कहानी
एक कोशिश
पवित्रा अग्रवाल
पवित्रा अग्रवाल
एक कोशिश
पवित्रा अग्रवाल
अंजना कार पार्क करके अस्पताल में प्रवेश कर ही रही थी कि तभी डाक्टर रमेश मिल गए और लगभग रोकते हुए बोले -- "अंजना जी अभी थोड़ी देर पहले अस्पताल में एक ब्रेन डैड का केस आया है...करीब सत्ताईस अट्ठाईस साल का पुरुष है जिसका एक्सीडेंट हो गया था उसका ब्रेन डैड हो चुका है अभी सपोर्ट सिस्टम पर ही है और उसका दिल अभी धड़क रहा है ।''
"क्या डाक्टर उसके जीवित होने की कोई उम्मीद नहीं है ?''
"सवाल ही नहीं है।..बस जब तक दिल धड़क रहा है तब तक उसके जीवित होने का भ्रम पाला जा सकता है ,इस से ज्यादा कुछ नहीं।उसके साथ उसकी वृद्धा माँ ,पत्नी व एक साल का बेटा है..उसके आफिस के कुछ लोग भी साथ हैं..पत्नी पढ़ी लिखी लगती है, आप तो सोशल वर्कर हैं और पहले भी आप कुछ लोगों को अंग दान के लिए प्रेरित कर चुकी हैं।.. उसे भी अपने पति के अंग दान करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करिए शायद सफलता मिल ही जाए..यदि वह तैयार हो जाती है तो पाँच छह लोगो का भला हो जाऐगा ..उसकी दोनो किडनी तो इसी अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहे दो पेशेन्ट्स जिस में आपका भाई राहुल भी है, के काम आजायेंगी ..उन दोनों का ब्लड ग्रुप तो उस से मिलता है..अन्य टैस्ट भी कर लेंगे ..इसी ब्लड ग्रुप के दो हार्ट पेशेन्ट ग्लोबल हास्पीटल में हार्ट ट्रान्सप्लान्ट के लिए एडमिट हैं उनमें से किसी एक के काम तो अवश्य आजायेगा। ...आप अपनी तरफ से एक कोशिश करके देख लीजिए..
''ओ. के. डाक्टर मैं यह कोशिश जरूर करूँगी।''
अंजना उस व्यक्ति की पत्नी से मिली जिस की ब्रेन डैथ हो चुकी है।उसका नाम राधा था।
उसने राधा को सांत्वना दी उस से उसके घर-परिवार की जानकारी ली फिर उस से कहा -"राधा तुम्हारे पति का ब्रेन डैड हो चुका लेकिन दिल अभी धड़क रहा हैं किन्तु सपोंर्ट -सिस्टम निकालते ही दिल भी धड़कना बंद कर देगा।क्या तुम चाहती हो कि तुम्हारा पति मर कर भी जीवित रहे ?''
"वो कैसे ?'
"उसका दिल किसी और के शरीर में धड़के,उसकी आँखों से कोई दो नेत्र हीन व्यक्ति यह दुनियाँ देख सकें...उसकी किडनी के ट्रान्सप्लान्ट से एसे दो लोग जीवन पा जायें जो किडनी खराब हो जाने की वजह से जल्दी ही मौत के मुँह में समाने वाले हैं ।'
उसकी माँ तड़प उठी थी--"मेरे बेटे के शरीर की इतनी बेकदरी मत करो।'
"माँ जी, शरीर तो जल कर राख बन जाता है।जलने से पहले यदि इस शरीर के अंग मौत का इंतजार कर रहे कुछ मरीजों को जीवन दे सकें तो आप ही बताइए इस से बड़ा दान और क्या होगा।क्या आप नहीं चाहेंगी कि आप द्वारा अंग दान की स्वीकृति मिलने पर किसी का बेटा,किसी के माँ- बाप या भाई बहन को नई जिन्दगी मिल जाए ?'
आफिस के लोगों ने अंजना की बात का समर्थन करते हुए कहा - "हाँ माँ जी मैडम सही कह रही हैं पिछले दिनो टी.वी पर भी दिखाया गया था कि किसी मृत व्यक्ति का दिल एक पेशेन्ट को लगा कर उसकी जिन्दगी बचाली गई थी।...डाक्टर साहिबा एक बात बताइए--क्या हर मृत व्यक्ति के अंगो का दान किया जा सकता है ?'
