कहानी
"मैं तो ठीक हूँ वृन्दा पर तुम तो भाभी को बिल्कुल भूल ही गई। शादी के बाद तुम्हें पहली बार देख रही हूँ।..देखो वो सामने ही तो मेरा घर है,चलो घर चलते हैं।'
"अरे नहीं भाभी मैं आप को कैसे भूल सकती हूँ ,आप से तो मेरे जीवन की कई यादें जुड़ी हुई हैं पर आज मैं आपके साथ नहीं चल सकूँगी ।मोनू को मम्मी के पास छोड़ कर आई हूँ,वह उन्हे परेशान कर रहा होगा।मैं ने आपका घर देख लिया है,एक-दो दिन में आपके पास आती हूँ ।'
घर आने का वादा करके वृन्दा तो चली गई ,पर मैं कुछ वर्ष पीछे पहुँच गई।वृन्दा मेरी हम उम्र तो नहीं थी ,मुझ से तीन चार वर्ष छोटी ही रही होगी पर हम दोनो में दोस्ती का एक रिश्ता बन गया था।शादी के बाद रजत के साथ इस सुदूर प्रान्त में आने पर हम वृन्दा के मकान में ही किराये पर रहने लगे थे ।रजत के आफिस चले जाने के बाद मैं पूरे दिन घर में अकेली रह जाती थी । रजत लंच ले कर जाते थे तो करीब करीब सब काम उनके सामने ही निबट जाता था।भरे पूरे परिवार से आई थी इस लिए यहाँ अकेलापन कुछ ज्यादा ही परेशान करता था और मैं बहुत उदास हो जाती थी।पास पड़ौस मे सभी तेलगू भाषी थे ।उन्हे हिन्दी नहीं आती थी और मुझे तेलगू नहीं आती थी।बस ऐसे ही क्षणों में मकान मालिक की बेटी वृन्दा कभी कभी मेरे पास आजाती थी। उसे बहुत अच्छी हिन्दी आती थी और वह खूब वाचाल थी।उस से मिल कर मेरी उदासी ना जाने कहाँ गायब हो जाती थी।उसके परिवार में भी उसका कोई हम उम्र न था।पास में कोई सखी सहेली भी नहीं थी ।इस के साथ ही जवानी में कदम रखते ही घर वालों ने उस पर कुछ अघिक ही पाबन्दियाँ लगा रखी थीं।उसे भाई कालेज छोड़ने जाता था वही कालेज से ले कर आता था।
कभी मुझे अपनी गृहस्थी के लिये कुछ सामान लेने बाजार जाना होता था तो वृन्दा की मम्मी से अनुमति ले कर मैं उसे अपने साथ ले जाती थी।वृन्दा ने बताया था कि भाभी मेरे घर वाले तो मुझे किसी सहेली के साथ भी बाहर नहीं जाने देते, पता नहीं आपके साथ बाहर जाने की परमीशन कैसे मिल जाती है।
एक दिन हम दोनो बाजार जा रहे थे तब हमें बाजार में एक लड़का मिला और उसे देखते ही वृन्दा ऐसे चहकी जैसे उसकी लाटरी का नंबर निकल आया हो।उसने परिचय कराया था-" भाभी यह मेरी बुआ का बेटा नागेश है..और नागेश यह हैं मेरी सखी- सहेली, भाभी कुछ भी कहलो,वैसे मैं इन्हें भाभी कहती हूँ।'
नागेश खुश होता हुआ बोला-"फिर तो यह मेरी भी भाभी हुर्इं,मैं भी आपको भाभी कह सकता हूँ न ?'
