगा कि ठीक कराने के बाद ही उसमें जाए।'
 "ठीक है राजेश जी मैं पत्नी से सलाह करके और फिर पैसे का इंतजाम करके आपसे मिलूँगा ।'
 लौट कर घर की काल बैल बजाने की जरूरत नहीं पड़ी, रानी दरवाजे पर ही खड़ी थी ---
 "क्या कहा ?'
 "वही जो यह लोग कहते हैं कि बिना ठीक कराए उसमें रहने मत जाइये वरना मुसीबतें आपको घेर लेंगी लेकिन वास्तु के हिसाब से उसे ठीक कराने बैठा तो जाने से पहले  ही मुसबतों में घिर जाऊँगा ।'
  "वो कैसे ?'
 "उसे ठीक कराने के लिए एक डेढ़ लाख रुपए कहाँ से लाऊँगा ? हर महीने घर की किश्त भरनी हैं, दोनो बच्चे अभी पढ़ रहे हैं...अब और पैसे के लिए तो कहीं से ब्याज पर फिर कर्जा लेना पड़ेगा ।'
 "चलो इस विषय में बाद में सोचेंगे, थक गए होगे खाना खा कर आराम करो ।'
  दो तीन दिन बाद सुबह - सुबह रानी ने करन को सोते से जगाया -- "सुनो आप जिन वास्तु विशेषज्ञ के पास गए थे उनका नाम राजेश ही है न ?'
 "हाँ ,पर तुम मुझे नींद से जगा कर यह सब क्यों पूछ रही हो ?'
 "अरे बड़ा बुरा हुआ उनके साथ,अखबार में न्यूज है कि प्रसिद्ध वास्तु शास्त्री राजेश जी के बेटे की दुर्घटना में मौत हो गई...रात को दोस्तो के साथ बर्थ डे मना कर घर लौट रहा था पीछे से लौरी ने टक्कर मार दी .. उनके पुत्र की तो घटनास्थल पर ही मौत हो गई, उसके दोस्त की हालत गंभीर है ।'
 करन एक दम से उठ कर बैठ गया --"हे भगवान यह तो बड़ा दुखद समाचार है ..भगवान ऐसा दुख किसी को न दे, पर उनका घर तो निश्चय ही पूरी तरह से वास्तु के आधार पर बना होगा... उनके साथ यह अनहोनी कैसे हो गई ?'
 "हाँ बात तो सोचने लायक है ।'
 "रानी मेरे मन पर घिरे दुविधा के बादल अब छट गए हैं ।अपने हिस्से के दुख-सुख सब को सहने पड़ते हैं,इनसे न कोई बचा है न कोई बचेगा ।मैं आज बाहर के कार्ड पोस्ट कर देता हूँ ..पाँच छह दिन में लोकल कार्ड भी बाँटने शुरू कर देंगे ।'
      
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