"पहले तो मैं आपको यह बता दूँ कि मैं डाक्टर नहीं हूँ,एक सोशल वर्कर हूँ ...दूसरी बात हर मृत शरीर के अंगों का दान नहीं किया जा सकता । बहुत कम लोगों को यह अवसर प्राप्त होता है यानि कि किसी चोट या दुर्घटना वश जब किसी को डाक्टर दिमागी तौर पर मृत घोषित का देते है केवल उन्हीं के अंगो का दान किया जा सकता है।...हाँ अन्य मृत लोगो की आँखें दान की जा सकती हैं बशर्ते पाँच- छह घन्टे की निश्चित अवधि के अन्दर कॉरनिया निकाल लिया जाये, एक मृत व्यक्ति दो अंधेरी जिन्दगी में रोशनी भर सकता है।..आप लोग मिल कर सोच विचार कर लीजिए।''
..कुछ रुक कर फिर अंजना ने कहा--" राधा तुम्हारा दुख मैं अच्छी तरह समझ सकती हूँ...कुछ वर्ष पूर्व मैं भी इस दौर से गुजरी हूँ...मेरे पति बालकनी से गिर गए थे । डाक्टर्स ने ब्रेन डैथ घोषित कर दी थी ,उन लोगों के समझाने पर मैं अपने पति के अंगदान करने को तैयार हो गई थी..और उनके अंगो के प्रत्यारोपण के बाद जब मैं ने कुछ जिन्दगियों को जीते देखा तो मैं चमत्कृत हो गई थी। मेरे पति बहुत सम्पत्ति छोड़ गए थे किन्तु हमारे कोई औलाद नहीं थी । समय काटना मुश्किल हो गया था फिर अपने कुछ मित्रों के सुझाव पर मैंने समाज सेवा की राह चुनी । अस्पताल और मरीजो की सेवा को अपना कर्म क्षेत्र बनाया ।...अब राधा निर्णय तुम्हें करना है कि तुम क्या चाहती हो..माँ जी क्या चाहती हैं।'
"अंजना दीदी मैं चाहती हूँ कि कुछ डाक्टर्स मिल कर एक बार फिर मेरे पति का निरीक्षण करें यदि एक प्रतिशत भी उनके जीवित होने की संभावना है तो मैं इंतजार करूँगी ।यदि कोई आशा नहीं है तो आप जो ठीक समझें कर सकती हैं'- कह कर राधा बिलखने लगी थी.
राधा के पति के दोस्तों की भी यही राय थी।
आप्रेशन द्वारा अंग निकाल कर मृत शरीर घर वालों को सोंप दिया गया था।अंजना अंतिम संस्कार तक राधा के साथ रही।..उसे एक ही संतोष था कि राधा पढ़ी लिखी है ,पति के आफिस में उसको नौकरी मिल जाएगी।
राधा के घर से लौटते समय अंजना को राहुल का ख्याल आगया ।अब तक तो उसका किडनी ट्रान्सप्लान्ट हो चुका होगा ,भगवान ने चाहा तो अब वह ठीक हो कर अपने घर जा सकेगा। राहुल के घर की बात याद आते ही उसे ध्यान आया कि क्या अब उसके घर वालों को सूचित कर देना चाहिए..अब तक कितने परेशान हो चुके होंगे वो सब ,शायद राहुल को मरा हुआ ही मान चुके हों।यह सब प्रसंग याद आते ही वह अतीत की स्मृतियों में विचरण करने लगी ।
करीब दो महीने पूर्व की बात है अंजना की राहुल से मुलाकात अस्पताल में हुई थी ।राहुल को बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था ।पता नहीं क्यों उसे देखते ही अंजना को अपने मृत भाई की याद आ गई थी ।
उसके सामान में उसकी मेडीकल रिपोर्ट भी थीं जिस से यह आसानी से पता चल गया था कि उसकी दोनो किडनी फेल हो चुकी हैं और किडनी ट्रान्सप्लान्ट ही एक मात्र इलाज है और जब तक किडनी नहीं बदलेंगी तब तक जीवित रहने के लिए डायलेसिस पर निर्भर रहना होगा ।..डाक्टर्स के प्रयास से राहुल होश में आगया था ।