"हाँ ,क्यों नहीं।'
"चलिए फिर इसी बात पर पास के रेस्ट्राँ में कुछ ठण्डा गरम हो जाये ।'
मुझे दुविधा में देख कर वृन्दा मेरा हाथ पकड़ कर लगभग घसीटते हुए बोली -"चलिये न भाभी देखिये बाहर कितनी गरमी है, बैठ कर कुछ ठंडा पीते हैं।'
वह लोग आपस में तेलगू भाषा में बात करते रहे जो मुझे समझ में नहीं आती थी ।बीच बीच में हिन्दी में बात करके मुझ से भी कुछ इस तरह जुड़ने का प्रयास करते जैसे बेसब्र बच्चे को टाफी देकर बहलाते हैं।'
लौटते समय वृन्दा बोली - "भाभी एक रिक्वेस्ट हैं घर में किसी से भी यह मत कहना कि हमें मार्केट में नागेश मिला था।'
उसके इस आग्रह पर मैं कुछ चौंकी और मुझे कुछ दाल में काला भी नजर आया पर नागेश रिश्ते में उसका भाई लगता था और भाई बहनों में कुछ गलत होगा ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती थी फिर क्या वजह है कि वह इस मुलाकात को अपने घर वालों से छुपाना चाहती है अत: मैं ने उस से पूछ ही लिया था -"वृन्दा, नागेश तुम्हारा रिश्तेदार है फिर तुम इस मुलाकात को घर वालों से छिपाना क्यों चाहती हो ?'
"इसकी एक वजह हैं भाभी ,हम दोनों के परिवारों की आपस में नहीं पटती या यों समझिए कि आपस में दुश्मनी है।..हमारे मिलने की बात पर घर में तूफान खड़ा हो जायेगा,बस इसी लिये उन्हें नही बताना चाहती।'
"हाँ रिश्तों में ऐसा होता है, कभी कभी इतनी कड़वाहट आजाती हैं कि वह एक दूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं ।'
पर अब नागेश अक्सर बाजार में मिलने लगा था शुरू में तो मुझे लगता था कि यह एक महज इत्तेफाक है किन्तु वह इत्तेफाक नहीं था। शायद फोन आदि पर पहले दोनों का प्रोग्राम तय हो जाता था । वृन्दा की मम्मी मुझ से बहुत स्नेह करती थीं कभी कभी वह अपने काम के लिए भी मुझे वृन्दा के साथ बाहर जाने के लिए कह देती थीं या वृन्दा ही उनसे कोई फरमाइश कर के मेरे साथ बाजार जाने का रास्ता निकाल लेती थी।
उन में कहीं कुछ ऐसा था जो मुझे सही नहीं लग रहा था । वे मात्र भाई बहन नहीं हैं , उन में जरूर कुछ अलग तरह का लगाव है ,पर वह क्या है यह मैं नही जान पाती थी।यद्यपि मै ने उनके बीच कभी कोई अशोभनीय हरकत नहीं देखी थी । उनके लगाव के बीच कहीं कोई उलझन,कोई गुत्थी भी अवश्य थी।
एक दिन वृन्दा चिड़िया की तरह फुदकती और चहकती हुई मेरे पास आई और कोई गीत गुनगुनाते हुए मेरे गले में बाहें डाल कर ऐसे खड़ी हो गई जैसे कुछ कहना चाहती हो।मैं ने उसे छेड़ते हुये कहा-"क्या बात है आज तो बड़ी रोमान्टिक मूड में लग रही हो ,कोई मिल गया है क्या ?'
"हाँ भाभी आप तो मेरी दोस्त की तरह हो,मैं आपको अपनी राजदार बनाना चाहती हूँ।...बस यही डर लगता हैं कि आप यह बात कहीं मेरे घर वालों से न कह दें।...क्या मैं आप पर विश्वास कर सकती हूँ ?'
"हाँ वृन्दा क्यों नहीं,यदि तुम मेरे साथ कुछ शेयर करना चाहती हो तो कर सकती हो।'
उसने एक सहेली की तरह मेरे गले में फिर बाहें डाल दीं और कान में फुसफुसाई-"भाभी आइ एम इन लव'
"क्या ...आर यू सीरियस ?'
"हन्ड्रेड परसेन्ट सीरियस भाभी,आइ एम इन लव ।'
"अच्छा ,बड़ी बहादुर हो गई हो ,कौन है वो...क्या साथ पढ़ता है ?'
"नहीं भाभी मेरे दकियानूसी माँ बाप ने मुझे को.एड.में पढ़ने नहीं भेजा, मैं तो गर्ल्स कालेज में पढ़ती हूँ लेकिन वह जो भी है आप उसे जानती हैं।'
"मैं कैसे जानती हूँ..क्या वह कभी तुम्हारे या मेरे घर आया हैं ?'
"वह हमारे घर तो नहीं आता पर आप उस से कई बार मिल चुकी हैं।'
"पहेली मत बुझाओ वृन्दा ,मैं तो तुम्हारे साथ बस एक ही शख्स से मिली हूँ और वह है नागेश।'
"बिल्कुल सही पहचाना आपने,मैं नागेश से ही तो प्यार करती हूँ।'
"लेकिन वह तो तुम्हारी बुआ का बेटा है,रिश्ते मैं तुम्हारा भाई हुआ।उस से शादी कैसे हो सकती है ?'
"भाभी, हम लोगों में बुआ के बेटे से शादी करने का रिवाज है यानि कि हम बुआ के बेटे से इश्क लड़ा सकते है... कुछ लोगों में मामा से भी हो जाती है ।'
यह मेरे लिए नई जानकारी थी।अब तक नागेश के बारे में मैं इतना ही जानती थी कि वह वृन्दा की बुआ का बेटा है किन्तु दोनों परिवारों में पटती नहीं है।इस से ज्यादा न तो कभी उसने बताया और न मैंने जानने की कोशिश की।पर वृन्दा की बात सुन कर अब मेरे मस्तिष्क में अनेकानेक प्रश्न व जिज्ञासायें थीं जैसे वह क्या करता है... कहाँ तक पढ़ा है...इन दोनो परिवारों में झगड़े की क्या वजह है...क्या यह दूरी पाटी जा सकती है....क्या दोनो परिवार इस रिश्ते को स्वीकृति देंगे..?
पूछने पर वृन्दा ने बताया था कि मेरी एक अक्का (बड़ी बहन ) थीं। उन की शादी नागेश के अन्ना (बड़े भाई ) से तय थी ,वह पढ़ाई पूरी करने अमेरिका गया हुआ था।जब वह लौट कर आया तो उसकी मार्केट वैल्यू बढ़ चुकी थी । उसने एक मिनिस्टर की लड़की से शादी कर ली।लड़की एम.सी.ए. थी...अब तो वे अमेरिका में सैटिल हो चुके हैं।...रिश्ता टूटने का अक्का को इतना सदमा लगा कि उन्होंने आत्म हत्या करली।बस तभी से दोनो परिवारों के बीच दुश्मनी हो गई ।'
"नागेश क्या करता है ..कहाँ तक पढ़ा है ?'
"पढ़ने मे उसका भाई जितना तेज था यह उतना ही फिसड्डी निकला।पढ़ने में उसका मन कभी नहीं लगा।जैसे तैसे इंटर पास किया था और अब अपने पापा का बिजनस संभालता है।'
"क्या तुम दोनो के घर वाले इस शादी के लिए तैयार हो जायेंगे ?'
"नहीं भाभी यह बहुत मुश्किल है बल्कि असंभव कहिये ।..अक्का की आत्महत्या के बाद पुलिस केस बन गया था । नागेश के भाई और पिता को पुलिस ने अरेस्ट भी कर लिया था पर मंत्री जी के प्रभाव से वह लोग बच गये । ..इन हालात में दोनो परिवारों में से कोई भी तैयार नहीं होगा।'
"जब तुम यह सब जानती थीं फिर भी प्यार करने के लिए तुम्हें उसी परिवार का लड़का मिला ?'