राहुल के होश में आते ही उसने राहुल के घर का पता जानना चाहा ताकि उनको सूचित किया जा सके किन्तु राहुल ने खामोशी की चादर सी ओढ़ ली थी।निरन्तर प्रयास के बाद उसने बताया था कि किस तरह वह घर से भाग कर आया है ।उसके इलाज में घर की सब जमा पूँजी खर्च हो चुकी है बस एक मकान बचा है।पत्नी का ब्लड ग्रुप उस से मेल खा रहा है और वह अपनी किडनी देने की जिद्द किये बैठी थी । उसके चार साल का एक बेटा भी है..वह किसी भी हालत में पत्नी की किडनी नहीं ले सकता.. उसने बड़े दुखी हो कर कहा था -" मैडम मेरी जिन्दगी का भरोसा नहीं है ,अपनी पत्नी की जिन्दगी भी खतरे में डाल दूँ तो मेरा बेटा तो अनाथ हो जायेगा ।दूसरी बात मेरे इलाज के लिए वह अपने एक मात्र सहारा उस मकान को भी गिरवी रख देना चाहती हैं, आप ही बताओ बहन यदि मैं बच भी गया तो मेरे ठीक होते ही पैसे बरसने तो नही लगेंगे फिर आप्रेशन के बाद भी कम से कम पन्द्रह बीस हजार रुपए महीने की दवा मुझे खाते रहनी पड़ेंगी फिर भी जीवन कितना चलेगा कोई कुछ नही बता सकता ।''
"आप ऐसा क्यों सोचते हैं बहुत से लोग अच्छी जिन्दगी जी रहे हैं।''
"जरूर जी रहे होगे पर मैं अपने आँखों देखी बात कर रहा हूँ... हमारे कौम्पलैक्स में एक परिवार रहता था उनके कोई संतान नहीं थी। पत्नी ने पति को अपनी किडनी दी थी पर पति को किडनी सूट नहीं हुई उसकी मौत हो गई और कुछ दिन बाद पत्नी भी कही चली गई । सुना था बीमारी में उसने फ्लैट बेच दिया था ।''
"लेकिन आपने घर क्यों छोड़ दिया ?'
"न छोड़ता तो क्या करता ,पत्नी मुझे तिल तिल मरते हुये नहीं देख सकती थी,डायलैसिस भी क्या मुफ्त में होती है ? मैं एक पत्र छोड़ कर आया था कि मुझे ढ़ूंढ़ने की कोशिश मत करना ।..उसने तो मुझे मरा हुआ समझ लिया होगा पर आप लोगों ने मुझे अभी तो बचा ही लिया है..लेकिन कितने दिन बहन...?''
दो महीने हो गए तब से राहुल डायलैसिस पर है उसे देख कर अंजना को भी लगा इतने धन का मैं क्या करूँगी शायद प्रयास से कुछ जिन्दगी बचा सकूँ, बस तब से वह उसकी देख भाल कर रही है..पर राहुल ने अभी तक अपने घर वालों को खबर नहीं करने दी है ।...हे भगवान उसे यह किडनी सूट कर जाये और कोई नये काम्लीकेशन्स न हों सोचते हुए अंजना ने कार स्टार्ट की और अस्पताल की दिशा में चल दी।"क्या डाक्टर उसके जीवित होने की कोई उम्मीद नहीं है ?''
"सवाल ही नहीं है।..बस जब तक दिल धड़क रहा है तब तक उसके जीवित होने का भ्रम पाला जा सकता है ,इस से ज्यादा कुछ नहीं।उसके साथ उसकी वृद्धा माँ ,पत्नी व एक साल का बेटा है..उसके आफिस के कुछ लोग भी साथ हैं..पत्नी पढ़ी लिखी लगती है, आप तो सोशल वर्कर हैं और पहले भी आप कुछ लोगों को अंग दान के लिए प्रेरित कर चुकी हैं।.. उसे भी अपने पति के अंग दान करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करिए शायद सफलता मिल ही जाए..यदि वह तैयार हो जाती है तो पाँच छह लोगो का भला हो जाऐगा ..उसकी दोनो किडनी तो इसी अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहे दो पेशेन्ट्स जिस में आपका भाई राहुल भी है, के काम आजायेंगी ..उन दोनों का ब्लड ग्रुप तो उस से मिलता है..अन्य टैस्ट भी कर लेंगे ..इसी ब्लड ग्रुप के दो हार्ट पेशेन्ट ग्लोबल हास्पीटल में हार्ट ट्रान्सप्लान्ट के लिए एडमिट हैं उनमें से किसी एक के काम तो अवश्य आजायेगा। ...आप अपनी तरफ से एक कोशिश करके देख लीजिए..