"लेकिन प्यार सीमाओं में कहाँ बंधता है...वह सोच विचार कर या प्लान बना कर तो किया नहीं जाता बस हो जाता है। सच भाभी मैं ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा पर हो गया ।'
"तुम बी.एससी. कर रही हो वह इंटर पास है यदि पिता ने उसे अपने व्यापार से अलग कर दिया तो उस के पास तो ऐसी कोई क्वालीफिकेशन भी नहीं कि वह अपने पैरो पर खड़ा हो सके ।'
"बस यही तो अड़चन है,तभी तो हम शादी के निर्णय को टाल रहे हैं।'
"क्या तुम्हारे घर वालों को इस विषय में कुछ मालुम है ?'
"दो साल पहले एक बार मुझे पापा ने उस के साथ देख लिया था बस तभी से मुझ पर इतनी पाबंदियाँ लग गई थीं ..पर अब मैं प्यार में उस से आगे निकल गई हूँ या उस से मिलती हूँ यह बात अभी उन्हें नहीं पता है...वरना मेरी पढ़ाई छुड़वा कर घर बैठा लेते ।'
"प्यार में तुम कितना आगे बढ़ गई हो वृन्दा यह तो मैं नहीं जानती,मैं यह भी नहीं जानती कि तुम्हारे प्यार का क्या हश्र होगा..बस मैं इतना ही कहूँगी कि प्यार को अभी प्यार ही रहने देना, देह की सीमायें मत लाँघना और थोड़ी समझदारी से काम लेना । हमारे समाज में अब भी कदम कदम पर छोटी सी भूल के लिए भी लड़की को ही बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है ।'
"नहीं भाभी मेरा आप से वादा है मैं ऐसा कोई गलत काम नहीं करूँगी ।'
इस के दो तीन दिन बाद ही वह बदहवास सी मेरे पास आई थी-"भाभी अभी तो मेरी बी.एससी. भी पूरी नहीं हुई और घर में मेरी शादी की चर्चा जोर शोर से होने लगी है,कोई अच्छा लड़का मिल गया तो यह तो महीने दो महीने में मेरी शादी कर देंगे।...आप मम्मी को समझायें न कि ग्रेजुएशन पूरा हो जाने दे।'
"देखो वृन्दा यदि तुम्हारी मम्मी ने मुझ से तुम्हारी शादी के बारे में कोई बात की तो मैं उन्हें समझा सकती हूँ , वरना मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ।'
एक दिन रजत के आफिस जाते ही वह फिर मेरे पास आई,कुछ परेशान दिख रही थी-"भाभी मुझे आप से एक फेवर चाहिए।आप किसी काम का बहाना बना कर मुझे बाजार लेजाने की मम्मी से परमीशन ले लीजिए।..मुझे बहुत जरूरी काम है।'
"ऐसा क्या काम है जो मैं तुम्हारी मम्मी से झूठ बोलूँ ?'
"आप से झूठ नहीं बोलूँगी आज हम कोर्ट में अपनी शादी के लिए एप्लीकेशन देने जा रहे हैं ,इसके एक महीने बाद हम कोर्ट में शादी कर सकेंगे।आपके काम के बहाने निकल कर मैं यह काम कर पाऊँगी ।'
"सॉरी वृन्दा, मैं आंटी से झूठ बोल कर तुम्हारे इन उल्टे-सीधे कामों में तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती ।'
"जो मैं कर रही हूँ वह गलत हैं ?'
"हाँ बिल्कुल गलत हैं,तुम्हारी यह क्षणिक भावुकता,एक गलत निर्णय तुम्हारे जीवन भर का पछतावा बन कर रह जायेगा ।'
"नही भाभी ऐसा कुछ नहीं होगा मैंने बहुत सोच विचार कर यह निर्णय लिया है....प्लीज भाभी मेरी अंतिम बार यह मदद कर दीजिये फिर आप से कभी कुछ नहीं माँगूगी।'
"सॉरी वृन्दा,मैं ऐसा नहीं कर सकूँगी ।'
फिर उन्ही दिनों हम मकान बदल कर दूसरी जगह चले गये थे।अचानक एक दिन वृन्दा की मम्मी उस की शादी का कार्ड देने आई।कार्ड खोल कर मैंने वर का नाम पढ़ा तो मन को बड़ी राहत मिली।इसका मतलब वृन्दा ने नागेश का ख्याल दिल से निकाल दिया।चलो अच्छा हुआ।आन्टी ने बताया था लड़का दिल्ली में इंजीनियर है,शादी भी वहीं जा कर करनी है।'
कभी कभी आंटी से मुलाकात होती थी तो वृन्दा की राजी खुशी के समाचार भी मिल जाते थे,एक बार आन्टी ने कथा कराई थी तो समाचार दिया कि वृन्दा के बेटा हुआ है।
एक दिन अचानक उसे अपने घर आया देख कर मुझे बहुत खुशी हुई।मैंने उसे टोका--"वृन्दा मोनू को क्यों नहीं लाई।'
"भाभी वो सो रहा था तो मैं अकेली ही चली आई ।'
वह उदास थी फिर भी खुश दिखने का प्रयास कर रही थी पर उसकी उदासी मेरी नजरों से बच नहीं सकी।मैं ने उसे छेड़ते हुऐ कहा--"लगता है अकेली आई हो,मल्लेश साथ नहीं आये ?'
'नहीं भाभी, मल्लेश तो कुछ महीनो के लिये अमेरिका गये हुये हैं.... अब आने वाले हैं।'
"ओ तो पति वियोग की वजह से चेहरा कुम्हालाया हुआ है।'
"नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है'
मुझे ऐसा लगा जैसे वह किसी उलझन में है और कुछ कहना चाहती है।मैंने पूछ ही लिया-" फिर क्या बात है,इस तरह अनमनी सी क्यों हो ?...कोई परेशानी है तो मुझे बताओ,कह कर मन हल्का हो जाऐगा।'
अचानक उसकी आँखों में घटाए छा गई और वह सुबकने लगी फिर उसने अपने को संभला और बोली --"भाभी एक आप ही तो थीं जिसे कभी मैं ने अपना हमराज बनाया था और आपने भी हमेशा सही सलाह दे कर मेरे गलत कदमों को रोकने की ईमानदार कोशिश की थी ।...आप ने ठीक ही कहा था कि कभी कभी एक गलत निर्णय जीवन भर का पछतावा बन जाता है।..मेरी खुशियों को भी ग्रहण लग चुका है।'
" मैं कुछ समझी नहीं तुम किस गलत निर्णय की बात कर रही हो...मल्लेश से शादी करना एक गलत निर्णय था या नागेश से शादी न करना ?'
"लगता है आपको कुछ नहीं मालुम .. आपके समझाने के बावजूद मैं ने नागेश से शादी करली थी और यह मेरी जिन्दगी की एक बड़ी भूल थी।..उसकी चाहत ने मेरी जिन्दगी में धुंआ ही धुंआ भर दिया है ।'
"यह तुम क्या कह रही हो,तुम्हारी शादी का कार्ड पा कर मैं ने तो यही सोचा था कि तुम ने नागेश को अपने जीवन से निकाल दिया है...फिर तुमने मल्लेश से शादी क्यो व कैसे करली ?'
"नागेश से शादी के समय हम दोनो ने यह फैसला किया था कि कोर्ट में शादी करने की बात हम किसी को बताये बिना अपने अपने घर में रहेंगे...किन्तु शादी के बाद वह मुझे इधर उधर बुला कर रिश्ता कायम करना चाहता था ।मेरी यह शर्त थी कि पहले अपने घर में मेरे लिए जगह बनाओ या फिर आत्म निर्भर हो जाओ तभी हम मिलेंगे तो वह मुझे ब्लैक मेल करने लगा कि "मेरी बात नहीं मानोगी तो मैं तुम्हारे घर में सब को बता दूँगा कि हमने शादी करली है फिर वह तुम्हें घर से निकाल देंगे और मजबूरी में तुम्हें मेरे पास आना होगा।'...आखिर उस से तंग आकर मैं ने यह बात घर में खुद ही बता दी, यह सुन कर तो घर में तूफान आ गया।'
"फिर क्या हुआ ?'