''ओ. के. डाक्टर मैं यह कोशिश जरूर करूँगी।''
अंजना उस व्यक्ति की पत्नी से मिली जिस की ब्रेन डैथ हो चुकी है।उसका नाम राधा था।
उसने राधा को सांत्वना दी उस से उसके घर-परिवार की जानकारी ली फिर उस से कहा -"राधा तुम्हारे पति का ब्रेन डैड हो चुका लेकिन दिल अभी धड़क रहा हैं किन्तु सपोंर्ट -सिस्टम निकालते ही दिल भी धड़कना बंद कर देगा।क्या तुम चाहती हो कि तुम्हारा पति मर कर भी जीवित रहे ?''
"वो कैसे ?'
"उसका दिल किसी और के शरीर में धड़के,उसकी आँखों से कोई दो नेत्र हीन व्यक्ति यह दुनियाँ देख सकें...उसकी किडनी के ट्रान्सप्लान्ट से एसे दो लोग जीवन पा जायें जो किडनी खराब हो जाने की वजह से जल्दी ही मौत के मुँह में समाने वाले हैं ।'
उसकी माँ तड़प उठी थी--"मेरे बेटे के शरीर की इतनी बेकदरी मत करो।'
"माँ जी, शरीर तो जल कर राख बन जाता है।जलने से पहले यदि इस शरीर के अंग मौत का इंतजार कर रहे कुछ मरीजों को जीवन दे सकें तो आप ही बताइए इस से बड़ा दान और क्या होगा।क्या आप नहीं चाहेंगी कि आप द्वारा अंग दान की स्वीकृति मिलने पर किसी का बेटा,किसी के माँ- बाप या भाई बहन को नई जिन्दगी मिल जाए ?'
आफिस के लोगों ने अंजना की बात का समर्थन करते हुए कहा - "हाँ माँ जी मैडम सही कह रही हैं पिछले दिनो टी.वी पर भी दिखाया गया था कि किसी मृत व्यक्ति का दिल एक पेशेन्ट को लगा कर उसकी जिन्दगी बचाली गई थी।...डाक्टर साहिबा एक बात बताइए--क्या हर मृत व्यक्ति के अंगो का दान किया जा सकता है ?'
"पहले तो मैं आपको यह बता दूँ कि मैं डाक्टर नहीं हूँ,एक सोशल वर्कर हूँ ...दूसरी बात हर मृत शरीर के अंगों का दान नहीं किया जा सकता । बहुत कम लोगों को यह अवसर प्राप्त होता है यानि कि किसी चोट या दुर्घटना वश जब किसी को डाक्टर दिमागी तौर पर मृत घोषित का देते है केवल उन्हीं के अंगो का दान किया जा सकता है।...हाँ अन्य मृत लोगो की आँखें दान की जा सकती हैं बशर्ते पाँच- छह घन्टे की निश्चित अवधि के अन्दर कॉरनिया निकाल लिया जाये, एक मृत व्यक्ति दो अंधेरी जिन्दगी में रोशनी भर सकता है।..आप लोग मिल कर सोच विचार कर लीजिए।''
..कुछ रुक कर फिर अंजना ने कहा--" राधा तुम्हारा दुख मैं अच्छी तरह समझ सकती हूँ...कुछ वर्ष पूर्व मैं भी इस दौर से गुजरी हूँ...मेरे पति बालकनी से गिर गए थे । डाक्टर्स ने ब्रेन डैथ घोषित कर दी थी ,उन लोगों के समझाने पर मैं अपने पति के अंगदान करने को तैयार हो गई थी..और उनके अंगो के प्रत्यारोपण के बाद जब मैं ने कुछ जिन्दगियों को जीते देखा तो मैं चमत्कृत हो गई थी। मेरे पति बहुत सम्पत्ति छोड़ गए थे किन्तु हमारे कोई औलाद नहीं थी । समय काटना मुश्किल हो गया था फिर अपने कुछ मित्रों के सुझाव पर मैंने समाज सेवा की राह चुनी । अस्पताल और मरीजो की सेवा को अपना कर्म क्षेत्र बनाया ।...अब राधा निर्णय तुम्हें करना है कि तुम क्या चाहती हो..माँ जी क्या चाहती हैं।'
"अंजना दीदी मैं चाहती हूँ कि कुछ डाक्टर्स मिल कर एक बार फिर मेरे पति का निरीक्षण करें यदि एक प्रतिशत भी उनके जीवित होने की संभावना है तो मैं इंतजार करूँगी ।यदि कोई आशा नहीं है तो आप जो ठीक समझें कर सकती हैं'- कह कर राधा बिलखने लगी थी.
राधा के पति के दोस्तों की भी यही राय थी।
आप्रेशन द्वारा अंग निकाल कर मृत शरीर घर वालों को सोंप दिया गया था।अंजना अंतिम संस्कार तक राधा के साथ रही।..उसे एक ही संतोष था कि राधा पढ़ी लिखी है ,पति के आफिस में उसको नौकरी मिल जाएगी।
राधा के घर से लौटते समय अंजना को राहुल का ख्याल आगया ।अब तक तो उसका किडनी ट्रान्सप्लान्ट हो चुका होगा ,भगवान ने चाहा तो अब वह ठीक हो कर अपने घर जा सकेगा। राहुल के घर की बात याद आते ही उसे ध्यान आया कि क्या अब उसके घर वालों को सूचित कर देना चाहिए..अब तक कितने परेशान हो चुके होंगे वो सब ,शायद राहुल को मरा हुआ ही मान चुके हों।यह सब प्रसंग याद आते ही वह अतीत की स्मृतियों में विचरण करने लगी ।
करीब दो महीने पूर्व की बात है अंजना की राहुल से मुलाकात अस्पताल में हुई थी ।राहुल को बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था ।पता नहीं क्यों उसे देखते ही अंजना को अपने मृत भाई की याद आ गई थी ।
उसके सामान में उसकी मेडीकल रिपोर्ट भी थीं जिस से यह आसानी से पता चल गया था कि उसकी दोनो किडनी फेल हो चुकी हैं और किडनी ट्रान्सप्लान्ट ही एक मात्र इलाज है और जब तक किडनी नहीं बदलेंगी तब तक जीवित रहने के लिए डायलेसिस पर निर्भर रहना होगा ।..डाक्टर्स के प्रयास से राहुल होश में आगया था ।
राहुल के होश में आते ही उसने राहुल के घर का पता जानना चाहा ताकि उनको सूचित किया जा सके किन्तु राहुल ने खामोशी की चादर सी ओढ़ ली थी।निरन्तर प्रयास के बाद उसने बताया था कि किस तरह वह घर से भाग कर आया है ।उसके इलाज में घर की सब जमा पूँजी खर्च हो चुकी है बस एक मकान बचा है।पत्नी का ब्लड ग्रुप उस से मेल खा रहा है और वह अपनी किडनी देने की जिद्द किये बैठी थी । उसके चार साल का एक बेटा भी है..वह किसी भी हालत में पत्नी की किडनी नहीं ले सकता.. उसने बड़े दुखी हो कर कहा था -" मैडम मेरी जिन्दगी का भरोसा नहीं है ,अपनी पत्नी की जिन्दगी भी खतरे में डाल दूँ तो मेरा बेटा तो अनाथ हो जायेगा ।दूसरी बात मेरे इलाज के लिए वह अपने एक मात्र सहारा उस मकान को भी गिरवी रख देना चाहती हैं, आप ही बताओ बहन यदि मैं बच भी गया तो मेरे ठीक होते ही पैसे बरसने तो नही लगेंगे फिर आप्रेशन के बाद भी कम से कम पन्द्रह बीस हजार रुपए महीने की दवा मुझे खाते रहनी पड़ेंगी फिर भी जीवन कितना चलेगा कोई कुछ नही बता सकता ।''
"आप ऐसा क्यों सोचते हैं बहुत से लोग अच्छी जिन्दगी जी रहे हैं।''
"जरूर जी रहे होगे पर मैं अपने आँखों देखी बात कर रहा हूँ... हमारे कौम्पलैक्स में एक परिवार रहता था उनके कोई संतान नहीं थी। पत्नी ने पति को अपनी किडनी दी थी पर पति को किडनी सूट नहीं हुई उसकी मौत हो गई और कुछ दिन बाद पत्नी भी कही चली गई । सुना था बीमारी में उसने फ्लैट बेच दिया था ।''
"लेकिन आपने घर क्यों छोड़ दिया ?'
"न छोड़ता तो क्या करता ,पत्नी मुझे तिल तिल मरते हुये नहीं देख सकती थी,डायलैसिस भी क्या मुफ्त में होती है ? मैं एक पत्र छोड़ कर आया था कि मुझे ढ़ूंढ़ने की कोशिश मत करना ।..उसने तो मुझे मरा हुआ समझ लिया होगा पर आप लोगों ने मुझे अभी तो बचा ही लिया है..लेकिन कितने दिन बहन...?''
पवित्रा अग्रवाल