"पापा का बी.पी. तो एक दम से हाई हो गया था ,फिर भी वह यह सदमा झेल गए ।मम्मी-पापा ने पूछा अब तू क्या चाहती है...मैंने कहा गल्ती तो मुझ से हुई है पर अब मैं उस के साथ नहीं रहना
चाहती।..नागेश के घर वाले भी यही चाहते थे ..उस के घर वालों ने नागेश से कहा या तो घर छोड़ दे या फिर तलाक नामें पर साइन कर दे..क्यों कि वह भी तेरे साथ नहीं रहना चाहती है...जबर्दस्ती करेगा तो फिर पुलिस व कोर्ट कचहरी के चक्कर में फँसेगा और हम इस में तेरा कोई साथ नहीं देंगे।...इस तरह उसे घेर घार कर ,दबाव बना का उसके घर वालों के सहयोग से उस से तलाक हो गया और आपस में यह फैसला भी किया कि शादी की बात लोग नही जानते तो तलाक की बात भी अपने तक ही सीमित रखेंगे ।'
"इसका मतलब मल्लेश को भी इस विषय में कुछ नहीं पता ?'
"नहीं मल्लेश इस विषय में कुछ नही जानते।'
"शायद इसी लिये शादी भी दिल्ली जाकर की थी ?'
"नहीं, हम दिल्ली ही जा कर शादी करे यह तो मल्लेश के घर वालों की इच्छा थी क्यों कि वह इतनी दूर बरात ले कर नहीं आना चाहते थे..मम्मी.पापा को भी यही ठीक लगा था ।'
"पर अब क्या प्रोबलम है,क्या मल्लेश को यह बात पता चल गई है ?'
"मल्लेश तो बाहर गये हुये हैं,मैं अपने ससुराल में थी तभी एक गुमनाम पत्र ने यह भेद खोल दिया और सास ससुर अब यह ताना देने लगे हैं कि तुम्हारा यह बेटा भी कहीं उसी की औलाद तो नहीं क्यों कि वह आठ महीने में ही पैदा हो गया था। मल्लेश के आने पर देखिये क्या होता है।'
"क्या नागेश से कभी तुम्हारे पति पत्नी वाले संबन्ध बने थे ?'
"नहीं कभी नहीं'
"फिर तो यह बच्चा मल्लेश का ही है।'
"हाँ भाभी, पर मल्लेश इस सच पर विश्वास क्यों करेंगे ?'
"मल्लेश पढ़ा लिखा इस जमाने का लड़का है, हो सकता हे कुछ समझदारी से काम ले वरना डी.एन.ए.टैस्ट से यह सिद्ध हो जायेगा कि वह उस का पिता है या नहीं।'
"हाँ भाभी ऐसे टैस्ट के विषय में तो मैं ने भी सुना है,चलो इस से उनको यह तो विश्वास हो जायेगा कि मोनू उन्ही का बेटा हैं।रहा सवाल मेरी पहली शादी और तलाक का,जो उनसे छिपाया गया था,तो जब गल्तियाँ की हैं तो उनके परिणाम भुगतने को तैयार तो रहना ही होगा । मैं कल दिल्ली वापिस जा रही हूँ ,दो दिन बाद मल्लेश की अदालत में हाजिर जो होना है।'
( मेरे दूसरे कहानी संग्रह -उजाले दूर नहीं 'से )
पवित्रा अग्रवाल
email-- agarwalpavitra78@gmail.com
my blogs --
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें